जानिए कैसे एक वेश्या ने स्वामी विवेकानंद को पवित्रता का सही मतलब सिखाया!
हम सभी स्वामी विवेकानंद से भंली- भाँती परिचित हैं, ये एक महान सन्यासी थे। इन्होने मानवता का संदेश दिया और प्रेम, शांति एवं एक तथा सभी से प्रेम के बारे में लोगों को ज्ञान दिया। लेकिन क्या आप जानते हैं? स्वामी विवेकानंद को ये सभी ज्ञान कहाँ से मिला था। बहुत कम ही लोग होंगे जिन्हें शायद इसकी सच्चाई मालूम हो। स्वामी को इन सबका ज्ञान एक वेश्या से मिला था।
वेश्या और स्वामी का साक्षात्कार:
स्वामी विवेकानंद को यह ज्ञान एक वेश्या द्वारा दिया गया था। दरअसल एक वेश्या ने स्वामी को प्रेम और लगाव के वास्तव अर्थ को समझने के लिए शिक्षा दी थी। आइये जानते हैं इसके पीछे क्या कहानी थी। यह कहानी किसी और ने नहीं बल्कि महान गुरु ओशो द्वारा बताई गयी है।
अमेरिका जाने से पहले रुके थे जयपुर में:
यह सभी लोग जानते हैं कि विवेकानंद अमेरिका जाने के बाद भारत का परचम पुरे विश्व में फहराया था और विश्व स्तर पर उन्हें एक महान संत के रूप में पहचान मिली थी। अमेरिका जाने से पहले वो कुछ दिन जयपुर में रुके हुए थे। जयपुर के राजा स्वामी विवेकानंद के बहुत बड़े प्रशंसक थे। उन्होंने स्वामी को अपने यहाँ बुलाया और शाही परम्परा के अनुसार कुछ नर्तकियों को भी मनोरंजन के लिए बुलाया। उन्ही नर्तकियों में से एक बहुत मशहूर वेश्या थी।
राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ:
जब राजा ने नर्तकियों को बुलाया और उन्हें मालूम चला कि नर्तकियों में एक वेश्या भी है तो उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्होंने सोचा कि एक बड़े सन्यासी के सामने एक वेश्या को नहीं बुलाना चाहिए था। एक वेश्या को अशुद्ध माना जाता है। लेकिन जब तक उन्हें इस बात का ज्ञान हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी। सारे इंतज़ाम किये जा चुके थे।
विवेकानंद सच्चाई जानकर हो गए परेशान:
जब इस बात की जानकारी स्वामी विवेकानंद को हुई तो वह परेशान हो गए, क्योंकि अभी भी वे एक अपूर्ण सन्यासी थे। वे इस तथ्य को गहराई से समझने में नाकाम थे। हालांकि अगर कोई पूर्ण रूप से सन्यासी होता तो उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। चूँकि विवेकानंद भी एक सन्यासी बनने की प्रकिया में थे, इसलिए उन्होंने अपनी यौनइच्छाओं को दबा दिया था। उन्होंने खुद को एक कमरे में बंद कर दिया और बाहर आने से मना कर दिया।
महाराजा ने माँगी माफ़ी:
स्वामी को कमरे में बंद देखकर जयपुर के महाराज उनके पास आये और उनसे माफ़ी माँगी। राजा ने कहा कि उन्होंने इससे पहले किसी सन्यासी को बुलाकर उनका स्वागत नहीं किया था, तो उन्हें कुछ भी नहीं मालूम था कि एक सन्यासी का स्वागत कैसे करना चाहिए। राजा ने कमरे से बाहर आने के बाद स्वामी विवेकानंद से पूछा कि देश की सबसे मशहूर वेश्या को भागना भी उचित नहीं है।
राजा ने स्वामी विवेकानंद से कमरे से बाहर आने का अनुरोध किया और बुरा ना मानने के लिए कहा। इतना सब होने के बाद भी विवेकानंद कमरे से बाहर आने से डर रहे थे, उन्होंने कहा कि एक वेश्या के सामने वह कभी नहीं जायेंगे और उन्होंने मना कर दिया।
स्वामी की बातों को सुनकर वेश्या ने गाना शुरू किया:
अन्दर से स्वामी विवेकानंद की की बातों को सुनने के बाद उस वेश्या ने गाना शुरू कर दिया। उसने अपने गीत के जरिये कहा, “मुझे पता है कि मैं आपके योग्य नहीं हूँ, लेकिन आप तो एक छोटे से दयालु हो सकते थे। मैं सड़क पर पड़ी गन्दगी के समान हूँ, ये मैं जानती हूँ।“ उसने आगे गाते हुए कहा, “आपको मेरा विरोधी होने की कोई जरुरत नहीं है, मैं कोई नहीं हूँ। मैं एक अज्ञानी, पापी हूँ लेकिन आप तो एक संत हैं, तो आप मुझसे क्यों डरते हैं।“
वेश्या की बातों को सुनकर स्वामी को हुआ ज्ञान:
इतना सब सुनते ही स्वामी विवेकानंद को यह अहसास हुआ कि उन्होंने बहुत बड़ी भूल कर दी है। वह एक वेश्या के चेहरे को देखने से क्यों डरते हैं? इसमें क्या गलत है? क्या वह अभी अपरिपक्व हैं? उन्होंने उसी समय महसूस किया कि सारा डर केवल दिमाग में है। यदि वह वेश्या के प्रति आकर्षण महसूस कर सकते हैं तो वह मन की शांति से कम हो सकता है। उन्होंने दरवाजा खोला और वेश्या को बधाई दी। उन्होंने कहा, “मुझे अभी परमात्मा द्वारा एक नया ज्ञान दिया गया है। मैं डर गया था…शायद मेरे अन्दर थोड़ी वासना बची हुई थी, इसी वजह में मैं डर रहा था।“ उन्होंने आगे कहा, “लेकिन एक महिला ने आज मुझे पूरी तरह से हरा दिया है, मैंने आजतक ऐसी शुद्ध आत्मा नहीं देखी थी।“
स्वामी विवेकानंद ने आगे कहा, “अब मैं उस महिला के साथ विस्तर पर सो सकता हूँ और उसके बाद भी मुझे डर नहीं लगेगा। उन्होंने जो भी ज्ञान सिखा उस वेश्या की वजह से सीखा।“ इसका मतलब हम जीवन में किसी से भी प्रेम और लगाव के बारे सीख सकते हैं, हमें हाथ फैलाकर उस ज्ञान को ग्रहण करना चाहिए। हमें अपनी इच्छाओं और अपनी आँखों को नए मौकों के लिए हमेशा खुले रखना चाहिए, क्या पता कब कौन मदद के लिए आ जाये।