श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार इंसान की यह बुरी आदतें छीन लेती हैं उसका धन, सुख और चैन
हर मनुष्य अपने जीवन में धन, सुख और शांति की प्राप्ति करना चाहता है जिसके लिए वह अपने जीवन में जी तोड़ मेहनत में लगा रहता है परंतु व्यक्ति को इतना कुछ करने के बावजूद भी धन सुख और शांति की प्राप्ति नहीं होती है, क्या आप इस बात को जानते हैं कि आखिर इतनी कड़ी मेहनत करने के बावजूद भी हम जो चाहते हैं वह हमें हासिल क्यों नहीं हो पाता है? दरअसल, हजारों साल पहले भागवत गीता में इस बात का उल्लेख किया गया है कि इंसान की ऐसी कुछ बुरी आदतें होती है जिसकी वजह से वह अपना जीवन नर्क बना लेता है वह इन आदतों की वजह से अपने जीवन में सुख शांति को भी समाप्त कर देता है रामायण से लेकर गीता और महाभारत तक सभी में इस बात का उल्लेख किया गया है कि मनुष्य के अंदर अगर कुछ बुरी आदतें होती है तो उसको कहीं भी सुख-शांति प्राप्त नहीं होती है इन बुरी आदतों की वजह से ना सिर्फ व्यक्ति को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है बल्कि उसके परिवार के जीवन और सुख शांति का भी नाश हो जाता है।
आज हम आपको इस लेख के माध्यम से ऐसी कुछ बुरी आदतों के बारे में जानकारी देने वाले हैं जिनसे बिल्कुल दूर रहना चाहिए अगर आपके अंदर यह बुरी आदतें मौजूद है तो उन आदतों को जितनी जल्दी हो सके दूर करने का प्रयत्न कीजिए क्योंकि यही आदतें आपको अपने जीवन में दुख देती हैं।
क्रोध करना
अगर व्यक्ति जरूरत से ज्यादा क्रोध करता है तो उसका सुखचैन छीन जाता है शास्त्रों में इस बात का उल्लेख किया गया है कि जब परिस्थिति गंभीर हो जाए तो उस दौरान बिलकुल भी अपने ऊपर क्रोध को हावी नहीं होने देना चाहिए विपत्ति में जो लोग अपना संयम और धैर्य खो देते हैं और क्रोध करते हैं उनका विनाश हो जाता है इसी वजह से माना गया है कि क्रोध मनुष्य के विवेक को नष्ट कर देता है जिसके कारण मनुष्य को क्या अच्छा है और क्या बुरा है? इस बारे में कोई अनुमान नहीं रहता है और क्रोध में आकर अपना ही नुकसान कर बैठता है क्रोध को असुरों का गुण माना गया है इसी वजह से असुर हमेशा देवताओं से पराजित हुए हैं।
काम वासना
कामवासना जिस व्यक्ति के अंदर रहती है उसका धन और सुख का नाश होता है जो व्यक्ति काम भाव से पीड़ित रहता है उसका हमेशा धन का ही नाश होता है इसके साथ ही उस व्यक्ति के परिवार की सुख-शांति का भी नाश हो जाता है क्योंकि इंद्र जी भी काम भाव के कारण ही अपनी सत्ता खो चुके थे रावण और दुर्योधन के विनाश की वजह भी यही थी।
किसी से जलना या ईर्ष्या करना
आजकल के जमाने में ज्यादातर व्यक्तियों को देखा गया है कि वह किसी की खुशी और उन्नति को देखकर खुश नहीं होते हैं बल्कि उनके मन में जलन की भावना उत्पन्न होने लगती है मनुष्य की यही आदत ही उसको नाश की ओर ले जाती है जलन की भावना रखने वाला व्यक्ति दूसरों को नहीं बल्कि अपने आपको ही नुकसान पहुंचाता है।