महामृत्युंजय मंत्र: अकाल मृत्यु से मिलती है मुक्ति, दूर होते हैं जानलेवा रोग, जानें जाप विधि
शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव को त्रिदेव कहा गया है. शिवजी की कल्पना एक ऐसे देव के रूप में की जाती है जो कभी संहारक तो कभी पालक होते हैं. भगवान शिव को संहार का देवता भी कहा जाता है. इसी तरीके से भगवान शिव के कुल 12 नाम प्रख्यात हैं. शिव भगवान अपने अनोखे रूप की वजह से सबसे अलग भी दिखते हैं. महिला से लेकर पुरुष सभी उनकी भक्ति में लीन रहते हैं. अगर देखा जाए तो भगवान शिव का रूप सबसे हटके है. भगवान की सौम्य आकृति और रुद्र रूप दोनों ही विख्यात हैं. भोलेनाथ की पूजा अगर सच्चे दिल से की जाए तो वह अपने सभी भक्तों की बात सुनते हैं. आज के इस पोस्ट में हम आपको भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए महामृत्युंजय मंत्र के बारे में बताने जा रहे हैं. इस मंत्र के जाप से आप अकाल मृत्यु से मुक्ति का वरदान पा सकते हैं और भक्तों को असाध्य रोगों से भी मुक्ति मिल जाती है.
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्II
किस समस्या में इस मंत्र का कितने बार करें जाप
* अगर आप भय से छुटकारा पाना चाहते हैं तो मंत्र का 1100 बार जाप करें.
* रोग से मुक्ति पाने के लिए महामृत्युंजय जप का 11000 बार जाप करें.
* पुत्र की प्राप्ति, उन्नति, अकाल मृत्यु से बचने के लिए इस मंत्र का सवा लाख बार जाप करें.
याद रहे कि इस मंत्र का फल तभी प्राप्त होगा जब आप पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान शिव की साधना करेंगे. इसे पूर्ण श्रद्धा के साथ करने पर ही फल की प्राप्ति की प्रबल संभावना रहती है.
महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति की कथा
पौराणिक मान्यताओं की मानें तो ऋषि मृकण्डु और उनकी पत्नी मरुद्मति ने पुत्र की प्राप्ति के लिए भोलेनाथ की कठोर तपस्या की. उनकी तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए. दर्शन देने के पश्चात भगवान शिव ने उनके सामने मनोकामना पूर्ति के दो विकल्प रखे. पहला- अल्पायु बुद्धिमान पुत्र और दूसरा- दीर्घायु मंदबुद्धि पुत्र. इस पर ऋषि मृकण्डु ने अल्पायु बुद्धिमान पुत्र की इच्छा की जिसके परिणामस्वरूप उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिनका नाम उन्होंने मार्कण्डेय रखा. लेकिन मार्कण्डेय का जीवनकाल केवल 16 वर्ष का था. जब मार्कण्डेय को इस बारे में पता चला तो उन्होंने भगवान शिव की कड़ी तपस्या की. वह पूरे श्रद्धा और विश्वास क साथ महादेव की पूजा-अर्चना में लग गए. 16 वर्ष के होने पर जब यमराज मार्कण्डेय के प्राण हरने आए तब वह वहां से भागकर काशी पहुंच गए. यमराज ने भी उनका पीछा नहीं छोड़ा. मार्कण्डेय भागते-भागते काशी से कुछ दूरी पर कैथी नामक गांव में एक मंदिर के शिवलिंग से लिपट गए और भगवान शिव का अह्वान करने लगे. मार्कण्डेय की पुकार सुनकर महादेव वहां प्रकट हुए और भगवान शिव के तीसरे नेत्र से महामृत्युंज मंत्र की उत्पत्ति हुई. उसके बाद भगवान शिव ने मार्कण्डेय को अमर रहने का वरदान दे दिया जिसके बाद यमराज को वहां से वापस यमलोक आना पड़ा.
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