क्या ‘फेक न्यूज’ फैलाती है ‘पोस्टकार्ड’ न्यूज बेवसाइट? जानिए क्या है इन आरोपों की सच्चाई
नई दिल्ली – आजकल सोशल मीडिया पर कुछ ऐसी वेबसाइटों को टारगेट किया जा रहा है जो हाल के दिनों में लोगों के बीच काफी पॉपुलर हो रही हैं। इन उभरती हुई न्यूज बेवसाइटों को कुछ बड़े मीडिया हॉउस खासकर निशाना बना रहे हैं। ऐसी ही एक वेबसाइट है ‘पोस्टकार्ड’। शायद आपने भी कुछ महिनों पहले ये खबर पढ़ी होगी कि पुलिस ने पोस्टकार्ड के एडिटर को फेक खबर फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया था। उनपर दो समुदाय के लोगों के बीच नफरत फैलाने का आरोप लगा था। इस खबर के सामने आने के बाद कई न्यूज चैनलों में घंटों बहस हुई और सभी ने ‘पोस्टकार्ड’ को झुठी खबर फैलाने वाली बेवसाइट साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन, न्यूजट्रेंड ने इस तरह से किसी मीडिया हॉउस को टारगेट करने को लेकर आवाज उठाई और इस तरह के बेबूनियाद आरोपों की सच्चाई जानने के लिए ‘पोस्टकार्ड’ की एडिटर्स व राइटर्स की टीम से बात की। इस बातचीत में कुछ ऐसी बातें सामने आई जो वाकई में चौकाने वाली हैं। तो आइये बताते हैं कि ‘पोस्टकार्ड’ की ओर से इस बारे में क्या कहा गया?
पोस्टकार्ड क्यों शुरू हुआ?
यह एक समय था जब कई मीडिया हाउसों पर देश के विरोधियों का कब्जा था। 2002 से वे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर लगातार हमला कर रहे थे। इसके अलावा, उन्होंने भारत को इंटरनेशनल लेवल पर बदनाम करने का काम किया। उस वक्त मुश्किल से कुछ मुख्यधारा के मीडिया हाउस राष्ट्रवादी थे और देश के पक्ष में काम कर रहे थे। यह वह समय था जब उनकी लड़ाई सिर्फ भाजपा के खिलाफ नहीं बल्कि हमारे देश, भारत को बदनाम करने के लिए हद तक चले गुजर गए थे। इसलिए इन पाखंडियों को बेनकाब करने के लिए जिन्होंने खुद को “भारतीय” कहा, ‘पोस्टकार्ड’ का जन्म हुआ।
अगली चुनौती क्या थी?
ट्विटर मुख्य रूप से राष्ट्रवादियों से भरा हुआ था और इसीलिए पोस्टकार्ड मीडिया ने फेसबुक और व्हाट्सएप प्लेटफॉर्म पर अपनी पहुंच बनाने का फैसला किया क्योंकि ये ऐसे क्षेत्र थे जहां राष्ट्रवादी ताकतों के खिलाफ बहुत सारी गलतफहमी फैल गई थी या फैलाई जा रही था। हमने जिस भाषा को चुना वह ऑक्सफोर्ड जैसी कठिन अंग्रेजी नहीं थी, जैसा कि अधिकांश मीडिया हाउस राष्ट्र की छवि को धुंधला करने के लिए करते थे। हमने सामान्य अंग्रेजी का इस्तेमाल करने का फैसला किया। हमने ध्यान दिया कि हर भारतीय को हमारी भाषा को समझना ही नहीं चाहिए बल्कि एक आम भारतीय की भावना भी समझनी चाहिए। जून 2016 में पोस्टकार्ड मीडिया शुरू किया गया था और अगले 3-4 महीनों में यह भारत का नंबर वन राइट विंग न्यूज़ पोर्टल बन गया। हम “राइट विंग” शब्द पर इसलिए जोर दे रहे हैं क्योंकि कई मीडिया हाउस ऐसे हैं जो तटस्थ होने का दावा करते हैं लेकिन धीरे-धीरे कुछ दुश्मन देशों के पक्ष में भारत के खिलाफ जहर उगलना शुरू कर देते हैं। लेकिन हमने राइट विंग या नेशनलिस्ट होने का दावा किया, प्रत्येक और सभी का सम्मान किया और सभी का असली चेहरा सामने लाये।
कितने लोगों तक पहुंचती है ‘पोस्टकार्ड’ की आवाज?
अभी तक पोस्टकार्ड मीडिया द्वारा लिखे गए पोस्ट को 4.47 करोड़ लोगों द्वारा पढ़ा गया है और पोस्ट कुल 19 करोड़ बार (पेज व्यू) पढ़े गये हैं। पोस्ट कार्ड ने यह उपलब्धि केवल दो वर्षों में हासिल कि है। इन आंकड़ों ने पोस्टकार्ड मीडिया के रास्ते में हस्तक्षेप करने वाले राष्ट्र-विरोधियों के मुंह पर करारा तमाचा जड़ा है। हम गर्व महसूस करते हैं कि आज तक हमने किसी भी राजनीतिक दल या नेता से एक भी पैसा नहीं लिया है। जबकि अन्य मीडिया हाउस ऐसा करते हैं। इसलिए हमें एनडीटीवी, बरखा दत्त, आल्ट न्यूज, राजदीप सरदेसाई, सागरिका घोस, शेखर गुप्ता, राणा अयूब और कई अन्य लोगों से प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। हम अपने 4.47 करोड़ दर्शकों के लिए उत्तरदायी हैं जो हमारे लेखों को पढ़ते हैं।
एक बात जो शायद आपने देखी हो वो यह है कि पोस्टकार्ड मीडिया को टारगेट करने वाली वेबसाइटें और एंकर हमेशा चिल्लाते रहते हैं कि इसे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री और अन्य बीजेपी नेताओं का गुणगान किया जाता है। लेकिन, यह पूरी तरह से निराधार है। इसकी सबसे बड़ी वजह पोस्टकार्ड मीडिया का पत्रकारिता में इतने कम समय में राष्ट्रीय राजनीतिक आंकड़ों को आकर्षित करने में सफल रहना है। वे नहीं चाहते कि लोग हमारे लेख पढ़े क्योंकि हम राष्ट्र विरोधियों का पर्दाफाश करते हैं, वे नहीं चाहते हैं कि हम कुछ कहे या लिखे क्योंकि हम सच बोलते हैं। उन्होंने महेश विक्रम हेगड़े को भी लेकर दावा किया था कि वो नकली खबरे फैलते हैं। आज तक उन्होंने हजारों बार ट्वीट किया है और इनमें से केवल 2 ही संदिग्ध थे। क्या हेगड़े की तुलना में दैनिक आधार पर ऐसी गलतियां करने वाले बहुत अधिक नहीं हैं? अगर हम ट्विटर पर राहुल गांधी के बाद कुछ और लोगों को देखे; तो वे नकली खबर फैलते हैं और दिन-प्रतिदिन अपमानजनक शब्दों का उपयोग करते हैं। लेकिन उन्होंने सिर्फ हेगड़े और पोस्टकार्ड मीडिया को टारगेट किया। आखिर क्यों?
पिछले 70 वर्षों में, हम सभी जानते हैं कि कैसे भारत के महान इतिहास को तोड़ मड़ोर कर पेश किया गया है, कैसे भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों की नाकारात्मक छवि पेश की गई है, कैसे बहादुर भारतीय सैनिकों को अपमानित किया गया था, इतिहासिक किताबों से राजाओं को पूरी तरह से हटा दिया गया। भारतीय समाचार चैनलों में कुछ पैनलिस्ट पोस्टकार्ड मीडिया के बारे में अपने प्राइम टाइम शो पर चर्चा करते हुए देखे जाते हैं। क्या वे भूल गए हैं कि भारत कई अन्य गंभीर समस्याओं से प्रभावित है? एक तरफ एनएसयूआई के राष्ट्रपति पर बलात्कार का आरोप है, तो वहीं दुसरी तरफ कांग्रेस पार्टी की सोशल मीडिया टीम में एक महिला को परेशान करने, बलात्कार के आरोपों और यौन उत्पीड़न के आरोपों के बाद चर्चों में आये पुजारियों का पर्दाफाश, दिव्या नाम की एक लड़की का बलात्कार, बच्चों को तस्करी, कैथोलिक संगठन, कश्मीर घाटी में भारतीय सेना ने पत्थरबाजों को गिरफ्तार करने जैसी खबरे हैं। लेकिन एनडीटीवी समेत इन सभी झूठे मीडिया हाउसों द्वारा सिर्फ पोस्टकार्ड और हेगड़े को टारगेट किया जा रहा है। इसलिए अगर इस पाखंड को उजागर करना गलत है, तो हम एक बार नहीं, बल्कि बार-बार जेल जाने के लिए तैयार हैं। पोस्टकार्ड मीडिया बिना किसी डर के आगे बढ़ेगा और जब तक वे ‘हिंदुस्तान’ को धोखा देना बंद नहीं करेंगे तब तक हम धोखेबाज़ों का पर्दाफाश करते रहेंगे। अब यह तय करने का आपपर निर्भर है कि पोस्टकार्ड मीडिया को फेक न्यूज पोर्टल का लेबल दिया जाना सही है या गलत?
पोस्टकार्ड मीडिया की ओर से इस लेख को विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों में जितना संभव हो सके साझा करने का आग्रह किया गया।