प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखना पड़ गया भारी, अवमानना के मामले में फंसे कलकत्ता हाई कोर्ट के जज!
जस्टिस सी एस कर्णन ने भ्रष्टाचार के खिलाफ पीएम मोदी को चिट्ठी लिखी और उस चिट्ठी ने उनकी मुश्किलें बढ़ा दीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखी गयी चिट्ठी में जस्टिस कर्णन ने कई मौजूदा और पूर्व जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे और पीएम से कार्रवाई की मांग की थी. जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने भी संज्ञान में लेकर कार्रवाई शुरू की है.
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन के न्यायिक और प्रशासनिक अधिकार वापस ले लिए हैं, कोर्ट ने जस्टिस कर्णन को सभी न्यायिक फाइलें तत्काल प्रभाव से हाईकोर्ट को सौंपने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने जस्टिस कर्णन को 13 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में पेश होकर जवाब देने को भी कहा है.
सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में ये पहली बार हुआ जब प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में सात जजों की संवैधानिक बेंच ने किसी मौजूदा जज के खिलाफ अदालत की अवमानना के मामले में सुनवाई की.
सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि जस्टिस कर्णन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट कार्रवाई करे ताकि ये संदेश जाए कि कोर्ट अपने खिलाफ भी कार्रवाई करने से नहीं हिचकेगा. वहीं चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने कहा कि हमें बड़ी सावधानी से कोई कदम उठाना होगा ताकि आगे ये नजीर बन सके.
प्रधानमंत्री को पत्र में लिखी थी ये बात:
बताया जा रहा है कि जस्टिस कर्णन ने तथाकथित तौर पर अपने लेटरहेड पर 23 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखी चिट्ठी थी जिसमें उन्होंने कहा था कि नोटबंदी से देश में भ्रष्टाचार में कमी आ रही है लेकिन न्यायपालिका में भ्रष्टाचार जारी है. जस्टिस कर्णन ने चिट्ठी में 20 मौजूदा और पूर्व जजों के नाम भी लिख थे. उन्होंने चिट्ठी में न्यायपालिका से जुड़े कुछ कानूनी अधिकारियों के नाम भी लिखे थे और कहा था कि अगर इन अधिकारियों से थर्ड डिग्री तरीके अपना कर पूछताछ की जाए तो सब कुछ सामने आ जाएगा.
जज के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए ये है प्रावधान:
यूं तो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को हटाने के लिए संविधान में प्रक्रिया का उल्लेख है लेकिन संविधान के अनुच्छेद 129 और 142(2) के तहत भी सुप्रीम कोर्ट को कार्रवाई करने और सजा देने का अधिकार है. साथ ही अवमानना कानून 1971 की धारा 16 के तहत भी न्यायपालिका के सदस्यों के खिलाफ अवमानना का प्रावधान है.