हजारों सालों तक दुनियाभर के विद्वानों की खोज के बाद, आखिरकार मिल गई हजारों साल से लापता सरस्वती
1874 में ही अंग्रेज विद्वानों ने विलुप्त सरस्वती को खोज निकाला था। एक अंग्रेज विद्वान सीएफ ओल्डहम का “भारत के रेगिस्तान में खोई हुई सरस्वती एवं अन्य नदियां” नामक लेख एक शोध पत्रिका में छपा था। उसके बाद तो समय-समय पर कई वैज्ञानिकों ने सरस्वती नदी पर शोध किया और यह कार्य आगे बढ़ता रहा। लेकिन हाल ही में ‘विलुप्त’ सरस्वती नदी की खोज में एक बड़ी कामयाबी हाथ लगी है।
कहा जा रहा है कि यमुनानगर के आदिबद्री से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर पिछले महीने के आखिरी हफ्ते में सरस्तवी नदी की खोज को लेकर खुदाई शुरू हुई थी, जिसमें धरातल से महज सात-आठ फीट की खुदाई पर ही वहां जलधारा एकाएक फूट पड़ी। सरस्वती को पुनर्जीवित करने के लिए की जा रही खोदाई के दौरान मिले खनिज लवणों के ओएसएल (जिन पर सूर्य की किरणें न पड़ी हों) के नमूने की जांच से पता चलेगा कि इस क्षेत्र में सरस्वती नदी कब बहती थी।
उधर, विलुप्त सरस्वती की धारा फिर से धरती पर मिलने की खबर को लेकर पुरातत्व विभाग असमंजस में हैं और इस मामले में कोई टिप्पणी करने से गुरेज कर रहा है। वहीं, जानकारों के अनुसार इसे सरस्वती नदी का जल माना जा रहा है। ये पानी 7 फीट की खुदाई पर मिला है। हालांकि, इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि अभी नहीं की गई है।
आदिबद्री से पांच किलोमीटर दूर मुगलवाली गांव में मनरेगा के तहत दर्जनों मजदूर काम कर रहे थे। करीब आठ फीट की गहराई तक खुदाई करने के बाद कुछ मजदूरों को अचानक जमीन से पानी की धारा निकलते दिखी। पहले थोड़ा पानी निकला, लेकिन जैसे ही ज्यादा खुदाई की तो पानी की मात्रा बढ़ती चली गई। पानी निकलते ही मजदूर वहां जमा हो गए। देखते ही देखते चार जगहों पर सरस्वती का पानी निकलने लगा।
खबरों अनुसार उक्त घटना के बाद जमीन के नीचे बह रही सरस्वती नदी को धरातल पर लाने के लिए मनरेगा के तहत 15 दिन में तीन किलोमीटर खुदाई की जा चुकी है। इतनी कम गहराई पर नीली बजरी व चमकदार रेत, अन्य नदियों के समान ही पानी निकला। इसके बाद मजदूरों ने 8-10 खड्डे खोदे और 9-10 फुट पर सभी जगह पानी फुट पड़ा।
धरती से सरस्वती का पानी निकलने की खबर पूरे जिले में फैल गई है। जानकारी के अनुसार, डीसी डॉ. एसएस फूलिया और एसडीएम बिलासपुर भी मौके पर पहुंचे। मुगलवाली गांव में उपायुक्त ने कहा कि सरस्वती नदी का जिक्र पुरानों में मिलता था और आज वह हकीकत के रूप में धरती पर अवतरित हो गई है। उन्होंने बताया कि 21 अप्रैल को सरकार ने मनरेगा परियोजना के तहत इस नदी की खुदाई शुरू की गई थी और अब सरस्वती नदी का अस्तिव उभरने लगा है।
बताया जा रहा है कि यह पवित्र जलधारा यमुनानगर से निकलकर छह अन्य जिलों से होकर बहेगी। नदी का अगला पड़ाव देने के लिए 20 सदस्यीय कमेटी का गठन किया जा रहा है, जिसमें सरस्वती शोध संस्थान के अध्यक्ष शामिल होंगे।
नमूने लेने पहुंचे कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. एआर चौधरी ने बताया कि ओएसएल नमूने की जांच से ही नदी की पौराणिकता का पता लगाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि पहाड़ों व ग्लेशियर से चलते समय नदी अपने साथ वहां के खनिज लवणों को पानी में मिला कर लाती है। मुगलवाली में खोदाई स्थल पर डॉ. एआर चौधरी अपनी टीम विक्रम शर्मा व राकेश रंगा के साथ पहुंचे। टीम ने मुगलवाली व रूलाहेड़ी से भूमि से नीचे से निकली सरस्वती धारा के कंकरीट व पत्थरों के नमूने लिए। मुगलवाली में खोदाई की जगह से तीन चार जगहों से ओएसएल के नमूने एकत्र किए। रूलाहेड़ी से उन्होंने कंकरीट, पत्थरों व बालू के नमूने लिए।डॉ. चौधरी ने बताया कि 1885 से ब्रिटिश काल से इस सरस्वती की खोज से संबधित कार्य वैज्ञानिकों ने शुरू कर दिए थे जो आज जाकर इस स्थिति में पहुंचा है। खोदाई क्षेत्र में सरस्वती की जल धारा को देखने के लिए श्रद्धालुओं के साथ-साथ बाढ्डा के विधायक व राज्य में वन एवं पर्यटन समिति के अध्यक्ष सुखविन्द्र श्योराण भी पहुंचे। विधायकों ने सरस्वती जल का आचमन कर पूजा अर्चना की।