13 अप्रैल को है वैशाखी का पर्व, महाभारत काल से जुड़ी है कथा, इस दिन रखी थी खालसा पंथ की नींव
वैशाखी का पर्व महाभारत काल से मनाया जा रहा है। जब पांडवों को वनवास मिला था तो पांडवों यात्रा करते हुए पंजाब पहुंचे थे
वैशाखी का पर्व इस साल 13 अप्रैल को आ रहा है और इस पर्व को मेष संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। वैशाखी को धूमधाम से मनाया जाता है और इस दिन किसान अग्नि देव की पूजा करते हैं और अग्नि देव को फसल अर्पित करते हैं। साथ में ही नाच गाकर भगवान को अच्छी फसल के लिए शुक्रिया अदा करते हैं। वैशाखी के दिन से ही फसलों को काटना भी शुरू कर दिया जाता है।
वैशाखी के पर्व से जुड़ी कथा
वैशाखी के पर्व से एक कथा भी जुड़ी हुई है जो कि महाभारत काल की है। इस कथा के अनुसार वैशाखी का पर्व महाभारत काल से मनाया जा रहा है। जब पांडवों को वनवास मिला था तो पांडवों यात्रा करते हुए पंजाब पहुंचे थे और यहां पहुंचकर ये जंगल में आराम करने लगे। उसी दौरान पांडवों को प्यास लगी और पानी की तालाश में पांडव जंगल में तल की खोज करने लगे। तभी युधिष्ठिर को छोड़ अन्य पांडवों ने एक सरोवर से पानी पी लिया। यक्ष ने इनको सरोवर का पानी पीने से खूब मना किया। मगर पांडव नहीं मानें और पानी पीने से इनकी मौत हो गई। वहीं चारों भाईयों के वापस ना आने पर युधिष्ठिर इनकी तलाश में निकलें और युधिष्ठिर ने पाया की उनके चारों भाई सरोवर के पास मरे हुए हैं। यक्ष ने युधिष्ठिर को बताया कि उसने पानी पीने के लिए मना किया। लेकिन वो माने नहीं और ऐसा करने से उनकी जान चली गई।
युधिष्ठिर ने अपने भाई के प्राण यक्ष से वापस मांगे तब यक्ष ने युधिष्ठिर से कई सारे प्रश्न किए। हर प्रश्न का सही उत्तर देने के बाद यक्ष ने पांडवों को जीवित करने का मन बना लिया। लेकिन सभी पांडवों को जीवित करने से पहले यक्ष ने युधिष्ठिर से एक और सवाल किया और युधिष्ठिर से कहा कि वो चारों भाई में से केवल एक भाई को ही जीवित कर सकता है। तब युधिष्ठिर ने अपने सौतेले भाई को जीवित करने को कहा। युधिष्ठिर का ये जवाब सुन यक्ष काफी खुश हो गया और उसने सभी पांडवों को जीवित कर दिया। इस सरोवर के पास वैशाखी का पर्व हर साल मनाया जाता है और कटराज ताल के किनारे भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।
खालसा पंथ की नींव रखी थी
वैशाखी के दिन ही सिखों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह ने आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की नींव रखी थी। खालसा-पंथ की स्थापना वर्ष 1699 में की गई थी और ये सिख धर्म का सबसे पवित्र पंथ है।
की जाती है गुरुग्रंथ साहिब की पूजा
पंजाब में वैशाखी के पर्व के दिन सबसे पहले गुरुग्रंथ साहिब की पूजा की जाती है। सुबह 4 बजे गुरु ग्रंथ साहिब को समारोहपूर्वक कक्ष से बाहर लाया जाता है और दूध जल से प्रतिकात्मक स्नान करवाने के बाद गुरु ग्रंथ साहिब को तख्त पर रखा जाता है। इसके बाद पंच प्यारे पंचबानी गाते हैं।
दिन में अरदास की जाती है और गुरु को कड़ा प्रसाद का भोग लगाया जाता है। वैशाखी के दिन पंजाब में भांगड़ा और गिद्दा किया जाता है और शाम को अग्नि देव को फल अर्पित की जाती है।