गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने बताए हैं सफल जीवन के ये 20 अचूक मंत्र
श्रीमद्भगवद्गीता को सबसे पवित्र ग्रंथ माना जाता है और इस ग्रंथ में भगवान श्री कृष्ण जी द्वारा दिए गए उपदेश हैं। महाभारत युद्ध के दौरान जब अर्जुन अपने रिश्तेदारों और गुरुओं पर शस्त्र उठाने से डर रहे थे। तब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था और इस उपदेश के तहत भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जीवन से जुड़े सच बताए थे। भगवान श्री कृष्ण द्वारा गीता में दिए गए कुछ खास उपदेशों के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं। जिस तरह से इन उपदेशों के जरिए भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को सही राह दिखाई थी। वैसे ही ये उपदेश पढ़ने के बाद आपको भी सही रास्ता चुनने में आसानी होगी और आप भी सही और गलत चीजों का निर्णय ले पाएंगे।
श्रीमद्भगवद्गीता के अनमोल विचार
1. मैं (भगवान) हर इंसान के दिल में विद्यमान हूं।
2. जन्म लेने वाले व्यक्ति के लिए मृत्यु उतनी ही निश्चित है, जितना कि मृत होने वाले के लिए जन्म लेना। इसलिए जो अपरिहार्य है उस पर शोक मत करो।
3. क्रोध, वासना और लालच नरक के 3 द्वार हैं।
4. क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम पैदा होने से बुद्धि बेसुध होती है। जब बुद्धि बेसुध होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है। जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का अंत हो जाता है।
5. तुम बस अपने जीवन में कर्म करो और फल की चिंता मत करो।
6. आत्मा को ना कोई शस्त्र कट सकता है और ना आग जला सकती है।
7. जीवन में कर्म करने से बढ़कर और कुछ नहीं। इसलिए जितना हो सके उतना कर्म जीवन में करो।
8. बुद्धि का नाश होने पर मनुष्य का नाश भी हो जाता है।
9. श्रेष्ठ पुरुष जो काम करते हैं, आम इंसान भी वैसा ही कार्य करते हैं।
10. इन्द्रियों पर संयम रखने वाले मनुष्यों को ही शान्ति की प्राप्ति होती है
11. शोक मत करो, मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिला दूंगा।
12. इंसना जिस मन से मुझे याद करता है मैं उसे वैसा ही फल देता हूं।
13. सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता तीनों लोक में कहीं भी नहीं है।
14. जो इंसान अपने मन को नियंत्रण नहीं कर सकरते हैं वो अपा ही शत्रु बन जाता है और शत्रु के समान कार्य करता है।
15. व्यक्ति जो चाहे बन सकता है, यदि वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करें।
16. ना तुम इस शरीर को हो, ना ये शरीर तुम्हारा है। शरीर अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से मिलकर बना है और एक दिन ये इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है – फिर तुम क्या हो?
17.आत्मा ना कभी जन्म लेती है और ना मरती ही है। शरीर का नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता।
18. जीवन में जो हुआ, वो अच्छा हुआ है, जो हो रहा है, वो अच्छा हो रहा है, जो होगा, वो भी अच्छा ही होगा। तुम बीते कल पर पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है। उसे जीयो।
19. इंसान के हाथ में केवल कर्म करना है, कर्मफल का नहीं। इसलिए तुम कर्मफल की आशक्ति में ना फंसो तथा अपने कर्म का त्याग भी ना करो।
20. मैं ही सबकी उत्पत्ति का कारण हूं और मुझसे ही जगत का होता है।