ऐसा रहस्यमयी ताला जो चाबी होने के बाद भी नहीं खोला जा सकता, जापान के कारीगर भी हुए हैरान
दुनिया में कई ऐसी रहस्यमयी चीज़ें हैं, जिसके बारे में जानकर लोगों को काफ़ी हैरानी होती है। लेकिन आज हम आपको एक बहुत ही साधारण चीज़ के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके रहस्य को कोई सुलझा नहीं पाया है। यह चीज़ हर व्यक्ति अपने घर की सुरक्षा के लिए लगाता है। जी हाँ आप सही समझे हम बात कर रहे हैं, ताले की। अपने घर में चोरी होने से बचाने के लिए लोग ताला लगाते हैं। बाज़ार में कई तरह के ताले मिलते हैं, जिन्हें आसानी से खोला नहीं जा सकता है।
तालों को बिना सही चाबी की मदद के नहीं खोला जा सकता है। लेकिन कई बार चाबी खो जानें के बाद दूसरी चाबी बनवानी पड़ती है, जिससे ताला खोला जा सके। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे रहस्यमयी ताले के बारे में बताने जा रहे हैं, जो चाबी होने के बाद भी नहीं खुलता है। इस ताले को आजतक कोई नहीं खोल पाया है। बड़े-बड़े कारीगरों ने इस ताले के आगे हार मान ली है। इस ताले को खोलने की तकनीक सिर्फ़ उसके मालिक बिहार के बेतिया ज़िला के रहने वाले लालबाबू शर्मा जानते हैं।
78 साल पहले बना था अद्भुत ताला:
आपको बता दें यह ताला 78 वर्ष पुराना है। लालबाबू ही इस ताले को खोलते और बंद करते हैं। यह ताला उन्हें विरासत के रूप में अपने पिता नारायण शर्मा से मिला था। नारायण शर्मा की मौत के बाद पूरी दुनिया में लालबाबू ही एक ऐसे व्यक्ति हैं, जो इस ताले को खोलना और बंद करना जानते हैं। लालबाबू ने बताया कि 1972 में दिल्ली के प्रगति मैदान में लगे उद्योग व्यापार मेले में वह ताले को प्रदर्शनी के लिए ले गए थे। उस प्रदर्शनी में गोदरेज जैसी कम्पनियाँ भी शामिल हुई थी।
ताले ने अपनी विशेषता की वजह से सबका ध्यान अपनी तरफ़ खींचा था। इसके बाद गोदरेज कम्पनी के प्रतिनिधि बेतिया गए और उस ताले को ख़रीदने और उसकी तकनीक को जानने के लिए एक लाख रुपए का ऑफ़र भी दिया। उस समय नारायण शर्मा ने ऑफ़र के साथ ही इस तरह के ताले की बिक्री पर रॉयल्टी की माँग रखी। नारायण शर्मा की इस माँग को कम्पनी ने मानने से इंकार कर दिया। जापान के प्रतिनिधियों ने नारायण को ताले के साथ जापान बुलाया था, लेकिन वो जानें के लिए राज़ी नहीं हुए। इस ताले के निर्माण की कहानी बहुत ही रोचक है।
बनारस से बुलवाए थे कारीगर:
कहा जाता है कि बेतिया के अंतिम राजा रहस्यमयी ताले और घड़ियों के बहुत शौक़ीन थे। लालबाबू के पूर्वजों को बनारस के रामनगर के राजा कन्नौज से लेकर आए थे। जब बेतिया के महाराज को इस बात का पता चला कि बनारस में अच्छे ताले बनाने वाले कारीगर हैं तो उन्होंने एक कारीगर को बनारस के महाराज से आग्रह करके बेतिया बुलवा लिया था। बेतिया के महाराज होली से एक दिन पहले राज परिसर में अनोखी चीज़ों की प्रदर्शनी लगवाते थे। 1940 की प्रदर्शनी के दौरान कुरसैला स्टेट के कुछ कारीगर एक ताला लेकर आए और उसे खोने की शर्त रखी। नारायण ने उस ताले को आसानी से खोल दिया।
इसके बाद नारायण ने अपने बनाए ताले को खोलने की शर्त उन कारीगरों के सामने रख दी। उस समय यह तय किया गया कि अगले साल होने वाली प्रदर्शनी में ताले को प्रदर्शित करेंगे। इसके बाद उन्होंने चार रुपए का लोहा ख़रीदा और सात महीने की कड़ी मेहनत के बाद इस रहस्यमयी ताले को बनाया। इससे राजा ख़ुश होकर उस समय चाँदी के 11 सिक्के दिए थे। इस ताले का वज़न लगभग 5 किलो है। जब यह ताला बना था तो उसमें चाबी लगाने की जगह नहीं दिखती थी। प्रगति मैदान में प्रदर्शन के समय कारीगरों ने नकिले औज़ारों से इसे ज़बरदस्ती खोलने की कोशिश की थी। इससे ताले की ऊपरी परत टूट गयी। इससे चाबी लगने की जगह तो दिखने लगी, लेकिन ताला खुल नहीं पाया। इस ताले की विशेषता यह है कि यह चाबी होने के बाद भी नहीं खुलता है।