अद्भूत होती है बरसाने की लट्ठमार होली, जानें क्यों पुरुषों को लाठी से मारती है महिलाएं
होली का त्यौहार एक ऐसा त्यौहार जिसका इंतजार बहुत ही बेसब्री से किया जाता है। ये ही तो ऐसा त्यौहार है जहां सभी रंगों में डूबकर सारी दुश्मनी भूल जाते हैं और एक दूसरे को खुशी से गले लगा लेते हैं। होली सिर्फ हमारे देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में मनाई जाती है, लेकिन अपने देश में इसकी रुप कुछ औऱ ही होता है। वहीं इनमें से सबसे खास ब्रज की होली होती है। ब्रज के बरसाना और नंदगांव में होली बिल्कुल ही अनोखे अंदाज में मनाई जाती है और यहां की होली कहलता ही लट्ठमार होली। ये फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है।
पुरुषों को लट्ठ से मारती हैं महिलाएं
पूरे देश में हर्षोउल्लास से होली का त्यौहार मनाया जाता है, लेकिन ब्रज में लट्ठमार होली सबसे खास होती है। ब्रज में लट्ठमार होली की परंपरा सदियों से चली आ रही है। यहां की लट्ठमार होली देखने के लिए देश विदेश से हर साल यहां काफी लोग आते हैं। इसमें एकदम हटके अंदाज में होली खेली जाती हैं। यहां औरतें हाथो में बड़ी बड़ी लट्ठ लेकर अपने पतियो, प्रेमियों , पुरुषों को मारती हैं औऱ वो अपने आप को बचाते हैं।
लट्ठमार होली सिर्फ आनंद के लिए नहीं खेली जाती है इसे नारी सशक्तिकरण का प्रतीक माना जाता है और इसके पीछे श्रीकृष्ण की कहानी जुड़ी है। श्रीकृष्ण ने रासलीला रचाई है, लेकिन वो औरतों का सम्मान बहुत करते थे। वो सिर्फ उनके साथ हंसी ठिठोली का करते थे, लेकिन जब भी कोई भी स्त्री मुसीबत में पड़ी है श्रीकृष्ण ने हमेशा उनकी मदद की है। लट्ठमार होली में श्रीकृष्ण के उसी संदेश क प्रदर्शित किया जाता है। यहां पर महिलाएं उसी को दर्शाने के लिए लाठियों से नटखट अंदाज में पुरुषों को मारती हैं।
ऐसी होली आपको पूरे देश में कहीं औऱ देखने को नहीं मिली है। मथुरा और बरसाना की लट्ठमार होली अपने विरासत संजोए हुए है। यहां की मिट्टी इतनी पावन और पवित्र है की माना जाता है कि बरसाना की होली में श्रीकृष्ण और राधा रानी की झलक आती है। यहां पर भगवान श्रीकृष्ण की झलक हर किसी में देखने को मिल जाएगी।
हर रुप मे दिखते हैं राधे-कृष्ण
बरसाने की हुरियारिनों और नंदगांव के हुरियारों की बीच लट्ठमार होली होती हैं।पुरुष सिर के ऊपर छतरीनुमा चीजें रखकर खुद का बचाव करते हैं और महिलाएं उनपर जमकर लाठी बरसाती हैं।इससे पहले हुरियारे नंदबाबा मंदिर में आशीर्वाद के बाद पताका लेकर निकलते हैं औऱ वहां से हुरियारे पीली पोखर पहुंचते है। साज सज्जा औऱ ढाल कसने को बाद रसिया गाते हैं फिर लाड़िली जी मंदिर की ओर बढ़ जाते हैं। दर्शन के बाद वापसी में रंगील गली में लट्ठमार होली खेली जाती है।
जैसी बरसाने में लट्ठमार होली खेली जाती है। नंदगांव की लट्ठमार होली बरसामे की लट्ठमार होली का प्रतिरुप मानी जाती है। यहां पर बरसाना के हुरियारे और नंदगांव की हुरियारिनों के बीच होली होती है। इस होली में लाठी ढाल का सामजंस्य देखने को मिलता है। बरसाना और नंदगांव की होली , आज भी ब्रज में भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के पवित्र प्रेम दिखाई देता है।
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