कहानी ऐसे भयानक और रहस्यमयी आईलैंड की जहां 1000 सैनिक गए थे और लोटे सिर्फ 20, क्यों की बाकी को.
हमारे आस-पास प्रकृति द्वारा बनाई हुई कई अजीबो-गरीब चीजें देखने को मिलती हैं। कुछ चीजें अजीबो-गरीब होने के साथ-साथ भयानक और रहस्यमयी भी होती हैं। इस पृथ्वी पर ही कई ऐसी जगहें हैं, जो अपने भयानक होने के लिए काफी प्रसिद्ध हैं। उन जगहों पर जाने तो क्या सोचने में भी लोगों को डर लगता है। कई ऐसी भी रहस्यमयी जगहें हैं, जहाँ आजतक किसी इंसान ने पैर भी नहीं रखें हैं। अगर किसी ने पैर रखें भी हैं तो वह वापस नहीं लौटकर आ पाया है।
अक्सर आईलैंड का नाम सुनते ही मन में एक अलग ही तस्वीर उभर पड़ती है। ऐसा लगता है जैसे हर आईलैंड खुबसूरत और मनोरम ही होता होगा। लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं है। म्यांमार के बर्मा तट पर बड़ा हुआ रामरी आईलैंड भी बिलकुल ऐसा ही आईलैंड है जो अपने रहस्यों और डर के लिए जाना जाता है। इस आईलैंड के बारे में कहा जाता है कि यहाँ 1000 जापानी सैनिकों पर मौत ने ऐसा कहर बरसाया कि उनमें से केवल 20 ही जिन्दा वापस लौट पाए थे। जो सैनिक वहाँ से अपनी जन बचाकर भाग आये थे उनकी कहानी सुनकर सभी लोगों के रोंगटे खड़े हो गए थे।
उन्ही में से एक सैनिक स्टेनली राईट ने अपनी किताब में वाइल्डेलाइफ स्केुचस नियर एंड फार में उस डरावनी घटना के बारे में बताया है। बात ये है कि रामरी आईलैंड एक ऐसा आईलैंड है जहाँ खूंखार मगरमच्छों का कब्ज़ा है। साथ ही आईलैंड पर नमी होने की वजह से कीचड़ का दलदल बन गया है। इस वजह से वह इलाका खूंखार मगरमच्छों और जहरीली मकड़ियों के लिए बिलकुल उपयुक्त हो गया है। अगर आप किसी तरह से भयानक मगरमच्छों के हमले से बच गए तो जहरीली मकड़ियों और मगरमच्छों से आपको कोई नहीं बचा सकता है।
रामरी आईलैंड का नाम गिनीज बूक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में ऐसी जगह के रूप में दर्ज किया गया है जहाँ जानवरों ने इंसानों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाया है। दुसरे विश्व युद्ध के समय 1945 में लगभग 1000 जापानी सैनिक हारने के बाद इसी आईलैंड पर रुके थे। जब जापानी सैनिकों से युद्ध में हारने के बाद आत्मसमर्पण के लिए कहा गया तो इन्होने उपेक्षा करते हुए इस आईलैंड के अन्दर वाले हिस्से में जाने का फैसला किया। वहाँ पर 20 फीट लम्बे और लगभग 1 टन वजन के खूंखार मगरमच्छ उनका इंतज़ार कर रहे थे। जो सैनिक उनके हमले से बचे उन्हें मच्छरों और जहरीली मकड़ियों ने अपना शिकार बना लिया। अंत में केवल 20 सैनिक ही इस आईलैंड से वापस जा पाए थे।