अध्यात्म

जब रावण के तप से घबरा गए ब्रह्मा, भोलेनाथ ने दिया था रावण को वरदान

रामायण के प्रसंग में रावण को बहुत ही अधर्मी और पापी बताया गया है। हालांकि एक दूसरे रुप से रावण को देखें तो उसमें कुछ ऐसी बातें थी जो किस को भी प्रेरित कर सकती है। रावण प्रचंड ज्ञानी औऱ विद्वान था औऱ उसके पास अथाह शक्ति थी। उसके पतन का कारण था अपने ज्ञान औऱ बल पर घमंड करना। रावण के अंदर एक और बहुत ही खास बात थी जो संसार में किसी के औऱ के पास नहीं थी। वह शिव का परम भक्त था। उसके जैसा भक्त ना कोई पैदा हुआ औऱ ना ही होगा। उसकी भक्ति से शिव भगवान भी निहाल हो जाते थे।

रावण ने मांंगा वरदान

एक बार रावण ने शिव जो को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत का रास्ता अपना. और वहीं तपस्या करने लगा। रावण ने बहुत समय तक कठोर तपस्या की। उसे ना ठंड लगती ना गर्मी और मन में सिर्फ एक नाम चलता और वह शिव। भगवान भोले नाथ तो वैसे भी अपने भक्तों की भक्ती से बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। उन्होंने रावण को तप करते देखा तो प्रकट हो गए। रावण के सामने प्रकट हुए तो रावण ने कहा कि उन्हें लंका उसके साथ चलना होगा।

शिव जी भक्ति से प्रसन्न थे तो उन्होंने कहा कि मैं शिवलिंग के रुप में तुम्हारे साथ चलूंगा, लेकिन इस बात का ध्यान रहे की तुम जिस स्थान पर सबसे पहले मुझे रखोगे मेरा आसन वहीं जमेगा। रावण तैयार हो गया। उसे लगा कि ऐसा करना कौन सा कठिन है, लेकिन कैलाश से लंका की दूरी बहुत ज्यादा थी। रावण शिवलिंग लेकर आगे बढ़ने लगा। काफी दूर तक चलने के बाद भी उसे रास्ता कम होता नजर नहीं आया तो उसने आराम करने का सोचा। रावण थकान में यह भूल गया कि उसे शिवलिंग को कहीं रखना नही है औऱ उसने शिवलिंग को नीचे रख दिया।

ब्रह्मा ने डाली बाधा

रावण जब आराम करके उठा तो उसने शिवलिंग उठाया , लेकन भगवान शिव अब अपना आसन जमा चुके थे। अत्यधिक बलशाली होने के बाद भी रावण के हाथों शिव लिंग नहीं हटा। रावण को पश्चाताप होने लगा और वह हर दिन शिवलिंग को प्रसन्न करने के लिए प्रतिदिन 100 कमल के फूल अर्पित करने लगा। रावण 12 साल तक ऐसा ही करती रहा। ब्रह्मा जी को इस बात का पता चला तो उन्होंने रावण के काम में बाधा डालनी चाही।

भोलेनाथ ने दिया वरदान

ब्रह्मा जी ने रावण के 100 कमल के फूल में से एक कमल का फूल चुरा लिया। रावण ने जब गिना की एक फूल कम है तो उसने अपना सिर काटकर ही  शिवलिंग के आगे रख दिया। रावण के इस कार्य से शिव और ब्रह्मा दोनों अंचभित रह गए। इसके बाद शिव जी ने प्रसन्न होकर उसे 10 सिर का वरदान दिया और ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर उसकी नाभी में अमृतकुंड स्थापित कर दिया औऱ एक बाण भी दिया।रावण को समझ आ गया क अब उसे कोई नहीं हरा सकता। ऐसे में जब रावण का श्रीराम से युद्ध हुआ तो हर बार उसकी ही जीत होती। बाद में मंदोदरी ने बाण का पता बताया और विभीषण ने नाभि का रहस्य तब जाकर श्रीराम रावण की मृत्यु कर पाए।

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