इस अनोखे गाँव में इंसान से लेकर जानवर तक सभी अंधे हैं, पत्थरों पर सोकर बिताते हैं जीवन
ये दुनियां बहुत बड़ी हैं. यहां आपको हर तरह की जगह और जीव जंतु देखने को मिल जाएंगे. ऐसे में इंसानों की बात करे तो ये भी इस संसार के कोने कोने में बसे हुए हैं. बस फर्क इतना हैं कि इन सबका रहन सहन, रंग रूप, और सोच दूसरों से अलग होती हैं. कुछ लोग तो दूसरों से इतने अलग होते हैं कि उनके बारे में सुन के ही बदन में कपकपी दौड़ जाती हैं. खासकर दूर दरास के इलाको में बसे गाँव में कई अजीब तरह की चीजें देखने को मिलती हैं. ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे अनोखे गाँव के बारे में बताने जा रहे हैं जहाँ रहने वाले इंसान और जानवर दोनों ही अंधे हैं. इतना ही नहीं यहां जब किसी बच्चे का जन्म होता हैं तो कुछ दिनों के बाद वो भी अँधा हो जाता हैं.
दरअसल हम जिस गाँव की बात कर रहे हैं वो मैक्सिको के प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में बसा हुआ हैं. इस रहस्यमयी गाँव का नाम हैं ‘टिल्टेपैक’ हैं. इस गाँव की आबादी करीब 300 हैं. ये रैड इंडियन लोग हैं. पुरे गाँव में करीब 60 पत्थर की झोपड़ियां बनी हैं है जिनमे ये रहते हैं. इनके पास सोने को कोई नर्म बिस्तर नहीं हैं ये पत्थर पर ही सो जाते हैं. इतना ही नहीं इनके घर ना तो कोई खिड़की होती हैं और ना ही रोशनदान. बस एक मुख्य दरवाजा भर होता हैं. ये अपने घर में बिजली, दीपक जैसी चीजें भी नहीं रखते हैं. इसकी वजह ये हैं कि यहाँ रहने वाले सभी लोग अंधे हैं. ऐसे में इन्हें रोशनी की कोई जरूरत ही नहीं पड़ती हैं.
ये गाँव के लोग आम मॉडर्न जिंदगी से काफी दूर और अलग थलग हैं. इनकी जीवनशैली आदि मानव जैसी हैं. रोज सुबह सब ये पक्षियों की चहचाहट सुनते हैं तो उठ जाते हैं और काम पर चले जाते हैं. फिर जब पक्षी बोलना बंद कर देते हैं तो इसे रात समझ घर लौट आते हैं. अंधे होने की वजह से इन्हें दिन और रात का पता नहीं लग पाता हैं. ऐसे में ये समय जानने के लिए पक्षियों का सहारा लेते हैं.
दरअसल ये सभी लोग अंधे किसी एक बिमारी की वजह से हैं. इसके साथ ही यहां की जलवायु और वातावरण भी बड़ा विचित्र हैं जो शायद इनके अंधे होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं. इसलिए इस गाँव में रहने वाले पालतू जानवर तक अंधे होते हैं. इनका यदि कोई बच्चा पैदा होता है तो शुरुआत के कुछ हफ्ते वो सामान्य रहता है लेकिन फिर अंधा हो जाता हैं. घने जंगलों के बीच रहने के कारण इनका कोई विकास भी नहीं हो पा रहा है. ये समाज और उसके तौर तरीको से भी कौसो दूर हैं.
ऐसा नहीं हैं कि सरकार ने इनकी मदद करने की कोई कोशिश ही नहीं की. बल्कि सरकार ने इनकी बिमारी का इलाज भी कराना चाहा लेकिन वे डॉक्टर्स सफल नहीं रहे. सरकार ने इन्हें गाँव से निकाल दूसरी जगह बसाने की भी कोशिश की थी लेकिन उन्हें अन्य जगहों की जलवायु सूट नहीं हुई. ऐसे में इन्हें वापस गाँव छोड़ना पड़ा.