मौसम की परवाह किये बगैर हर रोज लेकर निकलते हैं रोटी वाला रथ, इनकी कहानी कर देगी आपको हैरान
समस्तीपुर (बिहार): बासी रोटियों को कचरे में मत फेंको, मुझे दे दो मैं गायों को खिलाऊंगा। इस आवाज को रोसड़ा अनुमंडल का हर व्यक्ति पहचानता है। इतना सुनते ही इलाके के हर घर के लोग अपने घरों से बाहर बासी रोटियाँ लेकर आ जाते हैं और रोटियों को “गौ ग्रास रथ” पर रख देता है। इस तरह से हर रोज लगभग 500 रोटियाँ इकट्ठी होती हैं। इस काम को पिछले 5 सालों से कर रहे हैं इस इलाके के रहने वाले 67 वर्षीय रामेश्वर पूर्वे।
दिल्ली के कमलमुनि कमलेश से मिली थी प्रेरणा:
इनकी कहानी कई लोगों को प्रेरित कर सकती ऐ। आज के इस ज़माने में जहाँ लोग, लोगों की परवाह नहीं करते हैं, वहाँ एक 67 साल का बुजुर्ग व्यक्ति मौसम की परवाह किये बगैर बेजुबान गायों का पेट भरने के लिए जी-जान से मेहनत करता है। यह किसी को भी प्रेरित करने के लिए काफी है। कोई भी मौसम हो रथ हर रोज निकलता है और बिना रुके चलता है। जानकारी के अनुसार पूर्वे को इस काम की प्रेरणा दिल्ली के कमलमुनि कमलेश से मिली है। वे गायों के लिए इसी तरह से हर रोज बासी रोटियाँ इकट्ठी करते हैं।
पाँच साल पहले निकले थे एक झोला लेकर रोटियाँ माँगने:
एक पत्रिका में उनकी स्टोरी पढ़ने के बाद पूर्वें उनसे प्रभावित हुए और उनसे मिलने के लिए दिल्ली चले आये। उनसे मिलकर जब वह अपने घर गए तो उन्होंने भी यह काम शुरू कर दिया। जिले के अधिकारी भी पूर्वे के इस काम की अब सराहना करने लगे हैं। रोसड़ा के अनुमंडलाधिकारी और श्री गोशाला कमेटी के अध्यक्ष कुंदन कुमार कहते हैं कि यह प्रयास अत्यंत ही सराहनीय है। अन्य लोगों को उनके कार्यों का अनुकरण करने की जरूरत है। पहली बार 11 फ़रवरी 2012 को रामेश्वर एक झोला लेकर रोटी माँगने के लिए निकले थे। बसी रोटियों को कूड़े में ना फेंकने के लिए गृहणियों को जागरूक किया।
बीमार पड़ जाने पर उनका पुत्र लेकर निकलता है रथ:
हालांकि इस काम में उन्हें कुछ दिनों तक काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। आठ महीने तक झोले में ही उन्होंने रोटियाँ इकट्ठी की, उसके बाद 26 अक्टूबर 2012 को गौ ग्रास रथ को काम में लगा दिया। इलाके में यह रथ आकर्षण का केंद्र बना रहा। एक-एक करके लोग धीरे-धीरे इस रथ से जुड़ते गए। इस रथ पर हर रोज 500 रोटियाँ इकट्ठी होती हैं, जिन्हें श्री गोशाला पहुँचाया जाता है। भले ही कड़ाके की ठंढ क्यों न पड़े यह भारी बरसात ही क्यों ना हो, रथ कभी नहीं रुकता है। उनके बीमार पड़ जाने पर उनका शिक्षक पुत्र राकेश रथ को लेकर निकलता है।