नई दिल्ली : राजनीतिक लिहाज से उत्तर प्रदेश देश का सबसे अहम सूबा है।
कहा जाता है कि केंद्र में यदि लंबे समय तक सत्तासीन रहना है तो 80 लोकसभा सीटों वाले इस प्रदेश पर मजबूत पकड़ जरूरी है। इसे देखते हुए ही यहां अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए सभी दलों ने अभी से कमर कसनी शुरू कर दी है।
इसमें योगी आदित्यनाथ नाथ बहुत अहम भूमिका निभाएगे.
सत्तारूढ़ सपा के बाद सबसे अधिक प्रतिष्ठा का प्रश्र लोकसभा चुनावों में 73 सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी के लिए है।
उस पर जहां एक तरफ अपनी बढ़त कायम रखने का दबाव है, वहीं विधानसभा चुनाव जीतकर यह भी साबित करना होगा कि केंद्र की मोदी सरकार का विश्वास जनता के मन में कायम है।
इसके लिए पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने खास मास्टर प्लान किया है। आइए जानते हैं कि भाजपा के चाणक्य अमित शाह ने यूपी फतह करने के लिए किन-किन रणनीतियों पर काम कर रहे हैं…और इस रणनीति में प्रमुख सहयोग जिस नेता का रहेगा वो हैं योगी आदित्यनाथ नाथ जो उत्तरप्रदेश के चुनाव में बहुत अहम भूमिका निभाएगे क्योंकि योगी जी चीफ मिनिस्टर पद के सबसे प्रबल दावेदार भी हैं.
जानिये क्या है चाणक्य नीती
पिछड़ी जातियों का समीकरण
उत्तर प्रदेश में अति पिछड़ी जाति के वोटरों की संख्या 30 फीसदी है।
ईबीसी के अंतर्गत कुर्मी, लोध और कोइरी वोटरों की संख्या ज्यादा है।
अब तक के विधानसभा चुनावों में सपा और बसपा इन समुदायों का वोट हासिल करने के लिए क्षेत्रीय नेताओं पर दांव खेलती रही हैं, लेकिन बीजेपी की अच्छी खासी पकड़ लोध जाति के वोटरों पर है और इसका कारण कल्याण सिंह और उमा भारती जैसे नेताओं का इसी जाति से होना है। पार्टी ने यूपी में सत्ता भी कल्याण सिंह को आगे करके ही हासिल की थी, लेकिन बाद में प्रदेश के कुछ प्रभावशाली नेताओं की ओर से कल्याण सिंह को दरकिनार कर दिया गया। नतीजा यह रहा कि पार्टी लाख कोशिशों के बाद भी आज तक प्रदेश में सत्ता हासिल नहीं कर सकी है।
अब पिछड़ी जातियों को दिया महत्व
आखिरकार पार्टी को समझ आ गया कि प्रदेश में यदि सत्ता हासिल करनी है तो पिछड़ी जातियों को अपनी तरफ लाना होगा।
तभी पार्टी ने पहले कोइरी वर्ग को लुभाने के लिए केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी। अब सीएम पद के लिए किसी पिछड़े वर्ग के नेता को ही आगे करने की बात कही जा रही है। जहां तक कुर्मी वोट का सवाल है तो 2014 के लोकसभा चुनाव में जरूर एकजुट होकर बीजेपी का समर्थन किया था लेकिन इससे पहले ऐसा कम ही देखा गया है।
कैसे दिलचस्प होगा यह समीकरण जाने
अति पिछड़े समुदायों पर अब तक किसी एक पार्टी की मजबूत पकड़ नहीं है और ऐसे में सभी पार्टियां इन्हें अपनी तरफ खींचने में लगी है। यूपी में अगड़ी जातियों के वोटरों का हिस्सा करीब 24 फीसदी है। और राजनीतिक विश्लेषकों का ऐसा मानना है कि ये मतदाता बीजेपी की तरफ झुके हुए हैं। प्रदेश में 18 पर्सेंट मुस्लिम वोटर समाजवादी पार्टी के साथ मजबूती से जुड़े हुए हैं।
लेकिन इन सबके बीच अगर कांग्रेस भी अपनी स्थिति में सुधार कर पाई तो इसमें कोई दो राय नहीं कि सेक्युलर वोट में बिखराव होगा। इससे सियासी गणित भी बिगड़ेंगे। चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस अपना वोट शेयर तो बढ़ा लेगी, लेकिन सीट नहीं बढ़ा पाएगी जो बीजेपी के लिए अच्छा होगा।