भाजपा के लिए ख़तरा बन रहे महागठबंधन में पड़ी फूट, दूर हो सकते हैं शिवपाल और चंद्रशेखर
भाजपा सहित देश की सभी पार्टियों की नज़र आने वाले 2019 लोकसभा चुनाव पर जम गयी हैं। जहाँ भाजपा इस बार फिर से केंद्र में कमल खिलाने की रणनीति बना रही है, वहीं अन्य विपक्षी दल उसको रोकने के लिए महागठबंधन का सहारा लेने जा रहे हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत को रोकने के लिए विपक्ष के महागठबंधन की सियासत परवान चढ़ने लगी है। जानकारी के अनुसार बसपा सुप्रीमो बहन मायावती सम्माजनक सीटों पर समझौते के लिए तैयार हैं। वहीं गठबंधन के लिए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पहले से ही तत्पर दिखाई दे रहे हैं।
दूसरी तरफ़ कांग्रेस और रालोद भी गठबंधन के पक्ष में है। ऐसे में भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती विपक्ष के वोटों के ध्रुवीकरण की है। लेकिन सपा से अलग हुए शिवपाल सिंह यादव के सेक्यूलर मोर्चे के उभार और भीम आर्मी के चंद्रशेखर उर्फ़ रावण से मायावती के किनारा करने से भाजपा के लिए अनुकूल माहौल बना है। विपक्ष के ध्रुवीकरण से पहले ही शिवपाल और रावण के रूप में गठबंधन में बिखराव के बीज उगने लगे हैं। राजनीति में यह कहा नहीं जा सकता है कि कब कौन सी पार्टी अपना राजनीतिक पैंतरा बदल दे।
प्रदेशभर की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का कर सकते हैं ऐलान:
जानकारों का कहना है कि अगर भविष्य में सीटों पर तालमेल नहीं बन पानें की स्थिति में अखिलेश से मायावती की बात नहीं बनी और कांग्रेस और बसपा की नज़दीकी बढ़ी तो शिवपाल उधर अपने लिए अवसर तलाश सकते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि शिवपाल कम से कम सीटों पर भी संतुष्ट हो सकते हैं। अगर सपा, बसपा और कांग्रेस के समझौते की स्थिति में शिवपाल को अवसर नहीं मिला तो वह प्रदेश की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का भी ऐलान कर सकते हैं।
बताया जा रहा है कि वह भले ही प्रदेश की सभी सीटों पर अपना प्रभाव ना दिखा पाए, लेकिन कुछ सीटों पर वोटों के बिखराव का सबब बन सकते हैं। दोनो ही सूरतों में शिवपाल भाजपा के लिए फ़ायदेमंद साबित हो सकते हैं। सपा से विद्रोह करके शिवपाल का राजनीतिक अखाड़े में एक नयी पार्टी के साथ आना इसका साफ़ संकेत है। कई मौक़ों पर भाजपा और शिवपाल की नज़दीकी भी उजागर हुई है। फ़िलहाल शिवपाल असंतुष्ट सपाइयों को एक मंच पर लाकर अपनी ताक़त को बढ़ाने में जुटे हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के युवा दलितों के बीच भीम आर्मी का आकर्षण है।
मायावती ने ख़ुद को दूर रखा है भीम आर्मी से:
भीम आर्मी के बारे में बता दें यह कोई राजनीतिक दल नहीं है और ना ही संगठनात्मक रूप से अभी तक इसकी कोई बड़ी भूमिका बनी है। लेकिन जिस तरह से मायावती ने चंद्रशेखर के ख़िलाफ़ आक्रामक रूख अपनाते हुए मायावती ने उनसे किसी भी तरह के रिश्ते से इनकार कर दिया है, इससे एक बात तो साफ़ हो गयी है कि वह भीम आर्मी को ख़ुद से दूर ही रखेंगी। ऐसे में अपनी पहचान बनाने के लिए चंद्रशेखर कोई ना कोई दाव ज़रूर खेल सकते हैं। फ़िलहाल वह भाजपा को हराने की बात कर रहे हैं, लेकिन आगे क्या होगा, यह कोई नहीं जानता है। ऐसे में मायावती से चंद्रशेखर का दूर होना भाजपा के लिए फ़ायदेमंद हो सकता है।