चाणक्य की जीवनी, बचपन और मृत्यु
चाणक्य की जीवनी: भारत पीर दिगम्बरों की जन्मभूमि है. यहाँ हजारों विद्वानों एवं संत महापुरुषों ने जन्म लिया है और दुनिया को जीने की नई राह दिखाई है. यदि आप अपने जीवन को सफल बनाना चाहते हैं या फिर आप अपनी जिंदगी में आने वाली छोटी छोटी रुकावटों से परेशान हैं तो आपको महान विद्वान चाणक्य की बातों को अपने जीवन का हिस्सा बना लेना चाहिए. आज हम आपको चाणक्य की जीवनी से परिचय करवाने जा रहे हैं. चाणक्य ने हमे कूटनीति और राजनीति के बारे में अपनी अराल व्याख्या समझाई है जो किसी भी व्यक्ति की जिंदगी आसान बनाने के काम आ सकती हैं.
चाणक्य की जीवनी- जन्म और परिचय
चाणक्य राजा चंद्रगुप्त मौर्य के मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री की भूमिका में थे. चाणक्य के जन्म को लेकर कईं धारणाएं हैं लेकिन कोई भी इनके जन्म की सही तारिख एवं स्थान से वाकिफ नहीं है. कुछ लोगों के अनुसार चाणक्य का जन्म नेपाल की तराई में हुआ था इसलिए उनका नाम “कौटल्य” भी पड़ा. बचपन में चाणक्य का नाम विष्णु गुप्त रखा गया था.
ऐसी किंवदन्ती है कि एक बार मगध के राजदरबार में किसी कारण से उनका अपमान किया गया था, तभी उन्होंने नंद – वंश के विनाश का बीड़ा उठाया था. लेकिन नन्द वश का नाश करने के बाद मौर्या वंश की स्थापना की गयी और चंद्रगुप्त मौर्या ने उन्हें अपना महामंत्री अर्थात प्रधानमंत्री बना लिया.
चाणक्य की जीवनी- सिकंदर का आक्रमण
चाणक्य अर्थात कौटल्य की शिक्षा एवं दीक्षा प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय में हुई थी. एक छात्र के रूप में वह हमेशा होनहार रहे. उनकी तेज बुद्धि को देखते हुए ही उन्हें पढ़ाई खत्म होने के बाद नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ाने का मौका मिला था. चाणक्य एक शिक्षक के रूप में अपनी जिंदगी व्यतीत कर रहे थे और उनकी ख्याति आसमान की ऊंचाइयों को छू रही थी परंतु उसी बीच ऐसी दुर्घटना घटी जिन्होंने उनके जीवन की पूरी दिशा ही मोड़ पर रख दी.
इनमें से एक घटना सिकंदर के भारत पर आक्रमण की है जबकि दूसरी घटना मगध के शासक द्वारा कौटल्य का किया गया अपमान. इन घटनाओं के बाद चंद्रगुप्त ने देश की एकता और अखंडता के बारे में सोचना शुरू कर दिया और शिक्षक की नौकरी छोड़ कर देशों के राजा और महाराजाओं को शिक्षित करने का संकल्प ले लिया.
जिस समय सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया उस समय चाणक्य तक्षशिला में प्राध्यापक थे. चाणक्य ने भारत की सभ्यता एवं संस्कृति को बचाने के लिए सभी राजाओं महाराजाओं से आग्रह किया लेकिन सिकंदर का सामना करने के लिए कोई नहीं आया. इसी बीच सिकंदर का सामना करने के लिए पोरस आया लेकिन वह भी हार गया.
देश को सिकंदर से बचाने के लिए कुछ लोग धनानंद से सहायता मांगने गए लेकिन भोग विलास और शक्ति के घमंड में चूर धनानंद ने सब का प्रस्ताव ठुकरा दिया. धनानंद ने कहा कि,”पंडित हो अपनी चोटी का ध्यान रखो, युद्ध करना राजाओं का काम है इसलिए तुम अपनी पंडिताई झाड़ो.”जब चाणक्य को इस बात का पता चला तो उन्होंने अपनी चोटी खोल दी और प्रतिज्ञा ली कि वह नंद साम्राज्य को नाश करके ही दम लेंगे और उससे पहले अपनी चोटी नहीं बांधेंगे.
चाणक्य की जीवनी- चंद्रगुप्त का शिष्य बनना
चाणक्य एक महान आचार्य और महान विभूति थे इसके बावजूद भी वे अपना जीवन बहुत सादगी से व्यतीत करते थे. एक बार चीन के प्रसिद्ध ऐतिहासिक यात्री ने आचार्य चाणक्य को कहा कि, “इतने बड़े देश के प्रधानमंत्री ऐसी झोपड़ी में रहते हैं?” तो इस सवाल के जवाब में चाणक्य ने कहा कि जहां का प्रधानमंत्री झोपड़ी में रहता है वहां के निवासी भव्य भवनों में निवास करते हैं. चाणक्य के जीवन का प्रसंग चंद्रगुप्त के बिना बिल्कुल ही अधूरा है. नंद वंश का नाश करने में और उनकी प्रतिज्ञा को सार्थक करने में सबसे बड़ा हाथ चंद्रगुप्त मौर्य का ही था.
दरअसल एक प्रवास के दौरान चाणक्य की नजर एक ग्रामीण बालक पर पड़ी. चाणक्य को वह बालक बेहद गुणी लगा जिसके बाद उन्होंने उसे उसके पिता से खरीद लिया. कहा जाता है कि उस समय चंद्रगुप्त मौर्य केवल 8 या 9 वर्ष के ही थे. चाणक्य ने उन्हें अपना शिष्य बना लिया और एक सबल राष्ट्र की नींव डाली जो आज तक एक आदर्श साबित हुई है.
चाणक्य की जीवनी- चाणक्य का विवरण
– राज्य का शासक कुलीन होना चाहिए.
– राजा शारीरिक रूप से ठीक होना चाहिए और शासन को प्रजा के हित के लिये लड़ना चाहिए.
– काम और क्रोध तथा लोभ, मोह, माया से दूर रहना चाहिए.
– राज्य के शासक को निडर राज्य का रक्षक और बलवान होना चाहिए.
चाणक्य की जीवनी- ऐसे हुई मृत्यु
चाणक्य के जन्म की तरह ही उनकी मृत्यु के भी कोई ठोस प्रमाण प्राप्त नहीं हुए हैं. लेकिन कुछ लोगों के अनुसार चाणक्य ने 300 ई. पू. में अन्न जल को त्याग दिया था जिसके कारण वह ज्यादा समय तक जिन्दा नहीं रह पाए. वहीँ कुछ लोग उनकी मृत्यु के पीछे उस समय के राजाओं का षड्यंत्र बताते हैं. भारत की अनमोल धरोहर चाणक्य भले आज हमारे बीच जिंदा नहीं है लेकिन उनका नाम इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में हमेशा अंकित रहेगा.