जानिए क्या है सच्चाई तलाक़ तलाक़ तलाक़ की?
हाल ही में आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि इस्लाम में निकाह और तलाक़ ( Triple Talaq) के लिए शरई कानून मौजूद है जिस पर किसी भी प्रकार का फैसला करने का अधिकार कोर्ट को नहीं है.
इस केस में पार्टी बनाये गए “भारतीय मुस्लिम महिला आन्दोलन” की तरफ से ये कहा गया है कि तीन तलाक़ और हलाला जैसे रिवाज इस्लाम के खिलाफ है तथा इससे महिलाओ का शोषण बढ़ता है. विश्व में कुल 21 इस्लामिक देश ओरल तलाक़ के इस कानून पर पूरी तरह बैन लगा चुके है, जिसमे पाकिस्तान में 1961, मिस्त्र में 1929, सीरिया में 1935, सूडान में 1953 और बांग्लादेश में 1971 में इस पर प्रतिबन्ध लगाया गया.
भारत में 2005 में आल इंडिया मुस्लिम वीमेन पर्सनल लॉ बोर्ड की स्थापना हुई जिसका मकसद मुस्लिम महिलाओ को समान अधिकार दिलाना था. इस संस्था ने 16 मार्च 2008 को एक शरई निकाहनामा पेश किया, जिसमे निकाह के लिए 17 दिशानिर्देश तथा तलाक़ के लिए 8 बिंदु बताये गए.
इस निकाहनामे के अनुसार “फ़ोन, ई-मेल, चिट्ठी, एस.एम.एस., विडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से दिया गया तलाक़ अवैध माना जायेगा, कोई भी मुस्लिम महिला अपने पति से तलाक़ ले सकती है यदि उसका पति ऐड्स का मरीज हो, यदि महिला और पुरुष चार साल से अलग रहे हो या उनके बीच पिछले एक साल से शारीरिक सम्बन्ध न हो और यदि महिला का पति उसे शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताणित करता हो तो महिला को अपने पति से तलाक़ लेने का पूरा हक़ है.”
पर अफ़सोस है कि ये सारे दिशानिर्देश आज तक अमल में नहीं लाये गए. आज भी व्हाट्सएप, फेसबुक और ई-मेल के माध्यम से तलाक़ दिए जा रहे है. जब कट्टर सोच वाले ये इस्लामिक देश इस कानून को समाप्त कर चुके है तो भारत में ये क्यूँ नहीं बंद किया जा रहा. हाजी अली, शनि शिगनापुर, त्रम्ब्केश्वर तक महिलाओ ने अपनी लड़ाई खुद ही लड़ी है और लगता है इस मुद्दे पर भी उन्हें खुद ही लड़ना पड़ेगा.