बॉलीवुड

जो बात फिल्म मणिकर्णिका में नहीं दिखाई गई : रानी लक्ष्मीबाई की मौत के बाद उनके बेटे का क्या हुआ

न्यूज़ट्रेंड वेब डेस्क: कंगना रनौत की फिल्म मणिकर्णिका ने बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा रखी है। जहां कुछ लोगों ने फिल्म की और कंगना की एक्टिंग और डायरेक्शन की तारीफ कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोगों को फिल्म खासा पसंद नहीं आ रही है। दरअसल फिल्म में कुछ चीजों में कमी भी हैं। फिल्म की पूरी कहानी रानी लक्ष्मीबाई की गौरव गाथा वाली कविता ‘खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झांसी वाली रानी थी’ जो हम सभी ने पढ़ी है, सिर्फ इसके इर्द-गिर्द फिल्म की रूपरेख नजर आती है। इसके अलावा फिल्म और किसी तरह की जानकारी देने में असफल रही है।

फिल्म की कहानी

फिल्म की शुरूआत होती है बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन के वॉइस ओवर से, जिसके बाद रानी लक्ष्मीबाई के साहस और बलिदान को दर्शाती फिल्म मणिकर्णिका में रानी लक्ष्मीबाई की शौर्यगाथा को बड़े परदे पर बखूबी दिखाया गया है। फिल्म के विजुअल्स काफी अच्छे हैं। और रानी लक्ष्मीबाई के किरदार को बखूबी दिखाया गया है। लेकिन फिल्म में कमी है तो वो इसकी रिसर्च में फिल्म में वहीं चीजें देखने को मिली हैं जो सबलोग जानते हैं। अगर फिल्म में और रिसर्च की जाती तो ये फिल्म लोगों को ज्यादा पसंद आती।

भले ही फिल्म से आपको इस बात की जानकारी ना मिली हो लेकिन आज हम आपको एक ऐसी जानकारी देंगे जिसे शायद ही आप जानते हों। आज हम आपको रानी लक्ष्मीबाई के बेटे के बारे में बताएंगे कि आखिर उनकी मौत के बाद उनके बेटे का क्या हुआ और उसकी देखभाल किसने की।

 

बता दें कि झांसी की रानी जब अंतिम संघर्ष कर रही थीं तो उन्होंने अपनी पीठ पर अपने बेटे दामोदर (असली नाम आनंद राव) को बांध रखा था। बता दें कि 1857 के विद्रोह की सबसे महत्वपूर्ण कहानी को जीने वाला राजकुमार ही उनका बेटा था जिसने उसी गुलाम भारत में जिंदगी काटी, जहां उसे भुलाकर उसकी मां के नाम की कसमें खाई जा रही थी।

बता दें कि अंग्रेजी दस्तावेजों में दामोदर को कभी रानी लक्ष्मीबाई का बेटा नहीं माना गया जिसकी वजह से एक वीरांगना का बेटा होते हुए भी उसने एक तरह से अभिशप्त जीवन जिया। उनकी इस बदहाली के जिम्मेदार सिर्फ फिरंगी ही नहीं हिंदुस्तान के लोग भी थे। बता दें कि दामोदर, लक्ष्मीबाई का बेटा था लेकिन इस बात का वर्णन 1959 में छपी वाई एन केलकर की मराठी किताब ‘इतिहासाच्य सहली’ (इतिहास की सैर) में दामोदर राव का इकलौता वर्णन में की गई है।

बता दें कि रानी लक्ष्मीबाई का खुद की कोई संतान नहीं थी जिसके चलते उन्होंने दामोदर को गोद लिया था। शास्त्रों की मानें तो दामोदर ने बताया था कि ज्योतिषी ने बताया कि मेरी कुंडली में राज योग है और मैं राजा बनूगा हालांकि ये बात उनकी जिंदगी में साबित तो हुई लेकिन बहुत दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से। उन्होंने बताया कि तीन साल की उम्र में महाराज ने मुझे गोद ले लिया था लेकिन गोद लेने की औपचारिक स्वीकृति आने से पहले ही रानी लक्ष्मीबाई के पति का देहांत हो गया। जिसके बाद महारानी लक्ष्मीबाई ने कलकत्ता में लॉर्ड डलहॉजी को संदेश भेजा कि मुझे वारिस मान लिया जाए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

डलहॉजी ने आदेश दिया कि झांसी को ब्रिटिश राज में मिला लिया जाएगा, जिसके बाद लक्ष्मीबाई को 5,000 रूपए सालाना पेंशन दी जाएगी। साथ ही महाराज की सारी सम्पत्ति भी उनके पास रहेगी । जिलके बाद दामोदर का पूरा हक उनके खजाने पर होगा मगर लेकिन उनको झांसी का राज नहीं मिलेगा।

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