जानिये , सनातन धर्म में ३३ कोटि देवी देवताओं का रहस्य।
सनातन धर्म विश्व का सबसे प्रचीन धर्म है। विशाल ज्ञान और रहस्यों से भरे इस धर्म में बहुत से कारण आज तक भी लोगों को ज्ञात नहीं है। सनातन धर्म में 4 वेद हैं 18 पुराण हैं और भी बहुत से दिव्य ग्रंथ हैं।
माना जाता है कि सनातन धर्म में 33 कोटि देवता हैं। यह शास्त्रों में बताया गया है। देवता तो 33 कोटि हैं पर लोग इन्हें 33 करोड़ मानते हैं, यहाँ लोगो को बहुत बड़ी भूल है कि वह कोटि को यहां पर करोड़ मानते हैं। आईये जानते हैं कि सच्चाई क्या है और इसका रहस्य क्या है।
सबसे पहली बात, वेद, पुराण, गीता, रामायण, महाभारत या किसी अन्य धार्मिक ग्रन्थ में ये नहीं लिखा कि हिन्दू धर्म में ३३ करोड़ देवी देवताओं हैं और यही नहीं देवियों को कहीं भी इस गिनती में शामिल नहीं किया है।
धर्म ग्रंथों में ३३ करोड़ नहीं बल्कि “३३ कोटि” देवताओं (ध्यान दें, देवता न कि भगवान) का वर्णन हैं। ध्यान दें कि यहाँ “कोटि” शब्द का प्रयोग किया गया है,करोड़ का नहीं। आज हम जिसे करोड़ कहते हैं, पुराने समय में उसे कोटि कहा जाता है।
युधिष्ठिर ने ध्यूत सभा में अपने धन का वर्णन करते समय कोटि शब्द का प्रयोग किया है।
आधुनिक काल के विद्वानों ने कोटि का अर्थ सीधा सीधा अनुवाद कर करोड़ कर दिया।
दरअसल यहाँ कोटि का प्रयोग ३३ करोड़ नहीं बल्कि ३३ (त्रिदशा) “प्रकार” के देवताओं के लिए किया गया है।
कोटि का एक अर्थ “प्रकार” (तरह) भी होता है। उस समय जब देवताओं का वर्गीकरण किया गया तो उसे ३३ प्रकार
में विभाजित किया गया जो समय के साथ अपभ्रंश होकर कब “करोड़” के रूप में प्रचलित हो गया पता ही नहीं चला।
इन ३३ कोटि (करोड़ नहीं) देवताओं को वर्णन आपको किसी भी धर्म ग्रन्थ खासकर पुराणों में मिल जाएगा।
१२ आदित्य, ८ वसु, ११ रूद्र एवं दो अश्विनी कुमार मिलकर ३३ (१३+८+११+२ = ३३) देवताओं की श्रेणी बनाते हैं।
इनका वर्णन नीचे दिया गया है:
१२ आदित्य (सभी देवताओं में मूल देवता)
1.धाता
2.मित
3.आर्यमा
4.शक्रा
5.वरुण
6.अंश
7.भाग
8.विवास्वान
9.पूष
10सविता
11.त्वास्था
12.विष्णु
८ वसु (इंद्र और विष्णु के सहायक)
1.धर (पृथ्वी)
2.ध्रुव (नक्षत्र)
3.सोम (चन्द्र)
4.अह (अंतरिक्ष)
5.अनिल (वायु)
6.अनल (अग्नि)
7.प्रत्युष (सूर्य)
8.प्रभास (ध्यौ: यही आठवें वसु थे जिनका जन्म भीष्म के रूप में गंगा की आठवी संतान के रूप में हुआ)
११ रूद्र (भगवान शंकर के प्रमुख अनुयायी. इन्हें उनका (भगवान रूद्र) का हीं रूप माना जाता है)
हर
बहुरूप
त्रयम्बक
अपराजिता
वृषाकपि
शम्भू
कपार्दी
रेवात
मृगव्याध
शर्वा
कपाली
२ अश्विनी कुमार (इनकी गिनती जुड़वाँ भाइयों के रूप में एक साथ ही होती है जो देवताओं के राजवैध भी हैं)
नसात्या दसरा यहां लोगो को भ्रम रहता है कि कोटि का अर्थ करोड़ है पर यदि धर्म ग्रंथो की गहराई से जाँच की जाये तो हमें कोटि का अर्थ ‘प्रकार’ ही मिलता है।
यह सभी देवताओं के प्रकार हर पुराणों में वर्णित हैं। हमें उम्मीद है कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी।