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देश में यहां आज भी कायम है ब्रिटिशराज, भारत सरकार सलाना देती है करोड़ों का राजस्व

वैसे तो भारत को आजाद हुए सात दशक से ऊपर हो चुके हैं और हम हिंदुस्तानी हर साल अपनी आजादी का जश्न भी मनाते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि अभी भी देश के एक हिस्से पर ब्रिटिश हुकूमत का राज कायम है। जी हां, शायद आपको इस बात पर य़कीन ना हो रहा तो आपको बता दें कि यहां से हर साल 1.20 करोड़ का राजस्व भी ब्रिटेन को भेजा जाता है। चलिए आपको विस्तार से बताते हैं कि आखिर ऐसा क्यों और कब से हो रहा है।

दरअसल, ये भारत में बिछी हुई ऐसी रेल लाइन है, जिसका मालिकाना हक भारतीय रेलवे की बजाए ब्रिटेन की एक निजी कंपनी के पास है .. ऐसे में इसकी रॉएल्टी भी उसी को जाती है। असल में अमरावती से कपास मुंबई पोर्ट तक पहुंचने के लिए अंग्रेजों ने इस ट्रैक का निर्माण करवाया था। इसका निर्माण 1903 में ब्रिटिश कंपनी क्लिक निक्सन की ओर से शुरू किया गया और रेल ट्रैक को बिछाने का पूरा काम 1916 में पूरा हुआ। वहीं इसकी निर्माता कम्पनी की बात करें तो 1857 में स्थापित इस कंपनी को आज सेंट्रल प्रोविन्स रेलवे कंपनी के नाम से जाना जाता है।

गौरततब है कि साल 1951 में भारतीय रेल का राष्ट्रीयकरण करने के बावजूद सिर्फ ये रूट ही भारत सरकार के अधीन नहीं हुआ।ऐसे में महाराष्ट्र में बिछे नैरो गेज वाले इस ट्रैक का इस्तेमाल करने वाली भारतीय रेलवे सलाना 1.20 करोड़ रुपए की रॉयल्टी ब्रिटेन की उस प्राइवेट कंपनी को देती है। वैसे इस रेलवे ट्रैक पर सिर्फ एक ही ट्रेन चलती है। ये है.. शकुंतला एक्सप्रेस पैसेंजर जो कि अमरावती से मुर्तजापुर के 189 किलोमीटर का सफर अधिकतम गति 20 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पूरा करती है।

हालांकि बीच में दो बार शकुंतला एक्सप्रेस को बंद भी किया गया था.. पहली बार 2014 में और दूसरी बार अप्रैल 2016 में मगर फिर महाराष्ट्र के लोगों की मांग और क्षेत्र के सासंद के दबाव में आकर सरकार को इसे फिर से शुरू करना पड़ा। क्षेत्र के प्रतिनिधियों का कहना है कि, ये ट्रेन अमरावती के लोगों की लाइफ लाइन है और क्षेत्र के सांसद ने इसे ब्रॉड गेज में कन्वर्ट करने का प्रस्ताव भी रेलवे बोर्ड को भेजा है।

वैसे भारत सरकार ने इस ट्रैक को बहुत बार खरीदने का प्रयास भी किया है लेकिन कुछ तकनीकी कारणों से ये संभव नहीं हो सका। ऐसे में आज भी इस ट्रैक पर ब्रिटेन की सेंट्रल प्रोविन्स रेलवे कंपनी का कब्जा है और साथ ही इसके देख-रेख की पूरी जिम्मेदारी भी उसी पर है। लेकिन हर साल करोड़ो की राजस्व देने के बावजूद ये कम्पनी कभी इसकी मरम्मत नही कराती है जिसकी वजह से ये ट्रैक बेहद जर्जर हो चुका है। रेलवे सूत्रों की माने तो पिछले 60 साल से इसकी मरम्मत नहीं हुई है। जबकि सात कोच वाले इस पैसेंजर ट्रेन में हर रोज लगभग एक हजार से ज्यादा लोग यात्रा करते हैं।

आपको बता दें कि 100 साल से पुरानी 5 डिब्बों की इस ट्रेन को 70 साल तक स्टीम का इंजन खींचता था.. हालांकि, 15 अप्रैल 1994 को शकुंतला एक्प्रेस के स्टीम इंजन की जगह डीजल इंजन का इस्तेमाल किया जाने लगा। वैसे इस रेलवे लाईन पर लगे सिग्नल आज भी ब्रिटिशकालीन ही हैं।

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