पश्चिम बंगाल में राजनीति की भेंट चढ़े राम, सोशल मीडिया पर मचा बवाल
पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी पर धर्मनिरपेक्षता का भूत इस कदर सवार है कि अब परम्परागत शब्दावलियों को भी बदल देना चाहती हैं. बीते दिनों ट्विटर पर #ReplaceRamWithRong खूब ट्रेंड किया. ट्विटर यूजर्स ने ममता बनर्जी और उनकी सरकार के एक फैलसे पर जमकर प्रतिक्रियां दीं.
@sardanarohit sir wb के स्कुल बुक में रामधनु(rainbow) रंगधेनु किया है सारे हिन्दू नाम और रिलेसन जैसे मम्मी पापा बदल के अम्मी अब्बा किया है। pic.twitter.com/EOUy9j7T6v
— Rupam Dana (@DanaRupam) 11 January 2017
स्कूल की किताबों से राम का नाम हटाया :
दरअसल पश्चिम बंगाल बोर्ड की 7वीं की किताबों में कुछ बुनियादी बदलाव किये गये हैं, उन बदलावों को ममता बनर्जी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के नजरिये से किया गया माना जा रहा है, इस साल सामान्य बदलावों के नाम पर जो बदलाव किये गये हैं उनमे से एक है रामधोनु को रोंगधोनु करना.
परम्पराओं से खिलवाड़ :
बांग्ला भाषा में रेनबो को रामधोनु बोला जाता है जिसका अर्थ राम का धनुष होता है लेकिन पाठ्यक्रम में इस शब्द को बदल दिया गया है और इसकी जगह एक नया शब्द लाया गया है जिसका पारंपरिक तौर पर कोई अस्तित्व नहीं है. नया शब्द है रोंगधोनु यानि कि रामधोनु बन गया रोंगधोनु शाब्दिक तौर पर इसका अर्थ हुआ रंगों का धनुष.
समुदाय विशेष को लुभाने के लिये उठाया कदम:
लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर इस बदलाव की जरूरत क्या पड़ी, क्या ये बदलाव तथाकथित धर्मनिरपेक्ष छवि को बनाये रखने के लिये किया गया, क्या इसके जरिये दीदी यानी कि ममता बनर्जी बंगाल के मुस्लिम वोटर्स को अपनी तरफ खींचना चाहती हैं. सीधे तौर पर तो यही समझा जा रहा है कि दीदी ने यह पोलिटिकल खेल इसीलिए खेला है.
कितना प्रभावशाली है ममता का निर्णय :
एक सवाल यह भी उठता है कि दीदी ने जिन लोगों के लिये एक पारंपरिक शब्दावली को ओछी राजनीति के भेंट चढ़ा दिया क्या उन लोगों को इस बात से असर पड़ता है, लेकिन इस बात को हम ऐसे भी समझ सकते हैं कि जिस देश में लोग अभिवादन के तौर पर राम राम बोला करते हैं चाहे वह किसी भी धर्म या संप्रदाय के क्यों ना हो उस देश में अपनी भाषा से मिले किसी शब्द में राम का नाम होने से उन्हें भला क्यों दिक्कत होगी. सच्चाई तो यही है कि इस शब्द पर ना तो कभी विवाद था और ना ही कभी विवाद होता
लेकिन यह शब्द भी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं की राजनीति के नाम चढ़ गया. हमारे देश में रामायण और महाभारत को सिर्फ हिंदुत्व से जोड़कर नहीं देखा जाता बल्कि जान सामान्य में इन कथाओं का अपना एक महत्व और स्थान भी है. और जान सामान्य में केवल हिन्दू समुदाय ही नहीं हर धर्म और संप्रदाय के लोग आते हैं, और ना सिर्फ हिन्दू बल्कि दूसरे धर्म और सम्प्रदायों के लोग भी इन कथाओं को अपने से जुड़ा हुआ और परम्पराओं से मिली विरासत मानते हैं.