अपनी हार मानने तक को तैयार नहीं विरोधी, ईवीएम, वक्त और घमंड को ठहरा रहे हैं जिम्मेदार!
यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं, चुनाव के नतीजों ने सबको चौंका दिया है. शायद खुद बीजेपी ने भी नहीं सोचा होगा कि उसे इतना बड़ा जनादेश मिलेगा, नतीजों ने सभी एग्जिट पोल्स को भी गलत साबित कर दिया. यूपी चुनाव में बीजेपी की ऐसी जीत हर किसी के लिए अप्रत्याशित थी. लेकिन ऐसी जीत के बाद एक बात तो तय है कि जनता ने नोटबंदी के फैसले को सहर्ष स्वीकार किया और समर्थन भी किया है.
नतीजों से जहां एक तरफ बीजेपी समर्थकों में खुशी का माहौल है तो वहीं विरोधी अपना मुंह छिपाते नजर आ रहे हैं. एक तरफ मायावती चुनाव प्रणाली पर सवाल उठा रही हैं तो दूसरी तरफ शिवपाल यादव बिना नाम लिए ही हार का ठीकरा अखिलेश यादव पर फोड़ रहे हैं, वहीं कांग्रेस के राज बब्बर वक्त को दोष दे रहे हैं. खास बात यह है कि कोई भी पार्टी और नेता यह भरोसा नहीं कर पा रहा कि वो हार गए और जनता ने पूर्ण बहुमत के साथ जबरदस्त जनादेश देते हुए बीजेपी को प्रदेश की कमान सौंप दी है.
समाजवादियों की नहीं घमंड की हार हुई:
समाजवादी पार्टी से किनारे लगाए गए नेता शिवपाल यादव ने बिना नाम लिए ही अखिलेश यादव पर निशाना साधा उन्होंने लोकसभा चुनाव में मिली हार को अपनी या पार्टी की हार नहीं माना है, बल्कि इसे घमंड की हार बताया है, उन्होंने कहा कि घमंड के कारण मुझे और नेता जी को बहुत अपमानित किया गया था, ये घमंड की हार है समाजवादियों की नहीं. हालांकि शिवपाल यादव इटावा की जसवंतनगर सीट से सपा प्रत्याशी थे और उन्होंने बड़े मार्जिन के साथ बीजेपी उमीदवार मनीष यादव को हराते हुए जीत दर्ज की है.
अपनी हार मानने को तैयार नहीं हैं मायावती :
जैसे जैसे मतगणना के रुझान आने शुरू हुए मायावती की बहुजन समाज पार्टी किनारे होती चली गयी. नतीजा ये हुआ कि पार्टी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ रहा है. मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि जिस तरह से बीजेपी को मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में भी बढ़त मिली है उससे यह लगता है कि ईवीएम मशीनों में कुछ गड़बड़ी थी. उन्होंने कहा कि बीजेपी की जीत हजम नहीं हो रही है. मायावती ने अपनी हार स्वीकार नहीं करते हुए चुनाव प्रक्रिया को ही कटघरे में खड़ा कर दिया.
समय की मार झेल रही है कांग्रेस :
इसी बीच कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी राज बब्बर ने चुनाव में हार के पीछे वक्त को जिम्मेदार ठहराया है. राज बब्बर ने इस हार को समय की मार बताया है. गौरतलब है कि सपा और कांग्रेस मिलकर भी एक अच्छा विपक्ष खड़ा करने की स्थिति में नहीं रह गए हैं ऐसे में सभी पार्टियां अपनी अपनी हार की जिम्मेदारी टालने में लगी हैं.
समझने वाली बात यह होगी कि इन पार्टियों का चरित्र ऐसा ही है, इन्हें जनता के निर्णय और जनादेश में भी साजिश नजर आती है और ये अहंकार में इस कदर चूर हैं कि इन्हें हार के पीछे अपनी कमियां नहीं दिख रही हैं, ये अभी भी अपनी खुद की हार स्वीकार नहीं कर पा रहे. कहीं न कहीं इसीलिए इन पार्टियों का जनाधार खत्म होता जा रहा है और ये पार्टियां मुट्ठी भर सीटों पर सिमटती जा रही हैं.