आखिर क्यों शादीशुदा होने के बाद भी इन महिलाओं को माना जाता है कुँवारी? जानकर हो जायेंगे हैरान
हमारे इतिहास में कुछ ऐसी महिलाओं के बारे में बताया गया है, जो शादीशुदा होने के बाद भी कुँवारी मानी जाती थी। अब आप सोच रहे होंगे की यह किस तरह का मजाक है, शादीशुदा होने के बाद कोई कैसे कुँवारी रह सकता है। हमारे पुराणों में कुछ ख़ास महिलाओं के लिए कन्या का प्रयोग किया गया है, उन्हें नारी कहकर संबोधित नहीं किया गया है। इन महिलाओं के अपने पतियों के अलावा भी दुसरे लोगों से सम्बन्ध थे, इसके बाद भी इन्हें कुँवारी ही माना गया। इसकी सच्चाई जानकर आप हो जायेंगे हैरान।
शादीशुदा होने के बाद भी कुँवारी कहलाने वाले महिलाएँ:
पद्मपुराण के अनुसार गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या बहुत खुबसूरत थी। एक बार घूमते हुए इन्द्रदेव उनकी खूबसूरती देखकर मोहित हो गए। एक बार की बात है जब गौरं ऋषि पूजा के लिए घर से निकले तो इंद्रदेव उनका रूप धारण करके उनके घर चले आये। अहिल्या यह देखकर हैरान हुई और जल्दी आने का कारण पूछा। फिर इन्द्र ने मौका देखकर उनके साथ सम्बन्ध बनाया। उसी समय गौरम ऋषि आये और अहिल्या को किसी पराये पुरुष के साथ देखकर उन्हें पत्थर का हो जाने का श्राप दे दिया। उन्होंने क्रोध में इंद्रा को भी श्राप दे दिया। बाद में जब सच्चाई पता चली तो उन्होंने राम के चरणों से स्पर्श करने पर मुक्ति का आशीर्वाद भी दिया। अपनी गलती ना होने पर भी श्राप कबूल करने के लिए उन्हें कुँवारी माना जाता है।
मंदोदरी रावण की पत्नी थी। रावण ने उनकी सुन्दरता की वजह से उनसे विवाह किया था। मंदोदरी बहुत ही चतुर थी। वह हमेशा रावण को सही-गलत के बारे में समझाती रहती थी। लेकिन रावण ने उनकी कभी नहीं सुनी। रावण की मौत के बाद राम के कहने पर विभीषण ने मंदोदरी को आश्रय दिया। मंदोदरी को उनके गुणों की वजह से महान और उनकी पवित्रता को कन्याओं जैसा माना गया है।
द्रौपदी ने स्वयंवर में अर्जुन को अपना पति स्वीकार किया लेकिन कुंती के कहने पर पाँचों पांडवों की पत्नी बनकर रहना पड़ा। द्रौपदी ने हर परिस्थिति में पांडवों का साथ दिया। द्रौपदी ने अपनी ख़ुशी की बजाय पांडवों की ख़ुशी का ध्यान रखा और कभी किसी एक के साथ रहने की जिद नहीं की। द्रौपदी ने हमेशा अपने कर्तव्यों का पालन किया, इसी वजह से उन्हें महान माना जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार इन पाँचों का स्मरण करने से ही महापाप का नाश हो जाता है।
राजा पांडु की पत्नी और तीन पांडवों की माँ कुंती को दुर्वासा ऋषि ने एक ऐसा मंत्र दिया था, जिसको किसी भी देवता का ध्यान करके स्मरण करने पुत्र की प्राप्ति होती थी। कुंती उस मंत्र की जाँच करने के लिए सूर्यदेव का ध्यान करके मंत्र का पाठ किया। सूर्य ने उन्हें एक पुत्र कर्ण दिया। अविवाहित होने की वजह से कुंती ने कर्ण को त्याग दिया। बाद में स्वयंवर के दौरान कुंती का विवाह पांडु से होता है। लेकिन पांडु को एक श्राप था कि स्त्री को छूते ही उनकी मृत्यु हो जाएगी। पांडु की मृत्यु के बाद कुरु वंश समाप्त ना हो जाये इसलिए कुंती ने धर्मदेव से युधिष्ठिर, वायुदेव से भीम और इन्द्रदेव से अर्जुन को पाया। अलग-अलग देवताओं से संतान पानें के बाद भी उन्हें कुँवारी माना जाता है।