पेड़-पौधे बचाने के लिए उत्तराखंड की अद्भुत परम्परा, देवी-देवताओं को समर्पित कर दिया जाता है जंगल
हल्द्वानी: यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि इस पृथ्वी पर जीवन अगर संभव हुआ है तो वह प्रकृति की मदद से हुआ है। अगर प्रकृति ने पृथ्वी पर सुन्दर वन, जलाशय, पहाड़ आदि ना दिए होते तो यहाँ इंसानों ही नहीं किसी भी जीव-जंतु का रहना असम्भव होता। यही वजह है कि भारतीय संस्कृति में सदियों से पेड़-पौधों, जलाशयों और पहाड़ों की पूजा की जाती रही है। आज के समय में पर्यावरण संरक्षण बहुत जरुरी है। नहीं तो आने वाले दिनों में प्रदूषण इस कदर बढ़ जायेगा कि लोगों का जीवन मुश्किल में पड़ जायेगा। इसके लिए जंगलों की हिफ़ाजत बहुत महत्वपूर्ण है।
उत्तराखंड को ऐसे ही देवभूमि नहीं कहा जाता है। यहाँ देवताओं की ही तरह जंगलों की भी पूजा की जाती है। यहाँ के लोगों का जीवन आज भी प्रकृति की गोद में बीतता है। इसलिए इन्हें जंगलों का महत्व अच्छे से पता है। यहाँ की लोक आस्था के अनुसार लोग अपनी रक्षा के लिए नहीं बल्कि जंगलों की रक्षा के लिए मन्नत माँगते हैं। जंगलों को किसी की नजर ना लगे और वनों में पेड़-पौधे हमेशा मुस्कराते रहें, इसी सोच के साथ कुमाऊं के करीब डेढ़ हजार हेक्टेयर जंगल देवताओं को सौंपे गए हैं।
लोगों का मानना है कि एक बार ईश्वर को समर्पित करने के बाद अगर कोई जंगल को नुकसान पहुँचाता है तो उसका फैसला कानून नहीं बल्कि देवी-देवता करते हैं। इन समर्पित किये गए पेड़ों के ऊपर धर्म ध्वजाएं लगायी जाती हैं, ताकि इनको काटने वाला ईश्वर से खौफ खाए और इन पेड़ों को काटने से बचाया जा सके। कुमाऊँ में 50 से अधिक जंगलों में यही परम्पराएं चली आ रही हैं। इन जंगलों को 5-10 सालों के लिए देवी-देवताओं को समर्पित कर दिया जाता है। उसके बाद फिर से नई धर्म ध्वजाएं लगा दी जाती है।
यहाँ के लोगों की सबसे ज्यादा आस्था पिथौरागढ़ की देवी कोटगाड़ी पर है। इनको सैकड़ों सालों से इंसाफ की देवी के रूप में पूजा जा रहा है। पहाड़ के लोगों ने ही जंगलों को कटने से बचाने के लिए देवी कोटगाड़ी को सौंपने की परम्परा शुरू की थी। देवी के दरबार में पूजा-अर्चना करने के बाद धर्म ध्वजाएं उस जंगल के पेड़ों पर बाँध दिया जाता है, जिसकी रक्षा करनी है। आरक्षित वनों का जिम्मा वन विभाग के ऊपर है लेकिन जिन वनों को पंचायत की रखवाली के लिए दिया गया है, उनके संरक्षण की जिम्मेदारी पंचायत की है। गाँव के लोग इन जंगलों की रक्षा ऐसे करते हैं।