आखिर क्यों वर्जित है कड़ाही में खाना? जानिए इस मान्यता की वास्तविक वजह
हमारे समाज में दिन प्रतिदिन के हर कार्य के पीछे के एक मान्यता प्रचलित है ..लोग इन मान्यताओं को सदियों से मानते चले आ रहे हैं। ऐसी ही एक मान्यता है कि अगर किसी भी लड़की या लड़के ने कड़ाही यानि फ्राइंग पैन में भूल से भी खाना खा लिया तो उसके विवाह आयोजन में बारिश और उत्पात जरूर होते हैं। शायद आप भी इसे मानते होंगे लेकिन क्या आप जानते हैं इसकी पीछे वजह क्या है ..आखिर ऐसी मान्यता की उत्पत्ति हुईं क्यों ..अगर नही जानते तो आज हम आपको इस मान्यता की वास्तविक वजह बताने जा रहे हैं।
दरअसल सनातन धर्म में प्रचलित हर मान्यता के पीछे वैज्ञानिक कारण होते हैं.. और “कड़ाही में ना खाने” की चली आ रही मान्यता के पीछे भी कुछ ऐसी ही वजह है। विभिन्न शोध के बाद एवं इन मान्यताओं को गहराई से समझने के बाद शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष दिया है कि अमूमन सभी हिन्दू मान्यताएं एक वैज्ञानिक संदेश देती हैं.. इनके पीछे कुछ वैज्ञानिक कारण हैं, आइए जानते हैं कड़ाही में ना खआने की मान्यता का वैज्ञानिक दृष्टिकोण …
मान्यता के पीछे है वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वास्तव में इससे हाइजीन का मुद्दा अधिक जुड़ा हुआ है.. दरअसल प्राचीन काल में अक्सर खाना बनाने वाले भण्डारी या रसोइए सबसे बाद में खाते थे। महिलाएं भी सबको खिला देने के बाद ही आखिर में बचा-कुचा खाती थीं। ऐसे में जब वे पहले ही थकी होती थीं इसलिए जल्दबाजी में कड़ाही में ही सब कुछ मिला कर खा लेती थीं रसोइए भी ज्यादातर ऐसा ही करते थी, जिससे हाइजीन की प्रॉब्लम पैदा होती थी। क्योंकि उस समय कड़ाही लोहे की बनती थी, जिसको पूरी तरह साफ करना पहले उतना आसान नहीं था। साथ ही जिस तरह से आज कई ऐसे डिश वाशिंग पाउडर या लिक्विड उत्पाद उपलब्ध हैं और उनसे बड़ी आसानी से कड़ाही साफ हो जाती है, वैसा पहले होना मुमकिन नहीं था। पहले सामान्यतः पुआल और राख का इस्तेमाल बर्तन धुलने के लिए होता था.. कई जगहों पर कोयले का भी प्रयोग किया जाता था। लेकिन जूठी लोहे की कड़ाही बाहर से भले ही साफ दिखे, अंदर से यानि आंतरिक रूप से स्वच्छ नहीं हो पाती थी। ऐसे में ये बात एक समस्या बन कर उभरी होगी कि कैसे कड़ाही में खाने से रोका जाए।
हाइजीन के लिए बनाया गया था नियम
कड़ाही में खाने से रोकने के लिए ही ये मान्यता लागू की गई ..क्योंकि एक बात हम सभी जानते हैं कि किसी भी निषेध को तभी लागू किया जा सकता है जबकि उसके पीछे कोई कानून, मान्यता, धार्मिक संस्कार या भय जोड़ दिया जाए अन्यथा की स्थिति में उसको अनुपालित करवा सकना बेहद मुश्किल कार्य है। इसीलिए कई ऐसे स्वास्थ्य विषयक नियम लागू करवाने के लिए किसी न किसी मान्यता या धर्म का सहारा लिया गया। कुछ यही बात कड़ाही में खाने से भी जुड़ी है.. कड़ाही जूठी ना हो इसीलिए प्राचीन काल में ये नियम बनाया गया था।