क्या आपको यह पता है कि रावण की मृत्यु के बाद सूपर्णखा सीता से मिलने जंगल आई थी, फिर ये हुआ था..
भारतीय इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना राम और रावण से जुडी हुई है, इसके बारे में तो सभी लोग जानते ही होंगे। रामायण राम और रावण को मिला कर के ही बनी हुई है। सीता के अपहरण का बदला लेने के लिए राम ने रावण का वध कर दिया, लेकिन कोई और भी था जो सीता से मिलने के लिए बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था। वह कोई और नहीं बल्कि रावण की बहन सूपर्णखा थी (Surpanakha Met Sita in forest after death of Rawan)।
राम और रावण के बीच युद्ध के पीछे इसी का हाथ था। सूपर्णखा का बदला अब तक पूरा नहीं हुआ था। जब सूपर्णखा ने सुना कि राम ने सीता हो बचा लिया है, तब उसने खुद ही बदला लेने की ठानी। सूपर्णखा ने याद किया कि कैसे राम और लक्षमण ने मिलकर उसकी बेइज्जती की थी और उसकी गरीमा छीनकर उसकी नाक काट दी थी। अपनी बहन की बेइज्जती का बदला लेने के लिए रावण ने सीता को धोखे बंदी बनाकर राम से बदला लेने का निर्णय लिया। राम ने अपनी पत्नी को बचाने के लिए रावण का वध कर दिया।
लंका में युद्ध जीतने के बाद राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्षमण के साथ अयोध्या लौट आये। अयोध्या आने के बाद यहाँ के निवासियों ने सीता की पवित्रता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया और राम को मजबूर कर दिया कि वह सीता को छोड़ दें। सीता एक आज्ञाकरी पत्नी की तरह अपने पेट में पल रहे बच्चे के साथ अयोध्या छोड़ दिया। सीता सीधे घने जंगल की तरफ बढ़ी, वह उन्हें वाल्मीकि मिले जो उन्हें अपने साथ अपनी कुटिया पर लाये।
जब सीता से मिलने सुपर्नखा जंगले पहुँची ( Surpanakha Met Sita in forest):
सीता जंगल के प्राकृतिक वातावरण में शांतिपूर्ण रह रही थी, अचानक एक दिन सूपर्णखा उनसे मिलने जंगल आई। अब परिस्थितियाँ बदल चुकी थी, वह स्त्री जिसे अपने पति द्वारा छोड़ दिया गया है और वह किसी और पुरुष के साथ रह- रही है, यह सब देखकर सूपर्णखा के ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा। सूपर्णखा ने सीता का मजाक उदय और उसे याद दिलाया कि राम ने सीता को अस्वीकार कर दिया है जैसे एक बार उसे किया था। सूपर्णखा ने सीता को यह भी याद दिलाया की कि एक समय वह भी इस दर्द को झेल चुकी है जो आज तुम झेल रही हो और यह देखकर मैं बहुत खुश हूँ।
ता ने सूपर्णखा की सारी बातें शांतिपूर्वक सुनी और उसकी बात का बुरा ना मानते हुए हँसकर उसकी तरफ बेर देते हुए कहा कि, ‘यह बेर उतने ही मीठे हैं जीतने शबरी के बेर मीठे थे’। सूपर्णखा यह देखकर हैरान हो गयी कि, उसने सोचा था की सीता को दुखी करके वह सुख का अनुभव करेगी और यहाँ तो बिलकुल उल्टा हो रहा है……..
सीता ने सुपर्नखा को जब बेर दिया:
सीता ने सूपर्णखा की सारी बातें शांतिपूर्वक सुनी और उसकी बात का बुरा ना मानते हुए हँसकर उसकी तरफ बेर देते हुए कहा कि, ‘यह बेर उतने ही मीठे हैं जीतने शबरी के बेर मीठे थे’। सूपर्णखा यह देखकर हैरान हो गयी कि, उसने सोचा था की सीता को दुखी करके वह सुख का अनुभव करेगी और यहाँ तो बिलकुल उल्टा हो रहा है, सीता स्थिर अवस्था में बैठकर मुस्कुराये जा रही है। यहाँ सीता ने अपने भाग्य को स्वीकार कर मुस्कुराना सिख लिया है। सूपर्णखा का दुःख देखकर सीता ने उससे कहा, “कब तक हम किसी और से उतने ही प्रेम की उम्मीद कर सकते हैं जितना हम उन्हें करते हैं। अपने अन्दर की शक्ति को खोजो दूसरों को प्रेम करने के लिए जब वह आपने प्रेम ना करता हो। खुद के भूख की परवाह किये बिना दूसरो को खिलाना सीखो।“
सीता की बातें सुनकर सुपर्नखा और पागल हो गई, और बोली मुझे अपने अपमान का बदला चाहिए। सीता ने उसे बताया कि जो बात बीत गई है उसे दुहराने से कोई फायदा नहीं है, पहले ही सबको उसके कर्मो के हिसाब से फल मिल चुका है। सीता ने सूपर्णखा को कहा की जो हुआ उसे भूल जाओ और जीवन में आगे बढ़ो, जिसने उसको दुःख दिया है उनका दिमाग कभी नहीं बढ़ सकता है, लेकिन तुम तो अपने दिमाग का इस्तेमाल कर सकती हो। सीता ने उसे बताया की वह अपने ही जाल में फसती जा रही है अगर ऐसा ही रहा तो वह भी रावण की तरह बन जाएगी। सीता ने कहा संस्कृतियाँ आती हैं और चली जाती है, राम आते हैं और चले जाते हैं पर प्रकृति सदैव रहती है, इसका आनंद लो।