ओवरब्रिज पर शुरु हुई थी ख्य्याम साहब की लव स्टोरी, फिल्मी अंदाज में हुई थी पहली मुलाकात
पद्मभूषण से सम्मानित संगीतकार मोहम्मद जहुर खय्याम हाशमी ने सोमवार को आखिरी सांस ली, जिसके बाद से ही संगीत की दुनिया में शोक की लहर दौड़ गई। खय्याम साहब ने अपने करियर में कई मुकाम हासिल किए, जिसे भुला पाना नामुमकिन है। जी हां, भले ही खय्याम साहब अब हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनके द्वारा दिए गए संगीत हमारी जुबां पर हमेशा रहेंगी। इसी सिलसिले में आज हम आपको खय्याम साहब की लव स्टोरी के बारे में बताने जा रहे हैं, जोकि किसी भी फिल्म की स्टोरी से कम नहीं है। तो चलिए जानते हैं कि हमारे इस लेख में आपके लिए क्या खास है?
ख्य्याम साहब और उनकी पत्नी जगदीप कौर की लव स्टोरी की शुरुआत साल 1954 से हुई, जिसके बाद से ही दिन ब दिन इनका प्यार गहरा होता चला गया और ज़िंदगी के आखिरी समय तक दोनों की लव स्टोरी ने सुर्खियां बटोरी। हाल ही में जब ख्य्याम साहब को अस्पताल में भर्ती कराया गया तो उसके ठीक चार बाद उनकी पत्नी को भी भर्ती कराया, लेकिन उन्हें बाद में डिस्चार्ज कर दिया गया। इतना ही नहीं, जब तक जगदीप अस्पताल में थी, तब तक उन्हें यही ख्याल आ रहा था कि आखिरी उनके बिना ख्य्याम कैसे रहेंगे।
ओवरब्रिज पर हुई थी पहली मुलाकात
जगदीप कौर बॉलीवुड में प्लेबैक सिंगर बनने का सपना लिए मुंबई आ रही थी, तभी उन्हें लगा कि कोई उनका पीछा कर रहा है और फिर उन्होंने दादर स्टेशन पर इमरजेंसी हॉर्न बजाने वाली थी, लेकिन तभी एक शख्स उनके पास आया और उसने उन्हें अपना परिचर म्यूजिक कंपोजर के तहत दिया। और वह शख्स कोई और नहीं, बल्कि ख्य्याम साहब ही थे, जिसके बाद दोनों की दोस्ती हुई और धीरे धीरे ये दोस्ती प्यार में तब्दील हो गई। इतना ही नहीं, उन दिनों दोनों का प्यार इतना परवान चढ़ गया कि हर जगह उन्ही के ही चर्चे होते थे।
ख्य्याम साहब और जगदीप कौर को अपनी लव स्टोरी को शादी के बंधन में बांधने के लिए कई तरह के पापड़ बेलने पड़े थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने घरवालों के खिलाफ जाकर शादी कर ली। दोनों को शादी के बाद भी ढेर सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने उन मुश्किलों से आगे निकलकर अपनी शादीशुदा लाइफ को खुशहाल बनाया। बता दें कि शादी के बाद जब भी ख्य्याम जगदीप को कोई गाना देते थे, वह उसे ज़रूर गाती थी।
1953 में शुरु किया था ख्य्याम साहब ने अपना करियर
बताते चलें कि साल 1953 में फुटपाथ फिल्म से उन्होंने अपने बॉलीवुड करियर की शुरुआत की, जिसके बाद साल 1961 में आई फिल्म शोला और शबनम में संगीत देकर खय्याम साहब को पहचान मिलनी शुरू हुई और फिर उन्होंने अपनी ज़िंदगी में रुकने का नाम नहीं लिया। बता दें कि ख्य्याम साहब को संगीत के क्षेत्र में ढेर सारी उपलब्धि भी मिली, जिसमें तमाम तरह के अवॉर्ड हैं। संगीत उमराव जान के लिए उन्हें नेशनल अवॉर्ड भी मिला।