फोर्ड के बर्ताव से ‘अपमान’ का घूंट पीकर रह गए थे रतन टाटा, इस तरह से लिया बेइज़्ज़ती का बदला
इस दुनिया में हर इंसान की जिंदगी में कभी ना कभी बुरा समय आता है जिसमें वो खुद को हारा हुआ समझता है. मगर इस बात को हमें समझना चाहिए कि अगर समय हमें नीचे गिराता है तो ये समय ही है जो हमें ऊपर भी उठाता है. हालात सबके अच्छे और बुरे होते हैं जिसमें हमें संयम से काम लेकर आगे बढ़ना चाहिए. ऐसा ही कुछ समय साल पहले भारत के बड़े बिजनेस टायकून रतन टाटा के साथ हुआ था जब हालात ने उन्हें दूसरों के सामने झुकने पर मजबूर कर दिया था और उसका फायद उठाकर सामने वाले ने उन्हें दिल तोड़ देने वाली बात कह दी थी. फोर्ड के बर्ताव से ‘अपमान’ का घूंट पीकर रह गए थे रतन टाटा, इसके बाद उन्होंने इसका बदला मेहनत और लगन के साथ दिया जिसे फोर्ड कंपनी के मालिक ने आज भी याद रखा होगा.
फोर्ड के बर्ताव से ‘अपमान’ का घूंट पीकर रह गए थे रतन टाटा
28 दिसंबर, 1937 को गुजरात के सूरत में जन्में रतन टाटा का पूरा नाम रतन नवल टाटा है. स्वभाव से शर्मीले और किताबों से दोस्ती करने वाले टाटा मुंबई के एक फ्लैट में अकेले रहते हैं. हर सफल आदमियों का एक किस्सा होता है इनके जीवन में भी एक ऐसा दौर आया था जब इन्होंने अपनी टाटा मोटर्स कंपनी को बेचने का फैसला कर लिया था. ये बात साल 1998 की है जब रतन टाटा की कंपनी टाटा मोटर्स ने कार टाटा इंडिटा लॉन्च की और इस प्रोजेक्ट से बहुत सी उम्मीदें होने के बाद भी उन्हें बहुत बड़ा नुकसान झेलना पड़ा था. हालात बेहतर होने लगे तो कंपनी के शेयरहोल्डर्स ने इस कंपनी को समय रहते बेचने की राय टाटा को दी. टाटा ने इस बात से सहमति जताते हुए खुद अपने शेयरहोल्डर्स के साथ फोर्ड कंपनी से डील करने अमेरिका पहुंच गए. वहां हुई तीन घंटे की उस मीटिंग में फोर्ड कंपनी के चेयरमैन ने टाटा के साथ बहुत ही बद्तमीजी से बात की और कहा जब आपको बिजनेस करने का कोई ज्ञान नहीं है तो इस कार में इतना पैसा लगाया क्यों. अब हम ये कंपनी खरीदकर आपके ऊपर एक एहसान कर रहे हैं. टाटा अपनी कंपनी के हुए लॉस से बहुत परेशान थे और फोर्ड कंपनी के चेयरमैन ने ऐसी बात कही जो उन्हें बहुत तेज धक्का देकर निकल गई.
रतन टाटा डील कैंसिल करके भारत वापस आए और यहां पर फिर से उस प्रोजेक्ट पर काम किया और दिन रात मेहनत करके साल 2008 आने तक कंपनी को लायक बना दिया. वो कहते हैं ना कि परेशानी में इंसान को धैर्य रखना चाहिए क्योंकि अच्छा समय जब आता है तो सबका वक्त बदल जाता है और हालात सबके कभी ना कभी सुधरते ही हैं.
समय ने करवट ली और टाटा उसके बादशाह निकले
एक दौर था जब रतन टाटा बहुत निराश थे लेकिन उन्होंने संयम से काम लिया और कंपनी के साथ मेहनत करने में जुट गए. साल 2008 में जब कंपनी को कई गुना मुनाफा हुआ तो दूसरी ओर फोर्ड कंपनी बुरी तरह दिवालिया हो गई. इस बार टाटा का समय था औक वो ही प्रोजेक्ट खरीदने के लिए टाटा ने फोर्ड के सामने प्रस्ताव रखा, जिसकी वजह से घाटा हुआ था. ये प्रोजेक्ट लेंड रोवर और जगुआर थे तब इनकी बिक्री के लिए भारत आए विल फोर्ड ने वही लाइन अपने लिए दोहराई जिससे टाटा को कभी उन्होंने अपमानित किया था. विल फोर्ड ने कहा कि आप इस डील को करके हमारी कंपनी पर एहसान कर रहे हैं.