जाट, जट्ट सिख और राजपूत ही क्यों बनते हैं राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड? जानकर नहीं होगा यकीन
देश का सबसे ऊंचा पद और पहले व्यक्ति के तौर पर राष्ट्रपति जाना जाता है और आजकल फिर इनका पद सुर्खयों में है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस पद में विराजमान व्यक्ति की सुरक्षा में तैनात रहने वाले गार्ड्स की जातियों पर सवाल उठ रहे हैं. इसी क्रम में राष्ट्रपति की सुरक्षा करने वाले गार्ड्स की भर्ती में तीन जातियों पर ही सवाल पर विजार किए जाते हैं ये बात कुछ लोगों को समझ नहीं आ रही और वे इसी क्रम में राष्ट्रपति के सुरक्षा गार्डों की भर्ती में तीन जातियों पर ही विचार करना कुछ मायनों में सही नही है. इस मामले को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की गई है. जाट, जट्ट सिख और राजपूत ही क्यों बनते हैं राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड? इसपर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने चार हफ्ते के अंदर क्रेंद्र सरकार, रक्षा मंत्रालय और चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ से जवाब भी मांगा गया है.
जाट, जट्ट सिख और राजपूत ही क्यों बनते हैं राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड?
राष्ट्रपति के सुरक्षा गार्डों की भर्ती में तीन जातियों पर ही विचार किए जाने पर दिल्ली हाई कोर्ट में जो याचिका दायर की गई है वो आजकल सुर्खियों में बना हुआ है. यह मामला उस समय सामने आया जब जुलाई, 2017 में सिडेंट बॉडीगार्ड ने ग्रूम्स के रिक्त 03 पदों पर भर्ती के लिए आवेदन आमंत्रित किया था. उस आवेदन में साफतौर पर बताया गया था कि जाट, राजपूत, जाट-सिख जाति से संबंध रखता हो वो ही आमंत्रित है. ऐसे में हरियााणा में ही रहने वाले गौरव यादव ने जनहित याचिता दायर की और इस भर्ती प्रक्रिया को रद्द करने की मांग भी की. गौरव का आरोप था कि जाति को छोड़कर राष्ट्रपति के लिए सुरक्षा गार्ड की भर्ती के लिए हर कोई योग्यता रखता है. इसमें खास बात ये है कि पहले भी इस तरह की जनहित यात्रिका दायर की और भर्ती प्रक्रिया को रद्द करने की मांग हाई कोर्ट में रखी है. इनकी खास बात ये है कि पहले भी इस तरह से जनहित याचिका लगाई गई थी जिसे सुप्रीमो कोर्ट ने रद्द कर दिया है और इस अर्जी को पूरी तरह से गलत बताया है.
इस बारे जानिए कुछ और बातें
राष्ट्रपति के सुरक्षा गार्ड की नियुक्ति में जाट, राजपूत और सिख जाट को शामिल करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने सेना की अनुशंसा पर साल 2013 में दिया था. हालांकि राष्ट्रपति के सुरक्षा में तैनात गार्डों की नियुक्ति हमेशा आम लोगों के बीच चर्चा का विषय बनाए रखती है औरयही कारण है कि सिर्फ कुछ पदों की नियुक्ति के लिए हजारो आवेदन देश भर से आते हैं. भारत में इसकी शुरुआत अंग्रेजों के जमाने से होती आ रही है. आपको बता दें कि पहली बार साल 1773 में वारेन हैंस्टिंग्स को भारत का वायसराय जनरल बनाया गया और तभी उनकी सुरक्षा में 50 जवान शामिल हुए थे. इस व्यवस्था को साल 1947 में आजादी के बाद आज भी कायम है.