एक ऐसा आईएएस जो होटलों के बाहर बीनता है खाना, फिर करता है ये काम
आईएएस का ख्याल आते ही जेहन में एक ही तस्वीर बनती है, रौबदार चेहरा, नीली बत्ती कार और साथ में पूरा तामझाम। क्योकि आईएएस बननें के लिए, इस रुतबे को हासिल करने के लिए लोग धरती आसमान एक कर देते हैं। फिर पूरी जिंदगी नौकर, चाकर, गनर और पूरे जलवा जलाल के साथ कटती हैं। पांव जमीन पर नहीं पडते, लेकिन अगर यही आईएएस आपको सड़कों और कुछ बीनता और जिसे आप हाथ लगाना भी नहीं चाहते वो करता मिल जाए तो क्या कहेंगे। जी हां आज हम आपको ऐसे ही आईएएस मिलवाने जा रहे हैं जो अपने हाथों से होटलों के बाहर फेंका गया खाना उठाता है, फिर उसका अपने मन मुताबिक उपयोग करता है।
पुरात्व विभाग में हैं डॉयरेक्टर
आपने आईएएस को पांच सितारा होटलों में खाना खाते बहुत देखा होगा, लेकिन उन्ही पांच सितारा होटलों के बाहर किसी आईएएस को बचा हुआ खाना उठाते नहीं देखा होगा। लेकिन कुछ ऐसे हैं जो आज भी परोपकार के लिए फेंकी हुई चीजों को उठाने में शर्म और जरा भी झिझक महसूस नहीं करते। जी हां, ऐसा ही अकसर फरीदाबाद में देखा जा सकता है। जहां हरियाणा पुरातत्व विभाग के डायरेक्टर आईएएस प्रवीन कुमार अकसर रात के अंधेरे में होटलों के बाहर बचा हुआ खाना उठाते हैं। वे उस खाने को भूखे आवारा पशुओं को खिलाते हैं।
गुड़गांव नगर निगम के रह चुके हैं कमिश्नर
आईएएस प्रवीन कुमार फरीदाबाद के जिला उपायुक्त और नगर निगम गुड़गांव के कमिश्नर रह चुके हैं, और इस समय फरीदाबाद के सेक्टर-15 में रहते हैं। वे इस समय हरियाणा पुरातत्व विभाग में डायरेक्टर के पद पर तैनात हैं। अपने काम की व्यस्तता के बीच वे रात को निकलते हैं। उनके साथ कुछ सहयोगी भी होते हैं। वे जिन होटलों में बचा हुआ खाना फेंकने के लिए रखा जाता है उसे इकट्ठा करते हैं और उसे आवारा घूमने वाले पशुओं को खिलाते हैं। ये काम वो बीते कई सालों से करते आ रहे हैं।
ऐसे हुई शुरुआत
आईईएस प्रवीन कुमार बताते हैं कि उन्हें इस काम की प्रेरणा सूरजकुंड में मिली। एक दिन वे एक निजी होटल में खाने के लिए गए हुए थे। वे जब वहां से बाहर निकले तो उन्होंने देखा कि होटल के साइड में बचा हुआ खाना पड़ा था। जिसको होटल वाले सुबह कूड़े में फेंक देते थे। इस खाने को देख उनके मन में ख्याल आया कि क्यों ने इस खाने को भूखे जानवरों तक पहुंचाया जाए। बस फिर क्या था यही सोचकर उन्होंने इस मुहिम को शुरू किया। और आज कई सौ पशुओं को खाना दे रहे हैं। प्रवीन कुमार कहते हैं कि उन्हें होटलों के बाहर खाना उठाते कतई कोई शर्म महसूस नहीं होती क्योंकि वे उन जानवरों के लिए ऐसा कर रहे हैं जो बोलकर अपनी बात नहीं बता सकते। ऐसे में अगर हम उनके लिए कुछ करते हैं तो ये हमारे लिये सौभाग्य की बात होनी चाहिए। क्योंकि आज मनुष्य इतना स्वार्थी हो गया है कि उसे अपने सिवा किसी और का दुख नजर नहीं आता। हमें आगे आना चाहिए और प्रयास करना चाहिए।