राजनीति

इकत्तीस साल पहले आए इस फैसले ने राममंदिर की चिंगारी को हवा दी

राममंदिर मुद्दे को लेकर पांच दिसंबर यानी आज से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरु हो रही है, वहीं दूसरी तरफ सब की निगाहें हैं कि क्या वाकई इस मुद्दे के साथ अदालत से न्याय हो पाएगा। क्योंकि मुद्दा राम मंदिर और बाबरी मस्जिद से ज्यादा भावनाओं का है जिसको लेकर दो समुदाय आमने सामने है। अयोध्या के विवादित ढांचे को लेकर दोनों समुदाय अपने-अपने दावे तो सौ साल से ज्यादा समय से कर रहे हैं, लेकिन इस चिंगारी को हवा दी 31 साल पहले फैजाबाद के जिला एवं सत्र न्यायाधीश के एक आदेश ने, जिसने राममंदिर की तरफ राजनेताओं का ध्यान खींचा। 1 फरवरी 1986 को आए इसी आदेश से ढांचे पर 37 वर्षों से लगे ताले को खोलने का रास्ता साफ कर दिया। क्योंकि इस आदेश में न्यायाधीश ने लिखा था कि दर्शन व पूजा के लिए लोग रामजन्मभूमि जा सकते हैं।

अयोध्या के वकील उमेश चंद्र पांडेय ने 25 जनवरी 1986 को फैजाबाद के मुंसिफ हरिशंकर द्विवेदी की अदालत में ढांचे को रामजन्मभूमि मंदिर बताते हुए। उसपर लगे प्रशासन के ताले को खोलने के लिए याचिका दाखिल की। वकील उमेश चंद्र पांडेय ने अदालत को बताया की रामजन्मभूमि पर पूजा-अर्चना करना मनुष्य का बुनियादी अधिकार है। मुंसिफ हरिशंकर द्विवेदी ने इस मामले में कोई आदेश पारित नहीं किया क्योंकि इसपर एक मुकदमा इलाहाबाद हाईकोर्ट में पहले से विचाराधीन था। साथ ही याचिका पर कोई फैसला देने और उसके निस्तारण को लेकर असमर्थता जताई। मुंसिफ का तर्क था की मुख्य वाद के रिकार्ड के बिना कोई आदेश नहीं कर सकते। मुंसिफ कोर्ट से इंसाफ न मिलता देख उमेश चंद्र पांडेय ने इसके खिलाफ 31 जनवरी 1986 को जिला एवं सत्र न्यायाधीश फैजाबाद की अदालत में अपील दायर की। जहां उन्होंने कहा कि मंदिर का ताला खोला जाए क्योंकि इसको जिला प्रशासन ने लगाया है, न की देश की किसी अदालत के आदेश पर।

उमेश चंद्र पांडेय की अपील और मांग की याचिका को कोर्ट ने अगले ही दिन यानी एक फरवरी 1986 को स्वीकार कर ली। साथ ही मामले में जज ने जिले के तत्कालीन जिलाधिकारी इंदु कुमार पांडेय और एसएसपी कर्मवीर सिंह को कोर्ट में तलब कर लिया। जहां दोनों अधिकारियों ने अदालत को बताया कि ताला खोलने से कानून व्यवस्था के बिगडऩे की आशंका नहीं है। जिसके बाद जज ने बाबरी मस्जिद के मुख्य मुद्दई मोहम्मद हाशिम व एक अन्य पक्षकार के तर्कों को भी सुना। लेकिन इस सबके बीच राज्य सरकार ने अदालत में वकील उमेश चंद्र पांडेय की याचिका का विरोध किया, राज्य सरकार का तर्क था की रामजन्मभूमि के गेट पर लगे ताले को खोलने से कानून व्यवस्था खराब हो सकती है। लेकिन न्यायाधीश ने सरकार की यह दलील को ठुकरा दिया।

अदालत ने उसी दिन यानी 1 फरवरी 1986 को मुकदमे की सुनवाई पूरी कर ली और शाम को करीब 4.15 बजे उन्होंने ताला खोलने का आदेश दिया। कोर्ट ने ये भी कहा कि जनता दर्शन व पूजा के लिए रामजन्मभूमि जा सकती है। अपने आदेश में उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि राज्य सरकार अपील दायर करने वाले तथा हिंदुओं पर रामजन्मभूमि में पूजा या दर्शन में कोई बाधा और प्रतिबंध न लगाए। कोर्ट के इस आदेश के बाद करीब आधे घंटे में सिटी मजिस्ट्रेट फैजाबाद रामजन्मभूमि मंदिर पहुंचे और उन्होंने गेट पर लगे ताले खोल दिये।

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