बेटे ने रचा इतिहास तो बरस पड़ी माता-पिता की आँखें, गोल्ड जीतकर किया देश का सिर ऊँचा
किसान परिवार में जन्में ऊझना के मनजीत चहल ने एशियन गेम्स में इतिहास रच दिया है। जी हाँ 800 मीटर दौड़ प्रतियोगिता में उन्होंने सवारन पदक जीतकर देश का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया है। नरवाना में पुराना बस स्टैंड के पास ही मनजीत का परिवार रहता है। मनजीत का परिवार उसकी दौड़ को टकटकी लगाए देख रहा था। जैसे ही मनजीत ने अपनी दौड़ पूरी करते हुए गोल्ड पर क़ब्ज़ा जमाया, माता-पिता की आँखे बरस पड़ी। बताया जा रहा है कि मनजीत ने इस जीत से अपनी पुरानी टीस निकाली है। 2014 में कॉमनवेल्थ गेम्स में क्वालिफ़ाई करने से वह मज़ाक़ एक सेकेंड के सौवें हिस्से से चूक गए थे।
चुका दिया मेरे दूध का क़र्ज़:
उसी समय से उन्होंने मनजीत ने ठान लिया था कि कुछ भी हो जाए उन्हें देश के लिए गोल्ड तो जितना ही है। पिता रणधीर चहल और माँ बिमल देवी ने बताया कि पहली दौड़ में मनजीत पीछे रह गया था, तो उनलोगों की उम्मीदें टूटने लगी थीं। लेकिन अगली 400 मीटर की दौड़ में उन्होंने सभी को पीछे छोड़ना शुरू किया तो उनकी जान में जान आयी। मनजीत ने आख़िरी पल में सभी को पीछे छोड़ते हुए जीत दर्ज कर लिया। माँ ने कहा कि मनजीत ने मेरे दूध का क़र्ज़ चुका दिया और अपनी साधना और संघर्ष को सफल बना दिया।
बेटे का जन्म हुआ तो उस समय था ट्रेनिंग पर:
मनजीत की जीत से उसके माँ-बाप ही नहीं बल्कि अन्य परिजन और सभी गाँव वाले भी बहुत ख़ुश हैं। मनजीत की माँ ने कहा कि उनके बेटे ने पूरे देश का नाम रौशन कर दिया है। मनजीत के मन में एशियन गेम्स में पदक लाने की चाहत थी। जब मनजीत का बेटा अभिर जन्मा तो उस समय भी मनजीत ट्रेनिंग पर था। वह पाँच महीने से घर से दूर रहकर एशियन गेम्स में मेडल लानें की तैयारी कर रहा था। उसे परिवार से दूर रहने का ग़म ज़रूर था, लेकिन देश के लिए पदक लानें का जुनून भी था। इसी जुनून की वजह से उसने एशियन गेम्स में गोल्ड जीता है।
नेशनल में स्वर्ण पदक जितने के बाद कभी नहीं देखा पीछे मुड़कर:
मनजीत के पिता ने बताया कि वह बचपन से ही ख़ूब दौड़ता था। मनजीत का 2000 में नवदीप स्टेडियम में एथलेटिक्स के 15 बच्चों की नर्सरी में चयन हो गया था। वह वहीं पर 2005 तक एथलेटिक्स की बारिकियाँ सीखता रहा। उसने स्कूल स्तर पर होने वाली प्रतियोगिताओं में भी कई मेडल जीते, जिससे उसका हौसला बढ़ता चला गया। नर्सरी स्कूल बंद हो जानें की वजह से उसने स्पोर्ट्स कॉलेज जालंधर में दाख़िल ले लिया। वहीं से वह नेशनल स्तर की प्रतियोगिताओं में जानें लगा। जब 2008 में नेशनल स्तर पर उसने स्वर्ण पदक जीता तो फिर पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा।
आज मनजीत की मेहनत हो गयी सफल:
इसी प्रतिभा की वजह से 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स में उसका चयन भी हो गया। वह क्वालीफ़ाइंग हीट में 5वें स्थान पर रहा। वह देश के लिए पांडाल लाना चाहता था। 2014 में भी उसके भाग्य ने उसका साथ नहीं दिया और कड़ी मेहनत के बाद भी उसका चयन कॉमनवेल्थ में नहीं हो सका। मनजीत अपने पिता से हर समय कहता था कि वह कॉमनवेल्थ और बड़ी प्रतियोगिताओं में भाग लेता रहेगा और एक दिन देश के लिए ज़रूर मेडल लेकर आएगा। इसी वजह से वह तब से कैंपों में भाग लेता रहा और दिन रात पसीना बहता रहा। आज मनजीत की मेहनत सफल हो गयी। मनजीत ने इतिहास रच दिया।