जानिए, क्यों हर वक्त पीएम मोदी के साथ रहती है ये महिला? मोदी के लिए करती है क्या काम
नई दिल्ली – पीएम मोदी ने साल 2014 में देश का पीएम बनने से लेकर अभी तक कई देशों के दौरे किये हैं। पीएम मोदी ने अपने हर विदेश दौरे पर वहाँ के प्रमुखों से बातचीत की, लेकिन सवाल ये उठता है कि पीएम मोदी उस देश के नेताओं से बात कैसे करते हैं। आपको बता दें कि पीएम मोदी को केवल गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी भाषा बोलने, लिखने और पढ़ने आती है। ऐसे में सवाल ये भी है वो इन देश के नेताओं के साथ कैसे बातचीत करते हैं। दरअसल, इस काम में एक महिला उनकी मदद करती है।
पीएम मोदी के साथ कौन है ये महिला?
हो सकता है कभी आपके मन में भी ऐसे सवाल आये हो कि पीएम जब विदेशों जाते हैं तो वो वहां के नेताओं से कैसे बात करते हैं और जब वे हिंदी में भाषण देते हैं तो दुसरे देश के नेता उनकी बातों को कैसे समझ पाते हैं। अगर आपके मन में भी ऐसे सवाल आये हैं तो हम आपको इसका जवाब दे देते हैं।
दरअसल, तस्वीर में पीएम मोदी के साथ दिख रही महिला देश की जानी मानी भाषा अनुवादक गुरदीप चावला हैं। विदेशी दौरे पर जब पीएम मोदी हिंदी में भाषण देते हैं तो गुरदीप पीछे बैठकर उसका अंग्रेजी में लाइव अनुवाद करती हैं, जिससे विदेशी मेहमान और नेता पीएम मोदी का भाषण को समझ पाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र में किया था भाषण का अनुवाद
आपको शायद तीन साल पहले संयुक्त राष्ट्र में पीएम मोदी का जोरदार भाषण याद होगा। पीएम मोदी ने संयुक्त राष्ट्र के मंच से आतंकवाद पर पाकिस्तान को जमकर सुनाया था और उनके इस भाषण की खुब तारीफ हुई थी। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी की आप जिस आवाज को सुन रहे थे उसके पीछे गुरदीप चावला थीं। दरअसल, गुरदीप चावला पीएम मोदी के भाषण का अंग्रेजी में अनुवाद कर रही थीं और हम सब उनके माध्यम से भाषण सुन रहे थे।
आपको बता दें कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा से लेकर फेसबुक के सीईओ तक पीएम मोदी जिससे भी मिलते हैं गुरदीप उनके साथ दिखाई देती हैं।
भारत की फेमस अनुवादक हैं गुरदीप
आपको बता दें कि गुरदीप चावला 27 साल से भाषा अनुवादक का कार्य कर रही हैं। साल 1990 में गुरदीप ने संसद भवन में भाषा अनुवादक के तौर पर कार्य करना शुरु किया था। संसद भवन के जैसे दस्तावेजों का अनुवाद करते हुए उन्होंने 1996 तक यहां काम किया। लगभग 6 साल तक संसद भवन में काम करने के बाद गुरदीप ने नौकरी छोड़ दी और पति के साथ अमेरिका चली गई। गुरदीप बताती हैं कि संसद में अनुवादक के तौर पर उन्हें जो ट्रेनिंग मिली, वो कोई प्रोफेशनल स्कूल नहीं सिखा सकता।