यहाँ गिरा था माँ सती का सिर, जानिए माँ के दर्शन से ही दूर हो सकता है हर दुःख !
हमारे पुराने ग्रंथो में बहुत सी धार्मिक कथाएं सुनने को मिलती है इसी तरह एक कथा ऐसी भी है जो देवी सती के अग्नि में कूद जाने से सम्बंधित है . जी हा आज हम आपको उस जगह के बारे में बताने जा रहे है जहाँ देवी सती का सिर कट कर गिरा था और आज भी वहां मात्र देवी के दर्शन करने से आपको उनका आशीर्वाद मिल जाता है . तो आईये आपको बताते है कि ऐसी कौन सी जगह है (सुरकुट पर्वत पर स्थित है) और ऐसा कौन सा देवी का मंदिर है जहाँ देवी सती के दर्शन होते है? साथ ही आपको बताते है कि आखिर क्यूँ देवी सती को यज्ञ में कूद कर खुद को ही त्यागना पड़ा था ? .
जौनपुर प्रखण्ड के सुरकुट पर्वत पर स्थित है माँ का मंदिर ..दरअसल ये प्रसिद्ध मंदिर टिहरी जनपद में जौनपुर प्रखंड के सुरकुट पर्वत पर स्थित है और ये मंदिर सिद्धपीठ मां सुरकंडा के नाम से जाना जाता है क्योंकि पुरानी मान्यता के अनुसार यही पर माँ सती का सिर गिरा था . पुराने ग्रंथो के अनुसार एक बार जब राजा दक्ष ने कनखल में यज्ञ का आयोजन किया था तो उसमें भगवान शिव को नहीं बुलाया, लेकिन शिव के मना करने पर भी सती यज्ञ में पहुंच गई . बस इसी वजह से वहां दूसरे देवताओं की तरह भगवान् शिव का सम्मान नहीं किया गया। पति का अपमान और स्वयं की उपेक्षा से ही क्रोधित होकर सती तब यज्ञ कुंड में कूद गई . इसके बाद शिव जी सती का शव ही त्रिशूल में टांगकर आकाश भ्रमण करने लगे और इसके बाद जो हुआ उस कथा को पढ़ कर आप भी चौंक जायेंगे .
शिव भृमण के दौरान यहाँ गिरा था सिर .. इसी दौरान जब भगवान् शिव माँ सती का शव लेकर आकाश में भृमण कर रहे थे तब सती का सिर सुरकुट पर्वत पर ही जा गिरा . तभी से यह स्थान सुरकंडा देवी सिद्धपीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ . वैसे इसका उल्लेख केदारखंड व स्कंद पुराण में भी मिलता है . कि साथ ही यह भी कहा जाता है यहाँ राजा इंद्र ने मां की आराधना कर अपना खोया हुआ साम्राज्य भी प्राप्त किया था . आपको बता दे कि ये क्षेत्र की इकलौती ऊंची चोटी होने के कारण यहां से चंद्रबदनी मंदिर, तुंगनाथ, चौखंबा, गौरीशंकर, नीलकंठ, दूनघाटी आदि स्थान भी अच्छे से दिखाई देते हैं . यह मंदिर समुद्र तल से करीब तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और कद्दूखाल से करीब दो किलोमीटर तक की पैदल दूरी तय कर मंदिर में पहुंचा जाता है . इस तरह इस मंदिर के दर्शन कर आप भी माँ सती का फलस्वरूपी आर्शीवाद पा सकते है .
क्या है इसका महत्व ..ऐसा कहा जाता है कि मां सुरकंडा के दर्शनों का बहुत विशेष महत्व है क्योंकि यह इकलौता सिद्धपीठ है, जहां गंगा दशहरा पर विशाल मेला लगता है और दूर-दूर से लोग मां के दर्शन करने के लिए मंदिर पहुंचते हैं . इस मौके पर मां के दर्शनों का महत्व और भी बढ़ जाता है . इस स्थान को लेकर एक और कथा भी प्रचलित है और वो ये कि जब राजा भागीरथ तपस्या कर गंगा को पृथ्वी पर लाए थे तो उस समय गंगा की एक धारा यहां सुरकुट पर्वत पर भी गिरी थी। तभी से गंगा दशहरा पर मां के दर्शनों का विशेष महत्व माना गया है। वैसे माँ के दर्शनों से ही आपके सभी कष्टो का समाप्न भी हो जाता है . इसलिए आप भी इस स्थान पर आईये और माँ की कृपा पाईये .
यू तो हम तीर्थ स्थानों पर जाते ही है पर अगर सच्चे मन से कुछ माँगा जाए तो आपकी सब मनोकामनाये जरूर पूरी होती है . वैसे तो भगवान् का अंश हर स्थान पर स्थित होता है पर कई बार अपने भगवान् को प्रसन्न करने के लिए खास प्रयत्न करना पड़ता है और तीर्थ दर्शन या मंदिर में जाकर देवी देवताओ के दर्शन करना भी उन्ही प्रयत्नों में से एक है . इसलिए ये बात हमेशा याद रखिये कि कब आपका एक प्रयत्न ही आपके लिए आर्शीवाद का स्वरूप बन कर आ जाये ये कोई नहीं कह सकता .