किन्नर कैलाश | हिमालय की चोटी पर जाकर भगवान शिव के किन्नर रूप कें करें दर्शन
न्यूज़ट्रेंड वेब डेस्क: हिमाचल प्रदेश , भारत का एक ऐसा राज्य जिसे धार्मिक मान्यताओं के आधार पर देवभूमि का दर्जा प्राप्त है। इस प्रदेश में अनेकों देवी देवताओं को समर्पित धार्मिक स्थल स्थापित है। प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण और धार्मिक महत्ता को खुद में समेटे यह राज्य देवी देवताओं का गढ़ माना जाता है। बात अगर देवी देवताओं की हो रही हो तो देवों के देव महादेव की चर्चा होना स्वाभाविक है। वैसे तो संपूर्ण विश्व में भगवान शिव को समर्पित कई धार्मिक स्थल है।लेकिन, हिमालय की गोद में बसा किन्नर कैलाश शिवभक्तों को अत्यंत प्रिय है।
हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में तिब्बत सीमा के पास स्थित 6050 मीटर ऊंचा एक पर्वत है जिसे किन्नर कैलाश कहा जाता है, इस पर्वत की विशेषता इसकी चोटी पर स्थित प्राकृतिक शिवलिंग है, आम लोगों के लिए निषेध इस क्षेत्र को 1993 में पर्यटकों के लिए खोल दिया गया, जो 19,849 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, यहां 79 फीट ऊंचे चट्टान को शिवलिंग के रूप में पूजा जाता हैं, ऐसी मान्यता है कि शिवलिंग की परिक्रमा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। इस स्थान की एक खासियत यह भी है कि ना सिर्फ हिंदू धर्म में बल्कि बौद्ध धर्म में भी इसे पवित्र धरती के रूप में पूजा जाता है।
वैसे हिमालय पर बसे इस शिवलिंग का दर्शन करने के लिए भक्तों को काफी कठिन मार्ग से होकर गुजरना पड़ता है। लेकिन, भक्ति में सराबोर सभी भक्त कैलाश्वर के नाम का जाप करते हुए उनके शिवलिंग तक पहुंच ही जाते है.. किन्नर कैलाश की परिक्रमा की महत्ता सावन महीने में विशेष होती है और भक्तों की तादाद शिवदर्शन के लिए हिम पर्वत की चढ़ाई करती है.. भोलेनाथ के पवित्र स्थल किन्नर कैलाश के नाम को लेकर मान्यता है कि किन्नौर जिले के निवासियों को किन्नर कहा जाता है जिसका अर्थ है – आधा किन्नर और आधा ईश्वर.. आप भी भगवान शंभूनाथ के इस दिव्य रूप के दर्शन करना ना भूलें..
इस स्थान को लेकर कई मान्यताएं हैं ऐसा कहा जाता हैं कि यहां भगवान शंकर और अर्जुन का युद्ध हुआ था और उस युद्ध में अर्जुन को पशुपात अस्त्र की प्राप्ति हुई थी। साथ ही इस स्थान की यह भी मान्यता है कि पांडवों को जब वनवास मिला था तो इसी जगह पर उन्होंने वनवास काल का अंतिम समय यहीं गुजारा था। साथ ही ऐसा मत है कि किन्नर कैलाश के आगोश में ही भगवान कृष्ण के पोते अनिरुध का विवाह ऊषा से हुआ था।
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