क्या सच में महान हैं मलाला या फिर अंदर छिपा हैं दोगलापन? जाने मलाला की सच्चाई क्या है
आर्टिकल 370 को हटाए जाने और जम्मू कश्मीर के हालात के ऊपर पाकिस्तान की मशहूर सोशल एक्टिविस्ट मलाला युसुफ़ज़ई ने हाल ही में अपना रिएक्शन दिया हैं. उन्होंने 370 हटाने पर कश्मीरों को लेकर चिंता व्यक्त की हैं. उन्होंने अपने इस ट्वीट में कश्मीरी लोगो, महिलाओं और बच्चों पर हो रहे कथित रूप के अत्याचारों का मुद्दा उठाया और शांति का हवाला देते हुए पुरे विश्व का ध्यान आकर्षित कर भारत और केंद्र सरकार की छवि पर सवाल उठाए. मलाला की इस ट्वीट के बाद सोशल मीडिया पर कई लोगो का गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने उनकी जमकर क्लास भी ले ली. चलिए पहले आप ये पढ़िए कि मलाल ने आहिर ट्वीट क्या किया और लोगो ने बदले में क्या खरी खोटी सुनाई.
मलाला तथाकथित रईस पुरस्कार विजेता अब 2 दशकों की गहरी नींद के बाद जाग गई है। यदि आप पाकिस्तानी हैं तो आप पाकिस्तान में क्यों नहीं रहते, इंग्लैंड में क्यों रहते हैं? आप पाकिस्तान में आतंकवादियों द्वारा अपने जीवन से डरे हुए हैं? काश्मीर हमारा था, हमारा है और केवल हमारा रहेगा!
????— G D BAKSHI (PARODY) (@GdBakshiJe) August 8, 2019
चलिए अब जानते हैं कि आखिर लोग मलाला की हिपोक्रिसी (दोगलापन) को लेकर आलोचना क्यों कर रहे हैं. इसे समझने के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं. बात 2009 की हैं जब मलाला का परिवार खैबर पख्तूनख्वा के स्वात घाटी के स्वात जिले में कई स्कूलें चलाया करता था. उस दौरान इस इलाके पर तालिबान का कब्ज़ा था जो महिलाओं पर बेहिसाब अत्याचार करने के लिए बदनाम था. तब मलाला ने घाटी के अपने जीवन को लेकर बीबीसी उर्दू पर एक ब्लॉग लिखा था. इसके बाद वो पहली बाद मीडिया की सुर्ख़ियों का हिस्सा बनी थी. फिर न्यूयॉर्क टाइम्स के पत्रकार एडम बी एल्लिक ने मलाला के जीवन पर डॉक्यूमेंट्री बनाई. इसके बाद मलाल ने मीडिया में लड़कियों की शिक्षा के महत्त्व पर कई इंटरव्यू दिए. इस तरह वे तालिबान का टारगेट बन गई.
अब 9 अक्टूबर 2012 को मलाला की स्कूल बस पर तालिबानियों ने आतंकी हमला बोला और मलाला के ऊपर तीन गोलियां दाग दी. फिर इलाज हेतु मलाला बर्मिंघम के क्वीन एलिजाबेथ अस्पताल में गई. बस तभी से मलाला अपने परिवार के साथ यूके (लंदन) में रहने लगी. तालिबानियों का सामना कर मलाला की छवि विश्व भर में एक वीरांगना के रूप में बनकर उभरी. 2014 में उन्हें युवा नोबल पुरुष्कार भी प्राप्त हुआ. इधर मलाला के अब्बू ज़ियाउद्दीन ने ‘द मलाला फ़ाउंडेशन’ की नीव रखी. इस संस्था में दुनियां भर से कई अरबों डॉलर का डोनेशन जमा हुआ. रिपोर्ट्स के अनुसार इन पैसो का इस्तेमाल लेबनॉन के बीका घाटी में सीरियाई प्रवासियों के बच्चों के लिए स्कूल खोलने के लिए किया गया.
अब आप सोच रहे होंगे ये सभी तो बहुत अच्छी बातें हैं, लेकिन कहानी में एक ट्विस्ट या फिर कहे दोगलापन भी हैं. मलाल का एक अलग पहलू अक्टूबर 2013 में तब देखने को मिला जब उन्होंने बराक ओबामा से बातचीत के दौरान ड्रोन द्वारा आतंकियों को निष्क्रिय करने की प्रोसेस पर दोबारा विचार करने को कहा. मलाला का कहना था कि आतंकियों को एजुकेशन देकर इस प्रॉब्लम को हल किया जा सकता हैं. कई लोगो को मलाला का ये विचार बड़ा बेतुका लगा. मतलब वे खुद आतंकी हमले का शिकार रह चुकी हैं. अब या तो उन्हें जानकारी नहीं कि अधिकतर आतंकवादी संगठनो के आका पूर्ण शिक्षित हैं या फिर उनकी सुई आतंकवाद का मानवीयकरण करने पर जानबुझकर अटकी.
मलाला के ये बदला रूप दूसरी बार कश्मीर मुद्दे पर अपनी राय रखते समय सामने आया. उनका कहना था कि किसी भी हमले का जवाब हमला कर देना और बदला लेना उचित नहीं हैं. पीएम मोदी और इमरान खान को बातचीत कर ये मसला सुलझाना चाहिए. अब ये बात मलाला द्वारा तब कही गई थी जब भारत ने पाकिस्तान के बालकोट पर एयरस्ट्राइक की थी. इसी तरह अवैध रोहिंग्या उग्रवादियों की प्रशंसा करने और इनके खिलाफ मुहीम चलाने वाली म्यांमार नेता औंग सान सू को खरी खोटी सुनाने की वजह से भी मलाला की आलोचना हुई थी. आईसीसी विश्व कप के दौरान भी उन्होंने अपनी बातों से ये जाहिर करने की कोशिश की थी कि पाकिस्तान को क्रिकेट टूर्नामेंट के लिए बैन नहीं करना चाहिए, ये देश क्रिकेट के लिए सुरक्षित हैं. ऐसे में लोगो ने उनसे पूछा कि फिर आप वापस पाकिस्तान ही क्यों नहीं चले जाती?
कुल मिलाकर मलाला की हिपोक्रिसी इस बात को लेकर हैं कि यदि वो सच में आतंवाद को बातचीत से खत्म करने का विचार रखती हैं तो खुद तालिबान से बातचीत कर मसला हल क्यों नहीं करती? वहीं उनके अपने मुल्क में लड़कियों के अधिकार, शिक्षा और आज़ादी के वांदे हैं. ऐसे में वे यूके में बैठ ज्ञान देने की बजाए अपने मुल्क वापस क्यों नहीं जाती?