क्यों किया जाता है मुंडन संस्कार? जानिए इसका अध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व
सनातन धर्म में व्यक्ति के जन्म से लेकर मरण तक 16 संस्कार की प्रथा हैं जिसमें से एक प्रमुख संस्कार मुंडन भी है। बच्चो के जन्म के बाद पहले,तीसर,पांचवे या सातवें साल में उनका मुंडन संस्कार किया जाता है.. इसके अलावा जब किसी परिजन या रिश्तेदार की मौत हो जाती है तो भी दाह संस्कार के बाद लोग मुंडन कराते हैं.. इन दोनो ही स्थिति में हिन्दू धर्म में मुंडन करवाया जाता है। सनातन धर्म में चली आ रही इस परम्परा का आज भी लोग पालन करते हैं .. पर इसके पीछे का कारण बहुत ही कम लोग जानते हैं कि.. आखिर क्यों छोटे बच्चों के मुंडन संस्कार की परम्परा चली आ रही है और साथ ही दाह संस्कार के बाद क्यों मुंडन कराना जरूरी होता है।अगर आप भी मुंडन सस्कार के महत्व से अंजान है तो चलिए आपको बताते हैं इसके पीछे छुपे अध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व के बार में..
अगर बच्चे के मुंडन संस्कार की बात की जाए तो इसके पीछे की प्रचलित मान्यता ये है कि बच्चा जब जन्म लेता है, तो उसके सर पर गर्भ के कुछ बाल होते है जिन्हें पवित्रता की दृष्टि की अशुद्ध माना जाता है.. ऐसे में इस अशुद्धी को दूर करने के लिए जल्द से जल्द बच्चे का मुंडन कराना जरूरी माना जाता है। यानी इस तरह धार्मिक और वैज्ञानिक दोनो ही कारणों से जरूरी है ।
अगर धार्मिक कारण की बात करें तो यजुर्वेद के अनुसार मुंडन संस्कार से बल, आयु, आरोग्य तथा तेज में वृद्धी होती है। यजुर्वेद में लिखा है
निर्वतायाम्यायुषेन्नष्द्याय प्रजननाय।
रायस्पोषाय सुप्रजास्तवाय सुवीर्याय।।
ये वो सुक्ति है जिसे मुंडन करने वाला बच्चे के लिए बोलता है .. जिसका अर्थ है कि हे बालक, मैं तेरी लंबी आयु के लिए, तुझे उत्पादन शक्ति प्राप्त करने के लिए, ऐश्वर्य बढ़ाने के लिए, सुंदर संतान प्राप्ति के लिए और पराक्रमी होने के लिए तेरा चूड़ाकर्म यानी मुंडन संस्कार करता हूं। वास्तव में मुंडन संस्कार एक तरह से सिर की पूजा-अभिवंदना है। इससे बच्चे में मानवतावादी आदर्श प्रतिस्थापित होते हैं। इसीलिए मुंडन संस्कार किसी धार्मिक या तीर्थस्थल पर कराया जाता है ताकि बच्चे को उस स्थल के दिव्य वातावरण और पुण्य का लाभ बच्चे को मिल सके और उसके मन में शुभ और सुविचारों की उत्पत्ति हो सके।
वहीं अगर बच्चे के मुंडन संस्कार के पीछे छुपे वैज्ञानिक कारण की बात करे तो.. बच्चा जब माँ के गर्भ में होता है तो उसके सिर पर कुछ बाल होते है जिनमे बहुत से कीटाणु और बैक्टीरिया लगे होते है और जन्म के बाद ये बैक्टीरिया नहलाने और धोने से भी नहीं निकलते। ऐसे में जन्म के बाद जल्दी ही बच्चे का मुंडन करवाना चाहिए। इसके साथ ही मुंडन करवाने से कई सारे स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं.. जैसे कि इससे बच्चों के शरीर का तापमान सही रहता है और इससे उन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जैसे फोड़े, फुंसी, दस्त आदि नहीं होती है। साथ ही मुंडन करवाने से बच्चों के दांत निकलते समय होने वाला सिर दर्द और तालू का कांपना भी बंद हो जाता है।
इसके अलावा मुंडन करवाने से बच्चे के बाल भी अच्छे होते हैं .. दरअसल मुंडन के बाद बच्चे के सिर पर विटामिन डी यानी धुप की रोशनी सीधी पड़ती है जिससे उसके सिर की कोशिकाएं जागृत होती जाती है और वहां तक रक्त का संचार बेहतर होता है .. और भविष्य में आने वाले बाल अच्छे होते हैं।
इसके अलावा दाह संसकार के बाद मुंडन की बात की जाए तो इसके पीछे का कारण ये है कि जब किसी पार्थिव शरीर को जलाया जाता है तो वहां कुछ हानिकारक जीवाणु हमारे शरीर पर चिपक जाते हैं। इसीलिए इस तरह के अशुद्धी को पूरी तरह दूर करने के लिए मुंडन कराया जाता है।
वैसे मुंडन संस्कार की परम्परा हिंदू धर्म के अलावा और भी धर्म सम्प्रदायों में भी देखने को मिलती है जैसे कि बौद्ध, जैन धर्म में भी मुंडन का विशेष महत्व है.. छोटे बच्चो के साथ बड़े लोग भी मुंडन कराते हैं। इसके साथ ही कुछ लोग मन्नत की वजह से भी मुंडन कराते है .. मन्नत पूरी हो जाने के बाद लोग अपने बाल भगवान को अर्पित करते हैं.. ये परंपरा तिरुपति और वाराणसी में बहुत है।
जिसके पीछे का कारण पूरी तरह अध्यात्मिक है .. दरअसल मुंडन के जरिए लोग अपने सिर के बाल का दान करते हैं जिसके साथ वो अपने अहम, बुरे विचारो का त्याग करते हैं और शुभ कर्मो और सात्विक विचारों के लिए स्वयं को तैयार करते हैं।