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नागा साधु कैसे बनते हैं जानिए, कमांडो ट्रेनिंग से भी मुश्किल है नागा साधु बनने की प्रक्रिया

नागा साधु (Naga Sadhu) कुंभों और मेलों में आते हैं और फिर गायब हो जाते है। बता दें कि नागा बाबाओं को साधु, सन्यासियों और संतो से ऊपर माना जाता हैं। नागा बाबाओं को देखकर डर भी लगती है, लेकिन उनके बारे में और जानने की इच्छा भी जाग जाती है, बता दें कि नागा साधुओं की दुनिया बहुत ही रहस्यमयी लगती है कि आखिर ये लोग कब और कैसे ऐसे बने और ना जाने क्या कुछ। तो आज हम आपको बताएंगे नागा साधुओं के बारे में हर वो बात जो आप जानना चाहते हैं।

कैसे बनते हैं नागा साधु ( kaise bante hain Naga Sadhu )

कैसे बनते हैं नागा साधु ( kaise bante hain Naga Sadhu )

शरीर में भस्म लगाए, बिना कपड़ों के हाथों में त्रिशूल और कमंडल लेकर निकले इन साधुओं को देखकर आप भई डर जाते होंगे लेकिन आपको बता दें कि ये साधू भी पहले हमारी और आपकी तरह आम इंसान ही थे, जिन्होंने मोह-माया त्याग कर नागा बनना चाहा और अपनी जिंदगी भगवान के नाम कर दी। लाखों साधु संतों के बीच नागा साधु सबसे रहस्यमयी और सबसे निराले माने जाते हैं. लेकिन नागा साधु बनने के लिए भी उनको कई परीक्षाओं से होकर गुजरना पड़ता है।

जब भी कोई व्यक्ति किसी आखाड़े में शामिल होने जाता है और नागा साधु बनने की इच्छा प्रकट करता है तो सबसे पहले अखाड़े के लोग उसके बारे में पूरी जानकारी एकत्र करते हैं, जिसमें वह किस परिवार से ताल्लुक रखता है, उसकी पारिवारिक स्थिति कैसी है। वह साधु क्यों बनना चाहता है और क्या वह साधु बनने लायक है कि नहीं। यदि सब कुछ ठीक होता है तो फिर शुरू होता है उसकी परीक्षा का दौर।

नागा साधु ( naga sadhu) की परीक्षा

सिंहस्थ, अर्द्धकुंभ और महाकुंभ के दौरान नागा साधु बनाए जाने की प्रक्रिया शुरू होती है। संत समाज के 13 अखाड़ों में से सिर्फ 7 अखाड़े ही नागा बनाते हैं। ये हैं- अटल, अग्नि, आनंद, जूना, महानिर्वाणी, आवाहन, और निरंजनी अखाड़ा।

सबसे पहले उस व्यक्ति को काफी लंबे समय तक ब्रह्मचर्य का पालन करवाया जाता है. जुसमें कम से कम छह महीने और ज्यादा से ज्यादा 12 साल लगते हैं, जब उस अखाड़े का मुखिया पूरी तरह से संतुष्ट हो जाता है कि दीक्षा लेने वाला पूरी तरह इच्छाओं और वासनाओं से मुक्त हो चुका है।

इस प्रक्रिया के पूरा होने के बाद उसे महापुरूष बनाया जाता है उसके पांच गुरू बनाए जाते हैं, जो पंचदेव या पंच परमेश्वर होते हैं। फिर उसे भस्म, भगवा, रुद्राक्ष आदि वस्तुएं दी जाती है, जो नागाओं के प्रतीक और आभुषण होते हैं।

इस प्रक्रिया के बाद नागाओं को अवधूत बनाया जाती है जिसमें सबसे पहले अनको अपने बाल कटवाकर खुद ही स्वयं का तर्पण और पिंडदान करना होता है। यह पिंडदान अखाड़े के पुरोहित कराते हैं। इस तरह से वह व्यक्ति संसार और परिवार के लिए मृत माना जाता है।

इसके बाद जो परीक्षा होती है वो होता है अंग भंग की। इस परीक्षा के लिए व्यक्ति को चौबीस घंटे नागा रूप में अखाड़े के ध्वज के नीचे बिना कुछ खाए पिए खड़ा होना पड़ता है। इस दौरान उनके कंधे पर एक दंड और हाथ पर मिट्टी का एक बर्तन होता है।

इस प्रक्रिया के दौरान उस पर अखाड़े के पहरेदार निगाह रखते हैं। इसी दौरान अखाड़े के साधु-संत उसके लिंग को वैदिक मंत्रों के साथ झटके देकर निष्क्रीय करते हैं। इस प्रक्रिया के बाद ही वह नागा साधु बन पाता है।

नागा साधु का इतिहास

नागा साधु का इतिहास (naga sadhu ka itihas)

भारतीय सनातन धर्म के वर्तमान स्वरूप की नींव आदिगुरू शंकराचार्य ने रखी थी। 8वीं शताब्दी के मध्य में शंकराचार्य का जब जन्म हुआ उस समय भारतीयों की दशा काफी बद्दत्तर थी। भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था और इस तरह में देश को लूटने के लिए कई आक्रमणकारी भारत में आ गए थे। कुछ तो यहां की धन समपत्ति लूटकर वापस चले गए लेकिन कुछ भारत की आभा और सुंदरता देखकर यही बस गए। ऐसे में भारत में ईश्वर, धर्म, धर्मशास्त्रों के तर्क, शस्त्र और शास्त्र सभी को चुनौंतियों का सामना करना पड़ता था।

भारत की स्थिति और बिगड़ती दशा को देखते हुए शंकराचार्य ने सनातम धर्म की स्थापना की और देश के चारों कोनों पर पीठों का निर्माण करने की बात लाए, जिसके बाद देश के चार कोनों में गोवर्धन पीठ, शारदा पीठ, द्वारिका पीठ और ज्योतिर्मठ पीठ का निर्माण हुआ। जिसके बाद भारत को लूटने वाले आक्रमणकारियों से निपटने के लिए अखाड़ों का निर्माण किया गया ।

शंकराचार्य और नागा साधु

शंकराचार्य को पता था कि इन आक्रमणकारियों से निपटने के लिए सिर्फ आधायत्मिक शक्ति काम नहीं आएगी ऐसे में इनका डटकर और शारीरिक रूप से भी मुकाबला करने के लिए उन्होंने युवा साधुओं को व्यायाम करके अपने शरीर को सुदृढ़ बनायनें और हथियारों में कुशलता हासिल करने को कहा, साधुओं को इन सभी कामों में कुशल बनाने के लिए मठों का निर्माण किया गया जहां पर साधुओं को व्यायाम और शस्त्र चलाने का अभ्यास कराया जाता था, ऐसे मठों को अखाड़े का नाम दिया गया। शंकराचार्य ने अखाड़ों को सुझाव दिया कि मठ, मंदिरों और श्रद्धालुओं की रक्षा के लिए जरूरत पडऩे पर शक्ति का प्रयोग करें। जिसके बाद बाह्य आक्रमणों के उस दौर में इन अखाड़ों ने एक सुरक्षा कवच का काम किया।जिसके बाद कई राज्य और राजा खुद की इन आक्रमणकारियों से रक्षा के लिए इनका सहारा लेने लगे।

इन अखाड़ों ने इतिहास में कई युद्ध भी किए जिसमें 40 हजार से ज्यादा नागा योद्धाओं ने हिस्सा लिया। अहमद शाह अब्दाली द्वारा मथुरा-वृन्दावन के बाद गोकुल पर आक्रमण के समय नागा साधुओं ने उसकी सेना का मुकाबला करके गोकुल की रक्षा भी की थी।

नागा साधुओं के नियम (naga sadhu ke niyam )

बता दें कि नागा साधु को केवल जमीन पर ही सोना होता है और ऐसा हर नागा साधु को करना होता है।इसके साथ उनको केवल 24 घंटे में एक ही बार खाना खाना होता है। वो घरों  में भिक्षा मांगकर अपना पेट भरते हैं।

बता दें कि नागा साधु एक दिन में केवल सात बार ही भिक्षा मांग सकते हैं अगर उनको सात बार में भोजन नहीं मिलता है उनको भूखा ही रहना पड़ता है।

नागा साधुओं के नियम (naga sadhu ke niyam )

नागा साधु ( naga sadhu ) को न तो वस्त्र पहनने की इजाजत होती है नही श्रृंगार की

अगर नागा साधु ( naga sadhu ) वस्त्र धारण करना चाहता है तो उसे सिर्फ गेरूआ वस्त्र ही पहनने की अनुमती होती है और केवल भस्म का ही श्रृंगार कर सकते हैं.

naga sadhu

महिला नागा साध्वी ( NAGA SADHVI )-

naga sadhvi

naga sadhvi

आपने नागा साधु ( naga sadhu ) के बारे में तो सुना होगा लेकिन क्या आप जानते हैं कि महिलाएं भी नागा साध्वी ( Naga sadhvi ) बनती हैं।नागा साध्वी बनने में विदेशी महिलाओं की संख्या ज्यादा होती है। दस से पंद्रह सालों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है जिसके बाद उनको दीक्षा दी जाती है। बता दें कि महिला साध्वियों को भी उन्हीं सभी नियमों का पालन करना पड़ता है जो नागा साधु करते है। फर्क केवल इतना होता है कि महिला साध्वियों को एक पीला वस्त्र लपेट कर रहना पड़ता है, और वो इस वस्त्र को कभी नहीं उतार सकती हैं, उनको स्नान के वक्त भी इन्हीं वस्त्रों में रहना पड़ता है। महिला नागा साध्वियों को नग्न स्नान की अनुमति नहीं होती है, यहाँ तक की कुम्भ मेले में भी नहीं।

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