पाना है भगवान शिव का आशीर्वाद और खुशियाँ, तो इस ख़ास दिन में रखें ये व्रत, हर मनोकामना होगी पूरी
हिंदू धर्म में भगवान शिव को सबसे शक्तिशाली भगवान माना गया है. ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से भगवान शिव की उपासना कारता है या उनके व्रत रखता है, तो उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाती है. ऐसे में आज हम आपको शिव भगवान के एक ऐसे व्रत के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे रखने से आप भगवान शिव का आशीर्वाद पा सकते हैं साथ ही यह व्रत जन्म जन्म के बंधन से मोक्ष पाने का सबसे उत्तम जरिया है. इस व्रत को हम सभी “प्रदोष” व्रत के नाम से जानते हैं. प्रदोष व्रत रखने से जीवन में चल रहे सभी दुःख दर्द और कष्ट दूर हो जाते हैं.
यह व्रत हिंदू धर्म के बाकी सभी अन्य व्रतों में से सबसे ख़ास माना जाता है. बता दें कि यह व्रत हर साल हिंदू चंद्र कैलंडर के अनुसार चंद्र मास के 13 वें दिन यानि त्रयोदशी में रखा जाता है. इस दिन भगवान शिव की आराधना करने से सभी तरह के पाप मिट जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है. चलिए जानते हैं इस व्रत की महिमा क्या है और व्रत को किस प्रकार रखने से क्या क्या लाभ मिल सकते हैं.
प्रदोष व्रत की महिमा
हिंदू धर्म के शास्त्रों के अनुसार जितना पुन्य हमे दो गायों को दान करने पर मिलता है, उतना ही पुन्य अकेला प्रदोष व्रत देता है. इस व्रत को लेकर एक पौराणिक कथा काफी माननीय है. कहा जाता है कि एक दिन ऐसा आएगा जब चारों ओर अधर्म की स्तिथि बन जाएगी, अन्याय और अनाचार का एकाधिकार हो जाएगा, मनुष्य स्वार्थी हो जाएगा और हर प्रकार के नीच कार्य करने लगेगा, उस कठिन समय में जो भी व्यक्ति प्रदोष व्रत रख के शिव पूजन करेगा, उसे स्वयं शिव की कृपा हासिल हो जाएगी और वह जन्म जन्म के फेरों से सदैव के लिए मुक्ति पा लेगा.
क्यों रखा जाता है प्रदोष का व्रत
प्रदोष के व्रत को रखने के पीछे एक ख़ास कथा शामिल है. ऐसा कहा जाता है कि चंद्र को क्षय रोग था जिसके कारण उन्हें सही से चलने फ़िरने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. ऐसे में एक दिन भगवान शिव ने उनके इस दोष का निवारण करने के लिए उन्हें त्रयोदशी पर प्रदोष का व्रत रखने की सलाह दी थी और उन्हें पुनर्जीवन प्रदान किया था. इसी वजह से इस दिन को प्रदोष के नाम से जाना जाता है और तब से लेकर आज तक लोग इस व्रत को शिव की कृपा हासिल करने के लिए रखते आ रहे हैं.
प्रदोष व्रत की विधि
प्रदोष व्रत रखने के लिए सुबह उठ कर स्नान करें और भगवान भोलेनाथ का स्मरण करें. इस व्रत में किसी तरह का कोई आहार नहीं लिया जाता इसलिए पूरा दिन भूखा रहा जाता है. शाम में सूर्यास्त से एक घनता पहले स्नान करके श्वेत वस्त्र धारण करने के बाद पूजा स्थल को गंगा जल से पवित्र किया जाता है और मंडप को गाय के गोबर से लीप कर तैयार किया जाता है. इस मंडप में पांच रंगों का उपयोग करके एक रंगोली बनाई जाती है. व्रत के लिए कुशा के आसन का इस्तेमाल किया जाता है और उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके भगवान शंकर की आराधना की जाती है. पूजन के दौरान शिव भगवान के मंत्र ‘ऊँ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए शिव को जल चढ़ाना चाहिए.