हिंदू धर्म में एक गोत्र में क्यों वर्जित है शादी, जानिए इसका पौराणिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण
ये तो हम सभी जानते हैं कि हिंदू धर्म में एक ही गोत्र में शादी करना वर्जित है.. अक्सर ऐसी खबरें सुनाई देती हैं कि एक गोत्र होने के कारण प्रेमी युगल के घर वालों ने शादी से इंनकार कर दिया और जब जोड़े ने अपनी मर्जी से शादी की तो उन्हें समाज से बहिष्कृत कर दिया गया। दरअसल सनातन धर्म में तीन गोत्र छोड़कर शादी करने की प्राचीन परम्परा चली आ रही है जिसके मुताबिक पहला गोत्र खुद वर या वधु का, दूसरा मां का और फिर तीसरा दादी के गोत्र में विवाह करना निषेध माना जाता है। आज हम आपको इस परम्परा के पीछे की पौराणिक मान्यता और इसकी वैज्ञानिक वजह दोनों के बारे में बताने जा रहे हैं। तो आइए जानते हैं कि आखिर क्यों हिंदू धर्म में एक गोत्र में वर्जित है शादी..
दरअसल गौत्र से अभिप्राय कुल या वंश से होता है ..हिन्दु धर्म में विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप- इन सप्तऋषियों और आठवें ऋषि अगस्ति की संतान ‘गौत्र’ कहलाती है। ऐसे में एक ही गोत्र के लोग एक कुटम्ब के माने जाते हैं और इस तरह एक ही गोत्र में जन्मे पुरूष और स्त्री, भाई बहन होते हैं । ऐसे में शादी करना तो दूर इस विषय में सोचना भी पाप माना जाता है। इस सम्बंध मे पुराणों और स्मृति ग्रंथों में स्पष्ट निर्देश दिया गया है। जैसा कि आपस्तम्ब धर्मसूत्र कहता है- ‘संगौत्राय दुहितरेव प्रयच्छेत्‘ यानी समान गौत्र के पुरुष को अपनी कन्या कभी नहीं देना चाहिए । साथ ही समान गौत्र में विवाह करने पर ब्राह्मणत्व से च्युत हो जाने और चांडाल पुत्र-पुत्री के उत्पन्न होने की बात भी कही गई। वहीं अपर्राक कहता है कि अगर कोई जान-बूझकर संगौत्रीय कन्या से विवाह करता है तो वो जातिच्युत हो जाता है।
सनातन धर्म के हर रीति-रिवाज और परम्परा के पीछे कुछ वैज्ञानिक तथ्य होते हैं और एक गोत्र में विवाह न करने के पीछे भी ऐसी ही महत्वपूर्ण वजह है। दरअसल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से से देखा जाए तो एक गोत्र या कुल में विवाह होने से संतान में जेनेटिक बीमारियों को होने के चांसेज बढ़ जाते हैं। ऐसे में इस तरह के अनुवाँशिक दोषों से बचने के लिए सेपरेशन ऑफ जीन्स बहुत जरूरी है जो कि तभी सम्भव है जब एक ही कुल या निकट के रिश्ते में शादी ना की जाए। असल में एक ही गौत्र में शादी करने से होने वाली संतानों में दृष्टि दोष,मानसिक विकलांगता, अपंगता जैसे गंभीर रोग अनुवांशिक दोष पाए जाते हैं। यही वजह है कि शास्त्रों में एक ही गोत्र में विवाह पर प्रतिबंध लगाया गया था।