दिलचस्प

इन लोगों से मित्रता करने से पहले ध्यान रखे ये खास बातें, वरना मिल सकता है कभी भी धोखा !

यदि हम अपने पुराने ग्रंथो पर नज़र डाले तो उनमे तुलसीदास जी का नाम बहुत अमूल्य माना जाता है जिन्होंने रामचरितमानस की रचना की थी ! जो राम भक्त भी थे ! रामभक्त होने के कारण ही रामचरितमानस तुलसी जी का सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ था जिसकी रचनाये किताबो में आज भी पढ़ने को मिलती है ! वैसे तुलसीदासजी ने अपने इसी लोकप्रिय ग्रंथ रामचरितमानस के किष्किंधाकांड में श्री राम व सुग्रीव की आपसी बातचीत के माध्यम से ये भी बताया है कि अच्छे मित्र में क्या गुण होने चाहिए और कैसे लोगों से आपको मित्रता नहीं करनी(friendship lessons) चाहिए ! तो आईये जानते है कि सच्ची मित्रता के बारे में हमारे ग्रंथो का क्या कहना है और तुलसीदास जी ने दोस्ती करने से पहले किन विशेष बातों का ध्यान रखने का ज़िक्र किया है !

1.                                               सेवक सठ नृप कुपन कुनारी !
कपटी मित्र सूल सम चारी !!
सखा सोच त्यागहु बल मोरें !
सब बिधि घटब काज मैं तौरें !

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कपटी लोगों से हमेशा बनाये रखे दूरी  ….इसका अर्थ है कि मूर्ख सेवक, कंजूस राजा, कुलटा स्त्री और कपटी मित्र ये सब एक तीर के समान होते है ! जिस तरह एक तीर चुभ कर केवल तकलीफ देता है वैसे ही ऐसे लोग भी सिवाय तकलीफ के और कुछ नहीं देते ! साथ ही तुलसीदास जी ने अपनी इन पंक्तियों में ये भी दर्शाया है कि सच्चे मित्र वो होते है जो बिना किसी परेशानी के हमारी सारी चिंता खुद पर लेने को तैयार रहते है और हमारे माथे पर इतना सा भी बल नहीं पड़ने देते ! वही लोग हमारे सच्चे सारथी होते है !
2.                                                   देत लेत मन संक न धरई !
बल अनुमान सदा हित करई !!
विपति काल कर सतगुन नेहा !
श्रुति कह संत मित्र गुन एहा !!

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विपति के समय ही होती है सच्चे मित्र की सही पहचान  (friendship lessons 2)

…इन पंक्तियों में तुलसीदास जी ने संत मित्र यानि सच्चे मित्र के गुणो की बात कही है ! उनका कहना है कि जो लोग विपति के समय आपका साथ छोड़ दे और अच्छे समय में आपकी चापलूसी करे वो कभी भी आपके सच्चे मित्र नहीं बन सकते और जो लोग बिना संकोच आपकी सहायता करे और अगर आपको किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो वो आपको उसे लेने या देने में ज़रा भी न सोचे वही आपके सच्चे तौर पर मित्र होते है ! इतना ही नहीं विपति के समय ये आपसे अधिक स्नेह भी जताते है और वेद ग्रन्थ के अनुसार यही सच्चे मित्र के गुण है !

 

3.                                               जिन्ह केँ अति मति सहज न आई
ते सठ कत हठि करत मिताई !
कुपथ निवारि सुपंथ चलावा !
गुन प्रगटै अवगुनन्हि दुरावा !!

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बुरे चरित्र के व्यक्तियों से न करे मित्रता friendship lessons 3

..इसमें तुलसीदास जी ने मित्र द्वारा दिखाए गए मार्गदर्शन की बात कही है ! उनका कहना है कि जिन व्यक्तियों की बुद्धि उलटी होती है वो हठी अर्थात ज़िद्द करके अच्छे लोगों से मित्रता करने के लिए हमेशा आतुर रहते है ! जो लोग केवल बुरा सोचते है ऐसे लोगों को तो मित्रता करने का अधिकार ही नहीं है और न ही ऐसे लोगों से मित्रता करनी चाहिए ! एक सच्चे मित्र का कर्तव्य ये होता है कि यदि उसका दोस्त किसी गलत मार्ग की तरफ आगे बढ़ रहा है तो उसे सही रास्ता दिखाए और गलत करने से रोके ! साथ ही उसके गुणो को उसके सामने लाये और उसके अवगुण छिपाये ताकि वो अपने मित्र का मनोबल बढ़ सके ! ये भी एक सच्चे मित्र के गुण होते है !

बनावटी लोगों से दूर रहने में है भलाई (friendship lessons 4)

4.                                                आगें कह मृदु बचन बनाई !
पाछें अनहित मन कुटिलाई !!
जाकर चित अहि गति सम भाई!
अस कुमित्र परिहरेहिं भलाई !!

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..इस पंक्ति के द्वारा तुलसीदास जी ने आज की मित्रता को दर्शाया है ! जी हा आज कल बहुत से ऐसे दोस्त होते है जो आपके मुह पर तो आपकी तारीफ करते है और आपको बहुत अच्छा कहते है ! बहुत प्यार और मिठास भरे शब्दो में बात करते है पर आपकी पीठ पीछे आपके लिए बहुत कटु शब्दो का प्रयोग करते है ! ऐसे मित्र केवल दिखावे के मित्र होते है ! संत जी का कहना है कि ऐसे मित्र सांप की चाल के समान टेढ़े होते है और ऐसे मित्रो को त्यागना ही बेहतर होता है !

5.                                              जे न मित्र दुःख होहिं दुखारी !
तिन्हहि बिलोकत पातक भारी !
निज दुःख गिरी सम रज करि जाना !!
मित्रक दुःख रज मेरु समाना !

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मित्र के दुःख को महसूस न करने वाले(friendship lessons 5) ..

जो लोग अपने मित्र के दुःख को दुःख न समझ कर उसका उपहास उड़ाए ऐसे लोग कभी सच्चे मित्र नहीं कहलाते ! ऐसे लोगों को देख कर ही घृणा होती है ! ऐसे मित्रो के लिए अपना दुःख पर्वत के समान यानि उन्हें अपना दुःख बड़ा लगता है और अपने मित्रो का दुःख एक धूल और सुमेरु यानि बहुत छोटा सा प्रतीत होता है ! इनको कोई फर्क नहीं पड़ता कि इनका मित्र दुखी है ! ऐसे लोग कभी मित्रता नहीं निभा सकते !

तुलसीदास जी ने जिस तरह एक सच्चे मित्र का बखान किया है वो किसी ज्ञान से कम नहीं ! इससे हम उन व्यक्तियों की पहचान कर सकने में सक्षम होंगे जो हमारे सच्चे मित्र नहीं है बस केवल दिखावा करते है ! तुलसीदास जी का ये ज्ञान भविष्य में भी अच्छे लोगों और मित्रो का चुनाव करने में हमारी बहुत सहायता करेगा ! इन बातों को पढ़ कर आपको भी एक अच्छे मित्र के गुणो का पता चल ही गया होगा और ये भी कि किन लोगों और मित्रो से आपको दूर रहने की जरूरत है !

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