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मसूद अजहर का पक्ष लेने पर चीन की घेराबंदी, दुनिया के 3 बड़े देशों आये निर्णायक लड़ाई के पक्ष में

जैश-ए-मोहम्मद सरगना मसूद अजहर का साथ देना चीन देश को अब महंगा पड़ सकता है। क्योंकि चीन के बार बार मसूद अजहर को बचाए जाने से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी अन्य 14 सदस्य काफी नाराज हैं। कहा जा रहा है कि चीन देश को समझाने की आखिरी कोशिश अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने की है और कई हद तक ये कोशिश कामयाब रही है। इस बातचीत के दौरान चीन ने अजहर को आतंकवादी घोषित किए जाने की भाषा को लेकर कुछ बदलाव करने की मांग रखी है और इन मांग पर ये तीनों देश अभी विचार कर रहे हैं।

एक साथ आए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी देश

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी सदस्यों को इस बार चीन का मसूद अजहर का पक्ष लेने सही नहीं लगा है। सूत्रों के हवालों से आ रही खबर की माने तो मसूद अजहर के मामले में चीन देश के रवैये को लेकर अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन उससे नाराज हैं। जिसके बाद इन तीनों देशों ने चीन से इस मुद्दे पर बात की है और अगर चीन मान जाता है तो चीन के लिए ये बेहतर होगा। हालांकि अगर चीन की और से फिर से वहीं रवैया रहता है तो सुरक्षा परिषद में ओपन वोटिंग करवाने पर विचार किया जा सकता है। सुरक्षा परिषद के एक राजनयिक ने चीन के मसूद का साथ देने पर अपनी निराशा प्रकट की है और कहा है कि अगर ये देश मसूद को वैश्विक आतंकी की सूची में डालने के लिए तैयार नहीं होते है तो फिर दूसरी रणनीति अपनाई जाएगी।

4 बार मसूद का पक्ष ले चुका है चीन

14 फरवरी को भारत में हुए पुलवामा हमले के बाद चौथी बार मसूद अजहर के खिलाफ सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव लाया गया था। क्योंकि इस हमले की जिम्मेदारी खुद मसूद के आतंकी संगठन ने ली थी। मगर इस बार भी चीन ने इस प्रस्ताव पर अपनी सहमति नहीं दी। जिसके चलते ये प्रस्ताव गिर गया। चीन के इस रवैये ने हर किसी को हैरान कर दिया। क्योंकि इस बार लग रहा था कि चीन  मसूद अजहर के मसले में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अन्य 14 सदस्य देशों का साथ देगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और एक बार फिर से चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मसूद अजहर का पक्ष लेते हुए अपनी वीटो पावर इस्तेमाल कर दी।

गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्य हैं और इन पांच सदस्यों में से एक सदस्य चीन भी है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्यों को वीटो पावर का अधिकार है और इस पावर के तहत अगर किसी प्रस्ताव पर इन पांच देशों (अमेरिका, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और चीन ) में से एक भी देश सहमत नहीं होता है और कोई भी एक देश अपनी वीटो पवार का इस्तेमाल कर देते हैं, तो वो प्रस्ताव गिर जाता है। अपनी इसी पावर का इस्तेमाल चीन चार बार कर चुका है। हालांकि इस बार चीन की और से इस्तेमाल की गई वीटो पावर से अन्य स्थाई सदस्य देश भी परेशान हैं। जिसके चलते उन्होंने चीन को इस बार चेतावनी दे दी है और आशा है कि अब चीन अपने रवैये को बदल सकता है।

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