शादी के बाद भगवान शिव और माता पार्वती को भी रहना पड़ा था आइसोलेशन में, जानिये यह दिलचस्प किस्सा
कोरोना के खौफ से तो पूरी दुनिया इस वक्त परेशान है। इसके संक्रमण से बचने के लिए लॉकडाउन, फिजीकल डिस्टेंसिंग, आइसोलेशन आदि को इस वक्त मुख्य हथियार माना जा रहा है। चूंकि इस वक्त इस महामारी से लड़ने के लिए किसी भी प्रकार की दवाई उपलब्ध नहीं है। तो ऐसे में समझदारी इसी में है कि, अगर आपको थोड़ा सा भी शक हो तो तुरंत खुद को क्वारंटीन कर लें। और आजकल कई लोग खुद को आइसोलेशन कर रहे हैं। लेकिन आज हम आपको भगवान शिव के आइसोलेशन के बारे में बताएंगे। जी हां, पौराणिक कथाओं में ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह करने के बाद कई बार आइसोलेशन में गए थे। तो आइये जानते हैं, आखिर क्या है भगवान शिव के आइसोलेशन की कहानी।
भगवान शिव का विवाह
भगवान शिव ने ब्रह्मा, विष्णु और सप्तऋषि को बाराती बनाकर माता पार्वती से विवाह करने, राजा हिमालय की द्वार पर पहुँचे। वहां शुभ मुहुर्त में उन दोनों का विवाह हुआ। ब्रह्मा विष्णु और सप्तऋषियों ने शिव और पार्वती को आशीर्वाद दिया। और वहां से विदाई ले ली। विवाह संपन्न होने के बाद सभी देवताओं ने भगवान शिव से आग्रह किया कि कामदेव को जीवित करें। इस आग्रह पर शिव ने कामदेव को जीवित कर दिया। और फिर भगवान शिव, माता पार्वती को लेकर विनोद भवन में चले गए। यह भगवान शिव और माता पार्वती का पहला आइसोलेशन था।
भगवान शिव का आइसोलेशन
महादेव ने राजा हिमालय के घर एक माह तक माता पार्वती के साथ आइसोलेशन में रहे। और इसके बाद राजा हिमालय के घर से नंदी पर सवार होकर पार्वती के साथ सुमेरू पर्वत की ओर चल दिए। सुमेरू पर्वत में एक रात्री विश्राम के बाद, कैलाश पर्वत की ओर गए। कैलाश पर कुछ दिन बिताने के बाद उन्होंने सृष्टि से जुड़े अनेक कार्य किए। और उसके बाद वहां से मलय पर्वत, फिर नंदन वन, और उसके बाद गन्धमार्दन पर्वत की ओर प्रस्थान किया।
गन्धमार्दन पर्वत पर आइसोलेशन
गन्धमार्दन पर्वत पर सैकड़ों वर्ष तक पार्वती के साथ खुद को आइसोलेट कर लिया। और वहां काम-क्रीड़ा में मग्न हो गए। इस प्रकार भगवान शिव ने कई बार खुद को आइसोलेट किया था। इस घटना का उल्लेख कालिदास ने अपने पुस्तक कुमारसंभवम में किया है। ऐसा माना जाता है कि इस रचना के कारण देवी पार्वती नाराज हो गई थीं। और उन्होंने कालिदास को कोढ़ी होने का शाप दे दिया था।
आइसोलेशन में हुई ये घटना
जब भगवान शिव और पार्वती काम क्रीड़ा में रत थे। तब उनके इस कार्य में व्याधान डालने के लिए एक कबूतर आ गया। कबूतर को देखकर, शिवजी ये बात जान गए कि ये निश्चय ही अग्निदेव हैं, जिन्होंने अपना वेश बदल लिया है। इसके बाद भगवान शिव को क्रोध आया, और अग्निदेव भगवान शिव के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए। अग्निदेव ने कहा कि, प्रभु आप कई वर्षों से अपनी प्रिया के साथ काम क्रीड़ा में व्यस्त हैं। सभी देवता गण आपके दर्शन करना चाहते हैं। अग्निदेव कहते हैं, तरकासुर ने तीनों लोकों में त्राहिमाम मचा रखा है। अग्निदेव, भगवान शिव से विनती करते हैं कि, हे प्रभु एक ऐसा पुत्र उतपन्न कीजिए, जो सेनापति बनकर तरकासुर का वध कर सके।
माता पार्वती ने अग्निदेव को कोढ़ी बन जाने का शाप दिया। इसके बाद भगवान शिव ने अपनी बातों से माता पार्वती के क्रोध को शांत किया।
भगवान शिव द्वारा शापित वन
माता पार्वती के साथ भगवान शिव एक बार अम्बिका वन में विहार कर रहे थे। तभी वहां ऋषियों का एक समूह आ पहुँचा। ये बात माता पार्वती को अच्छी नहीं लगी। इसी बात को ध्यान में रखते हुए, भगवान शिव ने शाप दिया कि अम्बिका वन में जो भी आएगा। वह स्त्री बन जाएगा। इस तरह से माना जाता है कि अम्बिका वन को भी भगवना शिव ने आइसोलेशन के लिए चुना था। फिर एक बार राजा ईल इस वन में प्रवेश कर गए। और वो सदा के लिए स्त्री बन गए, और ईला कहलाए। बता दें, ईला और बुध के संबंध से चंद्रवंश के राजा पुरूरवा का जन्म हुआ था।