नई दिल्ली: डॉलर के मुक़ाबले भारतीय रुपया लगातार गिरता जा रहा है। लेकिन शुक्रवार की सुबह को रुपए ने डॉलर के मुक़ाबले एक अच्छी शुरुआत की। हालाँकि अभी भी यह रिकार्ड गिरावट के स्तर पर बना हुआ है। इसके बारे में विश्व आर्थिक मंच के पूर्व निदेशक और थिंक टैंक होरैसिस के प्रमुख फ़्रैंक जर्गन रिक्टर कहते हैं कि अभी भी रुपए की गिरावट जारी रह सकती है। उनके अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जैसे हालात पैदा हुए हैं अगर वो आगे भी बने रहे तो भारत के अनुमान के अनुसार डॉलर के मुक़ाबले रुपया 76 के पार भी जा सकता है।
ज़्यादा मज़बूत चीज़ की तरफ़ ज़्यादा होता है वित्तीय प्रवाह:
फ़्रैंक ने एक न्यूज़ चैनल से बातचीत करते हुए बताया कि मौजूदा समय में रुपए में जो भी गिरावट देखने को मिल रही है, उसके लिए एशियाई और वैश्विक बाज़ार में मची उथल-पुथल ज़िम्मेदार है। 2014 में जब डॉलर के मुक़ाबले रुपए की क़ीमत 60 रुपए के पार पहुँच गयी थी तब भी डॉलर मज़बूत था और डॉलर आज भी मज़बूत बना हुआ है। जो भी चीज़ मज़बूत होती है, उसकी तरफ़ वित्तीय परवाह ज़्यादा होता है। इसी वजह से भारत में आने वाले निवेश पर असर पड़ा है।
इसके अलावा वह कम्पनियाँ भी इसके लिए ज़िम्मेदार हैं जिन्होंने डॉलर के अनुसार लोन लिया है। जब इनका रीपेमेंट देर हो जाता है तो यह डॉलर फ़र्म के लिए भी बेहतर साबित नहीं होता है। फ़्रैंक के अनुसार इस समय तुर्की में भी इसी तरह का संकट पैदा हुआ है। केवल यही नहीं यह संकट अन्य दूसरे देशों में भी देखने को मिल रहा है। इस समय विश्व के कई देशों की मुद्राएँ डॉलर के मुक़ाबले सस्ती हुई हैं। फ़्रैंक कहते हैं कि यह भारत का स्वयं का अनुमान है कि अगर रुपया 68 के औसत पर बना रहता है तो 2020 तक यह 76 रुपए प्रति डॉलर के स्तर पर पहुँच जाएगा।
आपको बता दें इस समय डॉलर के मुक़ाबले रुपया 71.86 के स्तर पर है। हालाँकि फ़्रैंक का कहना है कि 2019 में होने वाला चुनाव इस अनुमान को बढ़ाने या घटाने का भी काम कर सकता है। केवल चुनाव ही नहीं भारत अपने इंफ़्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को किस तेज़ी से पूरा करता है, उसका असर भी रुपए पर पड़ेगा। फ़्रैंक कहते हैं कि भारत बड़े स्तर पर तेल का आयात करता है। ऐसे में अगर कच्चे तेल की क़ीमतों में बढ़ोत्तरी जारी रहती है तो यह भारत के सामने और मुसीबत खड़ी कर सकता है।
ईरान पर लगाए प्रतिबंध से भी हो सकता है भारत को नुक़सान:
इसकी वजह से सरकार के लिए रणनीतिक योजना बना पाना मुश्किल होता है। दूसरी तरफ़ यूएस की तरफ़ से लगातार ईरान पर लगाए जा रहे प्रतिबंध से भी भारत को नुक़सान हो सकता है। इसके अलावा चीन और अमेरिका के बीच जारी ट्रेड वॉर भी रुपए की गिरावट के लिए ज़िम्मेदार है। फ़्रैंक कहते हैं कि आरबीआई जो अभी सम्भावित क़दम उठा सकता है, वो बेस रेट कम या ज़्यादा करने का है। क्योंकि बेस रेट कम या ज़्यादा करना काफ़ी प्रभावशाली क़दम साबित हो सकता है।