चाणक्य नीति: महामारी में अति उत्साह बनता है विनाश का कारण, जानें इस स्थिति में क्या करना चाहिए
आचार्य चाणक्य को एक लोकप्रिय शिक्षक, दार्शनिक, अर्थशास्त्री, न्यायविद और शाही सलाहकार के रूप में जाना जाता है. आचार्य चाणक्य पाटलीपुत्र के महान विद्वान थे. इतने बड़े साम्राज्य के मंत्री होने के बाद भी वह एक साधारण सी कुटिया में रहना पसंद करते थे. साथ ही वह बेहद ही सदा जीवन जीने में यकीन रखते थे. चाणक्य ने अपने जीवन से मिले कुछ अनुभवों को एक किताब ‘चाणक्य नीति’ में जगह दिया है. चाणक्य नीति में कुछ ऐसी बातों का जिक्र किया गया है, जिस पर अमल करने पर व्यक्ति अवश्य सफल होता है. साथ ही चाणक्य ने अपनी किताब में राष्ट्र पर आने वाले संकट से कैसे निपटा जाए इसके बारे में भी बताया है.
इस समय पूरी दुनिया कोरोना वायरस जैसी जानलेवा महामारी से जूझ रही है. इस स्थिति में चाणक्य नीति की शिक्षाएं बहुत ही प्रासंगिक हो जाती है. चाणक्य ने कहा है राष्ट्र पर महामारी और आक्रमण जैसी विपदा आने पर नागरिकों को एक हो जाना चाहिए. उन्हें अपनी जिम्मेदारियों को नहीं भूलना चाहिए. बड़ी लड़ाई तब ही जीती जा सकती है जब देश का हर नागरिक इसमें आहूति देगा. ऐसे में आज के इस लेख में हम आपको बताएंगे कि राष्ट्र पर विपदा आने पर क्या करना चाहिए.
अति उत्साह है विनाश का सूचक
आचार्य ने कहा है कि किसी भी महामारी या संकट से निबरने के लिए जरूरी है कि व्यक्ति इसे गंभीरता से ले. ऐसी गंभीर परिस्तिथियों में अधिक उत्साहित होना आपको संकट में डाल सकता है. चाणक्य नीति के अनुसार, यदि इस तरह की स्थिति आ जाये तो व्यक्ति को उत्साह से काम लेने की बजाय संकट की गंभीरता को समझते हुए कार्य करना चाहिए.
करें दूसरों की मदद
जब महामारी फैलती है तो कई लोगों के जीवन यापन को संकट में डाल देती है. ऐसे में जो लोग सक्षम हैं, उन्हें इस दिशा में काम करना चाहिए. सक्षम लोगों को अधिक से अधिक सहयोग करना चाहिए. मनुष्य को समझना चाहिए कि महामारी किसी एक व्यक्ति या स्थान तक सीमित नहीं रहती. इसके चपेटे में कोई भी आ सकता है. इसलिए जब इस तरह की स्थिति आ जाए तब सक्षम, सर्मथवान और समृद्धशाली लोगों को असहाय लोगों की मदद करनी चाहिए. इस तरह वह समाज में भी अपना सम्मान बढ़ा सकते हैं.
समझे अपनी जिम्मेदारी को
महामारी जैसी स्थिति से व्यक्ति तभी निपट पायेगा, जब वह अपनी जिम्मेदारियों को समझेगाऔर उसका सही तरह से निर्वाहन करेगा. ऐसी परिस्थिति में संख्याबल और संसाधनों की चिंता नहीं करनी चाहिए. याद रखें कि डूबते नाव को तिनके का सहारा भी काफी होता है. इसलिए राष्ट्र को महामारी से बचाने में हर व्यक्ति एक अलग और अहम भूमिका निभाता है. यही वह अवसर होता है जब व्यक्ति अपने जीवन को मानव सेवा कर सार्थक बना सकता है. अगर इस तरह की स्थिति में आप अपना कुछ जरूरी योगदान दे देते हैं तो आपके बाकी सभी पाप अपने आप नष्ट हो जाते हैं.
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