मिलिए बिहार के इस महान पंडित जी से जो पिछले 20 सालों से नहीं करवा रहे हैं ऐसे लोगों की शादियाँ
पक्षिम चंपारण: आज से 20 साल पहले दहेज़ लेकर शादी करने वाले लोगों की शादियाँ ना कराने का एक पंडित जी का संकल्प आज एक अभियान बन गया है। जिन लोगों को दहेज़ लेना होता है वह, इस पंडित जी से विवाह का मुहूर्त तक निकलवाने नहीं जाते हैं। अगर गलती से कोई उनके पास पहुँच भी जाता है तो पंडित जी उन्हें इस सामाजिक बुराई के बारे में अच्छे से समझाने लगते हैं। उसके बाद उसे दहेज़ ना लेने का संकल्प भी दिलवाते हैं। उनके प्रेरित करने के बाद कई परिवारों ने दहेज़ से हमेशा के लिए मुँह मोड़ लिया।
आज पंडित जी की राह पर कई अन्य लोग भी चल पड़े हैं। दहेज के खिलाफ अभियान चलाने वाले उस पंडित जी का नाम आचार्य पंडित सच्चिदानंद शुल्क है और वह बघहा प्रखंड के सिसवा बसंतपुर के रहने वाले हैं। धन की कमी का सामना करने के बाद भी उनके जीवन के कुछ पक्के उसूल हैं। आचार्य बताते हैं कि लगभग दो दशक पहले उन्हें बहन की शादी करनी थी। जहाँ भी उनके पिता शादी के लिए जाते थे, वहाँ दहेज़ की माँग होती थी। आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण वह दहेज़ देने में असमर्थ थे। आख़िरकार 1998 में एक परिवार ने बिना दहेज़ के शादी की।
बहन की शादी बगहा प्रखंड के मुडिला गाँव में हुई है। पिता को होने वाली परेशानियों को देखने के बाद उन्होंने निर्णय किया कि वह अपनी भी शादी बिना दहेज़ के ही करेंगे। इसके साथ ही जो परिवार दहेज़ लेने की बात करेगा उसके यहाँ शादियाँ भी नहीं करवाने जायेंगे 2000 में खुद की शादी बिना दहेज़ के नरकटियागंज प्रखंड के गाँव सुगौली वृतिटोला के निवासी कमलेश पांडे की बेटी संगीता से शादी की। उन्होंने बताया कि उनके अभियान और बिहार सरकार की पहल के बाद समाज में काफी बदलाव आया है।
पहले के दिनों में विवाह का पूरा लग्न बीत जाता था लेकिन कोई मुझे अपने यहाँ शादी करवाने के लिए नहीं बुलाता था। लेकिन अब धीरे-धीरे समय बदल रहा है। अब सूबे के कई लोगों ने अपने-बेटे बेटियों की शादी बिना दहेज़ के करनी शुरू कर दी है और आगे भी करेंगे। उनके इस अभियान से प्रेरणा लेकर नरकटियागंज के पं. राजीव मिश्र, बगहा गांधीनगर के पं. लालबाबू मिश्र, मंगलपुर के पं. कृष्णानंद मिश्र और रामनगर के पं. चंद्रिका पांडेय ने भी दहेज़ लेने वालों के घर शादी ना करवाने का निर्णय लिया है।