अध्यात्म

श्रीमद्भागवत गीता का महत्व और इसमें लिखे गए 5 सबसे लोकप्रिय श्लोक

श्रीमद्भागवत गीता का महत्व: श्रीमद भगवद गीता बेहद ही पवित्र ग्रंथ है और ये ग्रंथ विश्वभर में प्रसिद्ध है। भगवत गीता में श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को उपदेश दिए गए हैं और इन उपदेशों की मदद से श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को इस संसार का सत्य बताया गया है। श्रीमद्भगवदगीता में कुल 18 अध्याय हैं और 720 श्लोक हैं। श्रीमद्भगवदगीता की रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी और ये ग्रंथ संस्कृति भाषा में लिखा गया है।

महाभारत युद्ध के दौरान दिया था उपदेश

गीता का महत्व

अपने ही गुरुओं और भाई पर कैसे शस्त्र उठाए जाए ये सोच कर महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन विमुख होने लगे। अर्जुन को इस दुविधा से निकालने के लिए तब श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता का ज्ञान दिया था और अर्जुन को कहा था कि इंसान को निष्काम भाव से केवल कर्म करने चाहिए फल की इच्छा नहीं। इस युद्ध में वो तुम्हारे  शत्रु के रूप में खड़े हैं।

श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश ही श्रीमद्भागवत गीता में लिखे गए हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब भी आप किसी दुविधा या परेशानी में हो तो श्रीमद्भागवत गीता को पढ़ लें। क्योंकि इसमें लिखे गए श्लोक आपको सही मार्ग दिखाने में सहायक होते हैं। श्रीमद्भागवत गीता को पढ़ने से हमें जीवन में सही रहा चुनने में मदद मिलती है और ये ग्रंथ हमें जीवन की बुरी परिस्थितियों से कैसे निकला जाए इसका ज्ञान भी देता है।

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श्रीमद्भागवत गीता का महत्व

श्रीमद्भागवत गीता का महत्व बहुत अधिक बताया गया हैं, कहा जाता हैं गीता सुनने मात्र से हमारे जीवन के बहुत से दुःख दूर हो जाते हैं, और बहुत अधिक पाप भी दूर होते हैं। तो हमें जीवन में जब भी समय मिले जरूर श्रीमद्भागवत का श्रावण करना चाहिए, इससे हमें श्रीमद्भागवत गीता का महत्व भी पता चलता हैं।
गीता का महत्व

निकाले हर परेशानी से

जब भी आप किसी भी तरह की परेशानी में या दुविधा में हो तो इस ग्रंथ को पढ़ लें। इस ग्रंथ को पढ़ने से आपको अपनी परेशानी का हल जरूर मिल जाएगा। जिस तरह से गीता का ज्ञान सुनने के बाद अर्जुन अपनी दुविधा से निकल पाए थे उसी तरह से गीता पढ़ने के बाद आप भी अपनी हर दुविधा से निकल पाने में कामयाब होंगे।

सही राह दिखाए

श्रीमद्भागवत गीता का महत्व

कई बार हम लोग सही निर्णय लेने में असमर्थ होते हैं और क्या सही है और क्या गलत इसका फर्क नहीं कर पाते हैं। हालांकि श्रीमद्भागवत गीता को पढ़ने से आप को सही निर्णय लेने में मदद मिलेगी।

चिंता हो दूर

जो लोग चिंता या तनाव में रहते हैं उनको श्रीमद्भागवत गीता को जरूर पढ़ना चाहिए। इसे पढने से चिंता एकदम दूर हो जाती है। श्रीमद्भागवत गीता में लिखा गया है कि चिंता और तनाव से जितना हो सके उतना दूर रहना चाहिए।

मिले कामयाबी

श्रीमद्भागवत गीता का महत्व

जीवन में सफलता पाने के लिए हम लोग दिन रात मेहनत किया करते हैं। लेकिन कई बार सफलता हम लोगों के हाथ नहीं लग पाती है। गीता के अनुसार असफल होने पर हमें निराश नहीं होना चाहिए और अपने मन को सदा शांत रखना चाहिए। श्रीमद्भागवत गीता में लिखे गए एक श्लोक के अनुसार अशांत मन से किया गया काम सफल नहीं होता है। इसलिए जिस काम को भी आप करें तो सबसे पहले अपने मन पर काबू पाएं और शांत मन के साथ काम करें। क्योंकि कई बार हम लोग असफल होने पर अशांत हो जाते हैं और इसी अशांति के कारण हम सफल नहीं हो पाते हैं। इसके अलावा गीता में ये भी लिखा गया है कि सफलता और असफलता जीवन में आती जाती रहती हैं। इंसान को बस अपने कर्म पर विश्वास रखना चाहिए।

किस तरह से रहे खुश

जीवन में खुश रहना बेहद ही जरूरी होता है। गीता के अनुसार खुश रहने के लिए अपने मन में अधिक इच्छाएं ना रखें और जितना मिले उसमें खुश रहना सीखे। क्योंकि जो लोग सदा असंतुष्ट रहते हैं वो कभी भी खुश नहीं रहे सकते हैं।

गीता में लिखे गए कुछ प्रसिद्ध श्लोक

अगर आपके पास गीता को पढ़ने का समय नहीं है तो आप नीचे बताए गए श्लोक को एक बार पढ़ लें। क्योंकि नीचे बताए गए श्लोक श्रीमद्भवद्गीता के सर्वाधिक महत्वपूर्ण श्लोक है।

1
नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥

ये श्लोक गीता के द्वितीय अध्याय में लिखा गया है और इस श्लोक की संख्या 23 है। इस श्लोक के जरिए भगवान श्रीकृष्ण ने ये बताने की कोशिश की है कि आत्म को ना ही कोई शस्त्र काट सकता है, ना ही आग जला सकती है, ना पानी भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है। क्योंकि आत्मा अजर-अमर है।

2
हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।
तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥

श्रीमद्भगवदगीता में लिखे गए इस श्लोक के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि अगर तुम इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो जाते हो तो तुमको स्वर्ग की प्राप्ति होगी। वहीं अगर तुम ये युद्ध को जीत जाते हो तो तुम धरती पर ही सुख को भोगोगे। इस श्लोक के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म के बारे में बताने की कोशिश की है।

3
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥

इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन क्रोध होता है और क्रोध आने पर  मनुष्य की बुद्धि मारी जाती है। बुद्धि नष्ट होने पर इंसान अपना ही नाश कर देता है और सही गलत का फैसला नहीं ले पाता है।

4
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

इस श्लोक का अर्थ है कि इंसान केवल कर्म ही करता है। इसलिए हमेशा सच्चे मन से अपना कर्म करो और फल पाने के लिए कर्म मत करो।

5
परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥

श्रीमद्भगवदगीता में लिखा गया ये श्लोक बेहद ही महत्वपूर्ण श्लोक है। इस श्लोक के जरिए कृष्ण जी ने ये बताने की कोशिश की है कि इस संसार में सज्जन लोग कल्याण के लिए और दुष्कर्मियों के विनाश के लिए जन्म लेंगे। धर्म की स्थापना के लिए मैं (श्रीकृष्ण) युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं।

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