सिर्फ सुहाग की निशानी ही नहीं, सिंदूर स्त्री के स्वास्थ्य के लिए भी है लाभदायक
सुहागन स्त्री के माथे पर सजा एक चुटकी सिंदूर उसके जीवन की सुख-समृद्धी का परिचायक होता है, पति के नाम पर लगा ये चिन्ह उसके अखंड सुहागन होने की निशानी होती है। एक सुहागन के लिए सभी सोलह श्रृंगार में सिंदूर सबसे मुख्य माना जाता है .. मान्यता है कि सिंदूर लगाने से पति की आयु लम्बी होती है और स्त्री को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वैसे आपको बता दें कि सिंदूर लगाने से स्त्री को कई सारे स्वास्थ्य लाभ भी मिलते हैं। असल में हिन्दु धर्म में ही सुहागन स्त्रियों के सिंदूर लगाने की प्रथा है और हिंदू धर्म में हर प्रथा और मान्यता के पीछे कुछ वैज्ञनिक कारण भी है.. सिंदूर लगाने की प्रथा के साथ भी ऐसा ही। सनातन धर्म में महिलाओं के सिंदूर लगाने के पीछे पौराणिक और वैज्ञानिक दोनों ही कारण होते है। आज हम आपको सिंदूर लगाने के पीछे छुपे इसी वैज्ञानिक तथ्य के बारे में बताने जा रहे हैं।
दरअसल सिंदूर में मर्करी यानी पारा होता है और पारा अकेली ऐसी धातु है जो लिक्विड रूप में पाई जाती है। ऐसे में सिंदूर के रूप में इसे लगाने से मस्तिष्क को शीतलता मिलती है और दिमाग तनावमुक्त रहता है। चूंकि जब किसी लड़की का विवाह होता हैं तो शादी के बाद उस पर घर परिवार की कई सारी जिम्मेदारियों का दबाव एक साथ आता हैं और इन सबका प्रभाव नवविवाहिता स्त्री के मन-मस्तिष्क पर पड़ता हैं। जिससे की तनाव उपजता है और सिर दर्द, अनिद्रा जैसे अन्य मस्तिष्क से जुड़े रोगों उसे घेर सकते हैं .. ऐसे में सिंदूर लगाना मानसित तनाव से स्त्री को मुक्त रखने में बहुत ही सहायक सिद्ध होता हैं.. और शादी के बाद महिलाओं को अपनी मांग में सिंदूर जरूर लगाने की रीत शुरू करने के पीछे एक ये वजह भी रही है ।
वहीं सिंदूर लगाने से रक्त संचार भी पहले से बेहतर होता है और ये यौन क्षमताओं को भी बढ़ाने का काम करता है।
इसके अलावा सिंदूर लगाने से सौंदर्य में भी वृद्धी होती है ..असल में इसमें मौजूद पारा के कारण चेहरे पर जल्दी झुर्रियां नहीं पड़ती।
साथ ही सिंदूर से स्त्री के शरीर से निकलने वाली विद्युतीय उत्तेजना भी नियंत्रित रहती है।
इन सारे स्वास्थ्य लाभ के साथ ही माथे पर सिंदूर लगाने से स्त्री बुरी नजर से भी बची रहती है .. असल में माथे पर जहां सिंदूर लगाया जाता है, वो स्थान ब्रह्मरंध्र और अध्मि नामक मर्म के ठीक ऊपर होता है और वहां भरा हुआ सिंदूर मर्म स्थान को बाहरी बुरे प्रभावों से भी बचाता है । सामुद्रिक शास्त्र में अभागिनी स्त्री के दोष निवारण के लिए मांग में सिन्दूर लगाने की बात कही गई है।
वहीं अगर सिंदूर के पौराणिक महत्व की बात करे तो सनातन धर्म में लाल रंग के माध्यम से देवी सती और पार्वती की ऊर्जा को व्यक्त किया गया है। सती एक आदर्श पत्नी का प्रतीक मानी जाती है जो अपने पति के खातिर अपने जीवन का त्याग सकती है। ऐसे में पौराणिक मान्यता के अनुसार सिंदूर लगाने से देवी पार्वती और सती का आशीर्वाद प्राप्त होता है और स्त्री का सुहाग हमेशा बना रहता है ।