अध्यात्म

जानें क्या है ‘नटराज स्तुति’ पाठ और इसे पढ़ने से मिलने वाले लाभ

नटराज स्तुति पाठ भगवान नटराज से जुड़ा हुआ एक पाठ है। इस पाठ को शक्तिशाली पाठ माना जाता है और इसे पढ़ने से हर कामना पूर्ण हो जाती है। नटराज को भगवान शिव का रूप माना जाता है और नटराज को नृत्य का देवता भी कहा जाता है। आखिर नटराज भगवान कौन हैं और नटराज स्तुति का पाठ क्या है, यह आज हम आपको इस लेख के जरिए बताने जा रहे हैं।

कौन हैं नटराज भगवान

नटराज शब्द ‘नट’ और “राज’ शब्द से मिलकर बना हुआ है। शिव भगवान का तांडव नृत्य उनका ही एक रूप है और तांडव के दो स्वरूप हैं। पहला रूप शिव भगवान के क्रोध को दर्शाता है और दूसरा स्वरूप आनंद का परिचायक है। जब शिव जी क्रोध में तांडव करते हैं तो उसे शिव रुद्र कहा जाता है। वहीं जब शिव आनंद तांडव करते हैं, तो उसे शिव नटराज के नाम से जाना जाता है।

नटराज स्तुति

पुराणों में शिव जी के तांडव का जिक्र करते हुए कहा गया है कि शिव के तांडव से ही यह सृष्टि बनी हैं और शिव के आनंद तांडव से यह संसार अस्तित्व में आया है जबकि शिव के रौद्र तांडव में इस संसार का नाश हो जाता है।

माना जाता है नृत्य का भगवान

जो लोग नृत्य करना पसंद करते हैं और किसी कला को सीखते हैं, वो लोग नटराज को अपना भगवान मानते हैं। जब भी लोग नृत्य करना शुरू करते हैं, तो सबसे पहले नटराज की मूर्ति को प्रणाम करते हैं और उसके बाद ही नृत्य की शुरूआत करते हैं।

नटराज की मूर्ति

नटराज स्तुति

  • नटराज की मूर्ति देखने में काफी अलग तरह की होती है। इस मूर्ति की मुद्रा नृत्य मुद्रा होती है। नटराज की मूर्ति में भगवान शिव एक पैर पर खड़े नजर आते हैं जबकि एक पैर से उन्होंने एक बौने (अकश्मा) को दबा रखा है। मूर्ति में इनकी चार भुजाएं दिखाई गई हैं। इनका पहला दाहिना हाथ ऊपर की ओर उठा हुआ होता है और इस हाथ में नटराज ने डमरु पकड़ा हुआ है। डमरू को सृजन का प्रतीक माना जाता है।
  • ऊपर की ओर उठे हुए दूसरे हाथ में अग्नि होती है, जो कि विशान को दर्शाती है। नटराज की मूर्ति का दूसरा दाहिना हाथ अभय मुद्रा में होता है, जो कि बुराईयों से रक्षा का प्रतीक है। जबकि दूसरे बाया हाथ उनके उठे हुए पांव की ओर इंगित करता है। जो की मोक्ष के मार्ग को दर्शता है। इसके अलावा इनकी मूर्ति चारों और से अग्नि से घिरी होती है। जो कि इस ब्रह्माण्ड का प्रतीक हैं।
  • वहीं नटराज के पैरों के नीचे कुचला हुआ बौना दानव अज्ञान को दर्शता है और इस बात का प्रतीक है की शिव अज्ञान का विशान कर देते हैं। इसके अलावा नटराज के शरीर पर कई लहराते सर्प कुण्डलिनी शक्ति का प्रतीक माने जाते हैं। अगर शिव की नटराज मूर्ति को ध्यान से देखा जाए तो ये मूर्ति संपूर्ण ॐ आकृति में दिखाई देती है।

नटराज स्तुति का पाठ

हमारे शास्त्रों में शिव के नटराज रूप का वर्णन पढ़ने को मिलता है और ऐसा कहा जाता है कि एक बार शिव जी और मां काली के बीच नृत्य की प्रतियोगिता हुई थी और इस प्रतियोगित के न्यायधीष भगवान विष्णु बनाए गए थे। शिव और मां काली दोनों ही बेहद ही सुंदर तरह की मुद्रा लेकर यह नृत्य कर रहे थे। वहीं इसी बीच शिव जी ने अपने पैरों को कुमकुम में डाल दिया और इन पैरों को काली मां के माथे पर लगा दिया। शिव को ऐसा करता देख काली मां नृत्य करते हुए रुक गई और शिव जी यह प्रतियोगित को जीत गए।

नटराज स्तुति

शास्त्रों में नटराज स्तुति भी लिखी गई है और नटराज स्तुति का पाठ पढ़ना बेहद ही लाभजनक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो लोग नटराज स्तुति का पाठ करते हैं उन लोगों पर शिव भगवान की कृपा बन जाती है। जो लोग किसी कला क्षेत्र से जुड़े होते हैं उन लोगों को नटराज स्तुति का पाठ जरूर करना चाहिए। क्योंकि नटराज भगवान को कला का भगवान भी माना जाता है और नटराज स्तुति इन्हीं से जुड़ी हुई हैं। जो लोग नटराज स्तुति का पाठ करते हैं उन लोगों को नटराज यानी शिव भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है और यह लोग अपनी कला में उत्तम बन जाते हैं।

इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि जो लोग नटराज स्तुति का पाठ करते हैं उन लोगों से भगवान शिव आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी हर कामना को पूर्ण कर देते हैं। इसलिए अगर आपकी कोई इच्छा है जो पूर्ण नहीं हो रही है तो आप नटराज स्तुति का पाठ जरूर करें।

कैसे किया जाता है नटराज स्तुति का पाठ

नटराज स्तुति का पाठ अन्य पाठों की तरह ही होता है और इस पाठ को सुबह के समय पढ़ना सबसे उत्तम माना जाता है। अगर हो सके तो आप इस पाठ को नटराज की मूर्ति के सामने ही बैठकर करें। इस पाठ को सोमवार के दिन पढ़ना उत्तम फल देते है क्योंकि सोमवार की दिन शिव भगवान से जुड़ा होता है। इसके अलावा जो लोग कला से जुड़े हुए हैं वो लोग रोज अपने कार्य की शुरूआत करने से पहले इस पाठ को पढ़ सकते हैं।

संपूर्ण नटराज स्तुति पाठ

सत सृष्टि तांडव रचयिता
नटराज राज नमो नमः…
हेआद्य गुरु शंकर पिता
नटराज राज नमो नमः…

गंभीर नाद मृदंगना धबके उरे ब्रह्माडना
नित होत नाद प्रचंडना
नटराज राज नमो नमः…

शिर ज्ञान गंगा चंद्रमा चिद्ब्रह्म ज्योति ललाट मां
विषनाग माला कंठ मां
नटराज राज नमो नमः…

तवशक्ति वामांगे स्थिता हे चंद्रिका अपराजिता
चहु वेद गाए संहिता

यह भी पढ़ें : ॐ शब्द का महत्व

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